राजदीप सरदेसाई के लगभग पूरे करियर ने ही बीजेपी विरोध और उसमें भी मोदी विरोध की बदौलत आकार लिया है। यह ऐसे पत्रकार हैं जो बिना किसी सबूत के ही अपने मीडिया ट्रायल में खासतौर से भाजपा और उसके नेताओं को तुरंत दोषी ठहराते थे। और अगर कोर्ट ने किसी को बरी कर दिया तो भी ये अपने ही बयानों को ट्विस्ट देकर खुद को जस्टिफाई करने की लगातार कोशिश करते थे और इनके इस काम में इनका पूरा गिरोह बखूबी साथ देता था। खैर ऐसे कई मुद्दे हैं जहाँ राजदीप पहले भी बेनक़ाब हो चुके हैं, आखिरी समय तक इन्होंने कॉन्ग्रेस के लिए फील्डिंग करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और अब उनके रुख में पिछले कुछ दिनों से बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। यह उनके लिए कुछ अच्छा बेशक हो सकता है पर गिरोह के लिए ये किसी बड़े सदमे से कम नहीं है।
हाल ही में, लेखक-पत्रकार मनु जोसेफ के साथ एक साक्षात्कार में, राजदीप सरदेसाई ने पुराने पाप धोकर गंगा नहाने की ठानी।
एक सवाल का जवाब देते हुए कि क्या 2002 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी इस घटना के लिए किसी भी तरह से जिम्मेदार थे, राजदीप सरदेसाई ने स्वीकार किया कि वह व्यक्तिगत रूप से मानते थे कि गोधरा नरसंहार के बाद हुए 2002 के दंगों के लिए मोदी जिम्मेदार नहीं थे।
उन्होंने कहा, ”हमारे लिए यह कहना अनुचित है कि मोदी या कोई भी दंगे के लिए जिम्मेदार था। उन्होंने हिंसा को उकसाया नहीं।” फिर भी, राजदीप सरदेसाई ने दावा किया कि मुख्यमंत्री मोदी कुछ हद तक शांत थे क्योंकि उन्होंने दंगों को रोकने की कोशिश नहीं की थी। उन्होंने कहा कि राज्य पर मोदी का उतना नियंत्रण नहीं था जितना वीएचपी नेता प्रवीण तोगड़िया का वास्तविक नियंत्रण था क्योंकि मोदी 2002 में सत्ता में आए ही थे।
राजदीप सरदेसाई के अनुसार, मोदी उतने शक्तिशाली नहीं थे, जितना लोगों ने सोचा था और उन्होंने 2002 दंगों के दौरान प्रवीण तोगड़िया को अधिक स्पेस देने का समर्थन किया। हालाँकि, राजदीप का यह मानना है कि हिंसा में हमेशा कुछ राजनीतिक निवेश होता है, जो इस बात का संकेत है कि नरेंद्र मोदी 2002 की घटना से राजनीतिक रूप से लाभान्वित हुए थे।
मीडिया में दंगों की रिपोर्टिंग पर खेद व्यक्त करते हुए, राजदीप सरदेसाई ने स्वीकार किया कि गुजरात दंगों को मीडिया द्वारा सनसनीखेज बनाया गया था। राजदीप ने कहा कि दंगों जैसी संवेदनशील घटनाओं को रिपोर्ट करते समय सेल्फ सेंसरशिप की जरूरत है। राजदीप आखिरकार इस तथ्य पर सहमत हो गए कि मीडिया वास्तव में दंगों की तीव्रता को बढ़ाने के लिए ज़िम्मेदार था।
जबकि राजदीप का यह रहस्योद्घाटन अब हुआ है, हाल तक राजदीप यह कहते रहे हैं कि मोदी और भाजपा के हाथ खून से सने हैं और राजदीप ने 1984 के सिख नरसंहार की तुलना 2002 के दंगों से भी की थी जहाँ कॉन्ग्रेस के नेता सीधे तौर पर शामिल थे और राजीव गाँधी ने खुद हिंसा भड़काई थी यह भाषण देकर कि ‘जब एक बड़ा पेड़ गिरता है, तब धरती हिलती है।’ जबकि 2002 के दंगों की बात करें तो सरदेसाई ने अब स्वीकार किया कि मोदी की कोई भूमिका नहीं थी और अदालतों ने भी उन्हें क्लीन चिट दे दी है।
dont feel like debating 84 or 2002. the cong will rake up gujarat, the bjp delhi. the fact is both parties have blood on their hands.
— Citizen/नागरिक/Dost Rajdeep (@sardesairajdeep) November 1, 2009
राजदीप 2018 में भी मोदी से 2002 के लिए माफ़ी माँगने को कह रहे थे लेकिन अब वह कह रहे हैं कि मोदी इसमें शामिल नहीं थे।
Rahul Gandhi and the Cong must accept (as Dr MMS rightly did) that 1984 is a terrible blot on Cong as 1992 post ayodhya riots and 2002 Gujarat are on BJP. Read our great spiritual leaders: first step towards redemption is ‘Shama’ or forgiveness by accepting the truth,apologise.
— Citizen/नागरिक/Dost Rajdeep (@sardesairajdeep) August 25, 2018
#Modi in IBN interview stays silent when asked on Nitish, campaigning in Bihar and any apology for Gujarat 2002.
— Citizen/नागरिक/Dost Rajdeep (@sardesairajdeep) October 11, 2012
एक बात तो यह है कि राजदीप अब इस बात से सहमत हैं कि मोदी की दंगों में भूमिका नहीं थी और मीडिया ने दंगों को सनसनीखेज बना दिया था, क्या वह जानबूझकर इस ‘सनसनीखेजवाद’ को 2002 से लेकर हाल तक तक आगे बढ़ा रहे थे?
जैसा कि 2019 के लोकसभा चुनावों के पूर्व रुझानों से पता चलता है कि एनडीए सरकार सत्ता में वापस आ रही है, कॉन्ग्रेस समर्थित मीडिया पारिस्थितिकी तंत्र नरेंद्र मोदी के साथ तालमेल बिठाने का मौका खोजने की कोशिश में अपने पुराने आकाओं और गिरोहों को छोड़ने का यह एक संकेत है। या इस बात का डर कि अब और कॉन्ग्रेसी या देश विरोधी एजेंडा चलाना संभव नहीं।
राजदीप सरदेसाई जैसे वामपंथी मीडिया और उनके गिरोह के अन्य पत्रकारों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ खुले तौर पर और हमेशा के लिए पक्षपात किया क्योंकि वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे। पीएम मोदी के खिलाफ एक अथक अभियान चलाने वाले इस पूरे पारिस्थितिकी तंत्र ने आखिरकार महसूस किया कि उनका दुष्प्रचार सोशल मीडिया के युग में और अधिक काम नहीं करता दिख रहा है। इसलिए, लुटियंस इकोसिस्टम के कुछ वर्ग द्वारा पीएम मोदी और भाजपा के खिलाफ उनके निरंतर नाकामयाब घेरेबंदी के बाद, अब हताश होकर सच बोलने की कोशिश की गई है।