कर्नाटक में स्थित हम्पी अपने ऐतिहासिक साक्ष्यों के लिए प्रसिद्ध है। इस जगह की सबसे ख़ास बात यह है कि एक ओर जहाँ इस जगह के साथ भारतीय मध्यकालीन इतिहास की गवाही देती स्थापत्य कला के खंडहर मौजूद हैं, वहीं यह हिन्दुओं के पवित्र ग्रंथ रामायण की घटनाओं के साथ भी अद्भुत सम्बन्ध जोड़ती हुई नजर आती है।
कहा जाता है कि हम्पी ही वो जगह है, जहाँ त्रेतायुग में माँ सीता की खोज के दौरान भगवान श्री राम की मुलाकात किष्किंधा पर्वत पर पहली बार अपने परम भक्त हनुमान जी से हुई थी। कहा जाता है कि यहीं स्थित अंजनाद्री पर्वत पर हनुमान जी की माता अंजनी निवास करतीं थीं।
कर्नाटक के हम्पी में ‘हनुमान जन्मभूमि ट्रस्ट’ ने ही इसी जगह पर हनुमान जी की विश्व की सबसे विशालकाय प्रतिमा का निर्माण करने का फैसला किया है। यह प्रतिमा हनुमान जी के जन्मस्थान किष्किंधा में बनाई जाएगी और इसकी ऊँचाई 215 फीट होगी। यह हनुमान की दुनिया की सबसे ऊँची प्रतिमा होगी। ज्ञात हो कि यह न्यास अयोध्या में श्री रामजन्मभूमि पर राम मंदिर निर्माण के लिए गठित ‘श्री राम जन्मभूमि ट्रस्ट’ के नक्शे-कदम पर चल रहा है।
उच्चतम न्यायलय के निर्णय के बाद फरवरी 5, 2020 को ही राम जन्मभूमि ट्रस्ट के गठन के साथ ही ठीक उसी दिन कर्नाटक हनुमान जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट का भी गठन किया गया था। इस ट्रस्ट का उद्देश्य हम्पी में किष्किंधा का समग्र विकास करना है। इस ट्रस्ट के अध्यक्ष गोविंदानंद सरस्वती स्वामी हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हनुमान जन्मभूमि ट्रस्ट के सूत्रों ने कहा कि हम्पी, जो पहले से ही एक पर्यटन केंद्र है अब उसे एक तीर्थस्थल में बदला जाएगा। ट्रस्ट ने कहा- “राम मंदिर के निर्माण के बाद यह अयोध्या की भव्यता के बराबर होगा। अयोध्या में राम की 225 फीट ऊँची प्रतिमा बनाई जा रही है और हमने हनुमान की भी सबसे ऊँची प्रतिमा लगाने का फैसला किया है क्योंकि राम और हनुमान अविभाज्य थे। हालाँकि हनुमान जी की यह प्रतिमा श्री राम की प्रतिमा से 10 फीट छोटी होगी और इसे ताँबे से बनाया जाएगा।
प्राचीन ऐतिहासिक विजयनगर साम्राज्य के लिए मशहूर है हम्पी
हम्पी, दक्षिणी भारत के एक पुराने शहर विजयनगर में स्थित एक छोटा सा गाँव है। वर्ष 1336 से 1565 तक, यह मध्यकालीन हिन्दू राज्य विजयनगर साम्राज्य की राजधानी था। उस समय, विजयनगर साम्राज्य दक्षिणी भारत के ज़्यादातर हिस्सों पर राज करता था और इस्लाम के लिए चुनौती बनकर उभरा था। वर्ष 1565 में, डेक्कन महासंघ ने इस शहर पर जीत हासिल की और कई महीनों तक इसकी संपत्ति को लूटा।
यहाँ के खंडहरों को देखने से यह सहज ही प्रतीत होता है कि किसी समय में हम्पी में एक समृद्धशाली सभ्यता निवास करती थी। इस शहर की खुदाई करने पर पुरातत्त्ववेत्ताओं को कई भव्य महल और मंदिर, पानी की शानदार व्यवस्था और कई दूसरे बुनियादी ढाँचे मिले। वर्ष 1986 में इस प्राचीन शहर को यूनेस्को विश्व विरासत स्थल घोषित कर दिया गया।
हम्पी में स्थित है रामायण में वर्णित किष्किंधा पर्वत
हम्पी को रामायणकाल में पम्पापुरी और किष्किन्धा के नाम से जाना जाता था। यहाँ कई बड़ी और विशालकाय ग्रेनाइट की चट्टानें देखी जा सकती हैं। यहीं पर किष्किंधा पर्वत पर तुंगभद्रा नदी के किनारे कई मंदिर भी हैं। जिनमें मतंग ऋषि आश्रम, शबरी गुफा और अंजना पर्वत सबसे महत्वपूर्ण हैं।
हम्पी में तुंगभद्रा नदी किनारे अंजनाद्री पर्वत पर स्थित हनुमान जी की माँ अंजना का मंदिर
किष्किंधा पर्वत पर अंजना मंदिर के आस पास बड़ी चट्टानों पर बंदरों के काफी झुण्ड देखे जा सकते हैं
किष्किंधा में वह स्थान जहाँ पर रामायण के अनुसार श्री राम-हनुमान की पहली भेंट हुई थी
हम्पी के आसपास मौजूद ग्रेनाइट पहाड़ियों की गिनती दुनिया के सबसे पुराने पत्थरों में की जाती है। करोड़ों सालों में ग्रेनाइट के बड़े-बड़े पत्थरों ने घिस-घिस कर छोटी पहाड़ियों का रूप ले लिया है।
इनमें से कई पहाड़ियाँ, एक के ऊपर एक पड़े पत्थरों से बनी हैं। इस मंदिर के अवशेष हेमकूट पहाड़ी की चोटी पर पाए जाते हैं। अंजना मंदिर तक पहुँचने के लिए करीब 500 सीढ़ियाँ चढ़नी होती हैं।