इंडिया टुडे के पत्रकार राजदीप सरदेसाई को शनिवार (9 अक्टूबर 2021) को केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने करारा जवाब दिया। खान ने बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक के सवाल पर अपनी अस्वीकृति जाहिर करते हुए कहा कि जब भारत की बात आती है, तो इसके सभी नागरिकों को उनके धर्म की परवाह किए बिना ‘समान अधिकार’ दिए जाते हैं।
इंडिया टुडे पर इंटरव्यू के दौरान राजदीप ने खान से पूछा कि वह एक भारतीय मुस्लिम के तौर पर अपनी पहचान को कैसे देखते हैं? उनके इस सवाल ने राज्यपाल को व्यथित कर दिया। फिर भी उन्होंने इसका जवाब दिया, “हम आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। हमारी आजादी मुफ्त में नहीं आई। इसके साथ देश का विभाजन, देश का खूनी विभाजन हुआ। तब समुदायों के बीच बहुत हिंसा हुई थी … मुझे लगता है कि विभाजन इस काल्पनिक मुस्लिम प्रश्न के कारण हुआ। बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक हिंसा का कारण बना।”
राज्यपाल ने समुदाय और धर्म के आधार समाज को बाँटने की मीडिया की कोशिशों पर नाराजगी व्यक्त की और कहा कि भारत की आजादी के 75 साल बाद भी यह दुखद है कि मीडिया सबका साथ, सबका विकास सबका विश्वास पर चर्चा करने के बजाय विभाजनकारी भाषण दे रहा है।
उन्होंने आगे कहा, “अंग्रेजों ने कभी भी भारत को एक राष्ट्र के रूप में मान्यता नहीं दी। वे इसे हमेशा समुदायों का समूह मानते थे। लेकिन, यह संविधान नागरिकों को भारत की इकाई मानता था। अब समुदायों का सवाल कहाँ है? मेरे गाँव में आओ और एक मुस्लिम से पूछो कि यह मुस्लिम सवाल क्या है। वह भ्रमित हो जाएगा। क्योंकि उन्हें भी उन्हीं समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जिनका सामना दूसरे समुदायों के किसानों को करना पड़ता है। सिर्फ इसलिए कि हैदराबाद में किसी ने कहा कि एक मुस्लिम सवाल है, हमने इसे गंभीरता से लिया है।”
केरल के राज्यपाल ने यह बातें दिल्ली में इंडिया टुडे कॉन्क्लेव के दौरान ‘बहुसंख्यक, अल्पसंख्यक: द बैटल ऑफ बिलॉन्गिंग’ विषय पर बोलते हुए कही। खान ने कहा कि भारतीय सभ्यता और ‘हमारी सांस्कृतिक विरासत’ में किसी के धर्म के आधार पर भेदभाव की कोई अवधारणा नहीं है।
उन्होंने अपने दावे को पुख्ता करने के लिए कुछ श्लोकों का हवाला देते हुए कहा, “भारतीय सभ्यता को कभी भी धर्म द्वारा परिभाषित नहीं किया गया है, अन्य सभी सभ्यताओं को या तो धर्म द्वारा परिभाषित किया गया है, ज्यादातर को धर्म द्वारा और उससे पहले भी नस्ल और भाषा द्वारा पिरभाषित किया गया।”
यह पूछे जाने पर कि क्या पिछले कुछ दशकों में भारतीय राजनीति अल्पसंख्यक तुष्टिकरण से बहुसंख्यकवाद की ओर बढ़ी है, खान ने कहा कि यह भारत का संविधान है, इसकी हजारों साल पुरानी परंपराएँ हैं, जिन्होंने कभी विभाजन और अलगाव की विचारधारा का समर्थन नहीं किया।
खान ने आगे कहा, “यह न केवल हमारा संविधान है जो लोगों को समान अधिकार देता है, बल्कि इससे भी अधिक हमारी सांस्कृतिक विरासत, भारतीय सभ्यता में धर्म के आधार पर भेदभाव की कोई जगह नहीं है। इसलिए दोनों को जोड़ना मुझे यह बेतुका लगता है।”