लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण का चुनाव प्रचार जारी है। इस चरण में प्रधानमंत्री की उम्मीदवारी वाली वाराणसी पर भी 19 मई को चुनाव होना है। ऐसे में कई पत्रकार बनारस में डेरा डाले हुए हैं। इंडिया टुडे के पत्रकार राजदीप सरदेसाई वाराणसी में प्रियंका गाँधी का रोड शो कवर करने गए थे, ऐसे में उन्होंने जब बनारस की नब्ज़ टटोली तो माहौल ‘मोदीमय’ दिखा। हालाँकि, उन्होंने अपने तरीके से कई जगह ट्विस्ट देने की कोशिश की, पर घूम-फिरकर माहौल ‘आएगा तो मोदी ही’ टाइप रहा।
वाराणसी से ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान, राजदीप दशाश्वमेध घाट, काशी की राजनीतिक धुरी अस्सी पर पप्पू चाय के पॉपुलर अड्डे से लेकर बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के विश्वनाथ मंदिर पहुँचते हैं। बनारस के लोगों को कई बार अपनी तरफ से याद दिलाने की कोशिश करते हैं कि कभी बनारस कॉन्ग्रेस का गढ़ हुआ करता था। क्या आप चाहते हैं कि प्रियंका यहाँ से चुनाव लड़े जबकि उन्हें ठीक से पता है न वह लड़ेंगी और न ही अब संभव है। यहाँ तक कि यह भी पूछ लिया कि क्या आप उसे वोट देना चाहेंगे जो पार्टी और नेता रोजगार देने के ‘वादे’ कर रही है। लगभग एक ही सवाल बार-बार दोहराया गया कि आखिर मोदी ने ऐसा क्या कर दिया बनारस में? कितना बदला है बनारस? अपनी मस्ती और हाज़िरजवाबी के लिए जाना जाने वाले बनारस ने भी जम कर उनकी फिरकी ली और अपना मन भी उड़ेल कर रख दिया जो उनके लिए और कॉन्ग्रेस के लिए अच्छी ख़बर नहीं है, पर जो है सो है।
सबसे मजेदार वाकया अस्सी पर पप्पू की चाय के दुकान का है। शायद राजदीप ने वहाँ इंट्री यह सोचकर की थी कि यहाँ उन्हें मोदी विरोध की लहर दिखाई दे जाए, पर मामला उल्टा हो गया। राजदीप ने जैसे ही पूछा कि आखिर पिछले पाँच सालों में बनारस में ऐसा क्या हुआ? क्या मोदी राज में बनारस में कोई डेवलपमेंट हुआ? लोगों ने BHU से लेकर बुद्ध की प्रथम प्रवचन स्थली सारनाथ तक शानदार रोड के साथ, हेरिटेज लाइट, तारों के जंजाल से मुक्ति, रामनगर-सामने घाट पुल से लेकर, महात्मा गाँधी और मालवीय जी ने कभी कहा था कि जहाँ स्वयं काशी विश्वनाथ विराजमान है उस गली में भी इतना कूड़ा-करकट की याद दिलाते हुए विश्वनाथ हेरिटेज कॉरिडोर से लेकर बनारस की गली और घाटों तक की बढ़िया सफाई व्यवस्था की चर्चा कर डाली। राजदीप को बता दिया कि बनारस में अब महामना को समर्पित अपना विश्वस्तरीय कैंसर हॉस्पिटल भी मरीजों की सेवा के लिए तैयार है।
फिर भी राजदीप ने उनकी तरफ गूगली फेंकी कि जितना काम नहीं हो रहा है उससे ज़्यादा प्रचार हो रहा है। जैसे अभी जो कुछ गिनाया गया वह काम नहीं बल्कि कुछ और हो क्योंकि अभी तक कहीं भी किसी ने कॉन्ग्रेस का नाम तक नहीं लिया था। ‘कमलापति त्रिपाठी के समय कॉन्ग्रेस का गढ़ रहा है बनारस’ कि जैसे ही उन्होंने याद दिलाकर इन उपलब्धियों को कमतर साबित करने की कोशिश की तो किसी ने उन्हीं से पूछ लिया कि आप तो वरिष्ठ पत्रकार हैं आप ही बता दीजिए कोई एक काम जो बनारस में कॉन्ग्रेस ने किया हो? थोड़ी देर के लिए राजदीप गच्चा खा गए कि अब करे तो करें क्या! आगे इस पर डिटेल में बात होगी।
वैसे ऐसे पत्रकारों की समस्या और एकमात्र उपलब्धि यही रही है कि मोदी विरोध से ही ये तथाकथित बड़े पत्रकार बने हैं और ऊपर से ‘पक्षकार’ होने के बावजूद भी ‘निष्पक्षता’ का चोला ओढ़ लिया। खैर, अब इन्हें ठीक से पता है कि कॉन्ग्रेस सत्ता में वापस आ नहीं रही तो ये जाएँ तो जाएँ कहाँ? यहाँ मामला उल्टा पड़ता देख बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के छात्रों से बीजेपी विरोध का माहौल बनाना चाहा, शुरूआती स्तर पर बात बनती नज़र आई तो आँखों में चमक दिखी लेकिन जल्द ही सब अरमान बनारसी झोंके में बह गए, जब वहाँ के छात्रों ने न सिर्फ बनारस बल्कि सम्पूर्ण पूर्वांचल के विकास की तस्वीर साझा कर दी। वहाँ किसी को राहुल और प्रियंका से कोई उम्मीद नज़र नहीं आई। शुरूआती थोड़े से असंतोष के साथ मेजोरिटी में छात्र भी मोदी मय ही नज़र आए तो राजदीप ने वहाँ भी ट्विस्ट देना चाहा कि क्या देश में मोदी के नाम पर ध्रुवीकरण नहीं हो रहा है?
छात्रों ने उनके इस सवाल को मोदी-मोदी के नारों के साथ हवा में उड़ा दिया और ये साफ बता दिया कि वर्तमान में जहाँ एक तरफ परिवारवाद हावी है और राहुल के बाद उनका भांजा अगला पार्टी अध्यक्ष बनने के लिए तैयार किया जा रहा है, वहाँ बीजेपी एक बढ़िया विकल्प है। परिवर्तन की बात करने वाले राहुल पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया या किसी अन्य को पार्टी अध्यक्ष बना के दिखाएँ, फिर देश की बात करें। राजदीप का मामला BHU में भी नहीं जमा। सारा एजेंडा धरा का धरा रह गया।
चलिए वापस लौटते हैं पप्पू की दुकान पर, बनारस में ग्राउंड रिपोर्टिंग करते वक़्त राजदीप ने जो अभी तक मोदी के खिलाफ न जाने कितने नेगेटिव कमेंट कर खुद को सुर्ख़ियों में रखा। बनारस में भी बार-बार कॉन्ग्रेस से तुलना कर मोदी के खिलाफ नेगेटिव कमेंट करवाने की पुरजोर कोशिश की, पर बनारस ने बता दिया कि कैसे मोदी ने मात्र पाँच सालों में कॉन्ग्रेस के पचास सालों से ज़्यादा बनारस में विकास किया। चाहे वह मामला साफ-सफाई का हो, चौड़ी सड़कों का, अंडरग्राउंड पावर केबल का, गंगा की साफ-सफाई का हो, जाम से मुक्ति के लिए फ्लाईओवर के जाल का या बेहतर और ज़्यादा उन्नत हॉस्पिटल का…. लेकिन सरदेसाई ने इन सबको नकारते हुए उन्हें प्रोवोक किया ताकि कोई तो मोदी के खिलाफ नेगेटिव कमेंट करे जिसे ये मोदी विरोधी लहर के रूप में काशी का मूड बताकर प्रोजेक्ट कर सकें।
देसाई ने आखिरी पैतरें के रूप में अभी तक कही हर बात को नकारते हुए फिर बड़ी धूर्तता के साथ पूछा यह सब तो ठीक है पर जितना विकास होना चाहिए था उतना नहीं हुआ। प्रचार पर ध्यान ज़्यादा रहा मोदी जी का, जमीन पर कम। क्या आप चाहते हैं कि मोदी प्रचार कम और काम ज़्यादा करें? इस पर पप्पू की दुकान पर ही एक व्यक्ति ने बहुत झन्नाटेदार जवाब दिया कि आप तो ऐसे कह रहे हैं जैसे सचिन ने अपने जीवन में 100 सेंचुरी ही मारा तो आगे क्या? छोड़िए, राजदीप जी आप बड़े पत्रकार हैं पहले भी कई बार बनारस आ चुके हैं। मैं तो बनारस में मोदी जी का 50 काम गिना दूँगा। आप बताइए कि कॉन्ग्रेस ने क्या किया है बनारस के लिए कोई एक उपलब्धि बता दीजिए।
सरदेसाई पर इस तरह से सीधा अटैक करने के बाद, कॉन्ग्रेस के लिए तमाम तरह से जीवन भर पैडलिंग करने के बावजूद, राजदीप के पास ऐसा एक भी काम नहीं था कॉन्ग्रेस का जिसे वो बनारस की जनता को गिना सकें। वहाँ बैठे बनारसियों ने उन्हें पानी पीला दिया और दुकान पर बैठे लोगों ने इस सन्नाटे को चीरने के लिए माहौल मोदी मय कर दिया। साथ ही यह भी बता दिया कि बनारस किसी के भड़कावे में नहीं आने वाला, वह विकास के साथ है, मोदी के साथ है। इस जवाब के साथ मामला बनता न देख सरदेसाई का काफिला कहीं और निकल लिया मोदी विरोध की संजीवनी तलाश करने।