Sunday, November 17, 2024
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अर्नब-सोनिया पर ‘नजमा आपी’ के Video से चिढ़े कट्टरपंथी, बचाव करने पर द प्रिंट को भी नहीं छोड़ा

इस्लामिक सोच के उलट जाकर द प्रिंट का नजमा आपी का समर्थन करना ट्विटर पर कुछ लोगों को पसंद नहीं आया। ट्विटर पर इस्लामिक ट्रोल की पहचान बनाने वाली सिदराह ने इस पर आपत्ति जताई। सिदराह ने द प्रिंट को इस बात को लेकर घेरा कि वे एक गैर मुस्लिम महिला को ये निर्णय लेने का हक कैसे दे रहे हैं कि इस्लामोफोबिक क्या है।

19 साल की सलोनी गौर पहचान की मोहताज नहीं हैं। ‘नजमा आपी’ नाम से वह इंटरनेट की सनसनी बन चुकीं हैं। उनके वीडियोज आपने देखे ही होंगे। लेकिन, अर्नब गोस्वामी पर उनके वीडियो से विवाद खड़ा हो गया है। उनका बचाव करने पर इस्लामिक कट्टरपंथियों ने वेबसाइट द प्रिंट को भी लताड़ लगाई है।

नजमा आपी ने अपने ह्यूमर से किसी भी टॉपिक को इतना दिलचस्प बना देती हैं कि लोग उनकी तारीफ किए बिना नहीं रह पाते। लेकिन, इस बार जब उन्होंने अर्नब गोस्वामी और सोनिया गाँधी पर अपना वीडियो रिलीज किया तो उन्होंने इस्लामोफिबिया से ग्रसित बताया जाने लगा। कहा गया कि वे मुस्लिम महिला बनकर उनकी पहचान गिरा रही हैं। कुछ ने उन्हें संघी बताया। कइयों ने अनफॉलो भी कर दिया।

द प्रिंट ने इस पर रिपोर्ट की। रिपोर्ट शुभांगी मिश्रा ने लिखा। रिपोर्ट में उन्होंने इस्लामोफोबिया को वास्तविक चीज बताया। साथ ही ये भी कहा कि भले ही ये एक वास्तविक बात है, लेकिन आज के समय में ये आलोचन बहुत थकी हुई हो गई है। अपनी रिपोर्ट में आगे बताया कि कैसे सलोनी ने बस लोगों को हँसाने के लिए कुछ खास किस्सों को लेकर सिर्फ़ मिमिक्री की थी।

इस्लामिक सोच के उलट जाकर द प्रिंट का नजमा आपी का समर्थन करना ट्विटर पर कुछ लोगों को पसंद नहीं आया। ट्विटर पर इस्लामिक ट्रोल की पहचान बनाने वाली सिदराह ने इस पर आपत्ति जताई। सिदराह ने द प्रिंट को इस बात को लेकर घेरा कि वे एक गैर मुस्लिम महिला को ये निर्णय लेने का हक कैसे दे रहे हैं कि इस्लामोफोबिक क्या है। इसके बाद उसने आगे कैरिकेचर परिभाषा बताई और कहा कि कैरिकेचर नुकसानदेह नहीं होते। लेकिन सलोनी ने जो किया उसके पीछे प्रोपेगेंडा है।

कई अन्य सोशल मीडिया यूजर्स ने भी कहा कि सलोनी ने जानकर मुस्लिम महिला की छवि का इस्तेमाल प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए किया और थूकने वाली बात पर झूठ पर बोला। हालाँकि, कट्टरपंथियों का गुस्सा देखकर ये समझना मुश्किल है कि आखिर सलोनी ने अपने वीडियो में क्या झूठ बोला। ये तो जगजाहिर है कि तबलीगी जमात से जुड़े लोगों ने स्वास्थ्यकर्मियों और पुलिस के लिए परेशानी खड़ी की। इधर-उधर थूक कर संक्रमण फैलाने की कोशिश की।

इसके बाद, विद्या कृष्णन, जो एक स्वास्थ्य पत्रकार होने के बावजूद राजनैतिक मामलों में दखल करने से गुरेज नहीं करतीं, उन्होंने भी द प्रिंट के लेख और नजमा आपी के कैरेक्टर पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा कि एक कॉमेडियन को ये निर्णय लेने का अधिकार नहीं है कि इस्लामोफोबिक क्या होता है। ट्वीट में उम्मीद जताई की कि वे इस बात पर दोबारा विचार करेंगी।

अब ये गौर करने वाली बात है कि इस्लामिक कट्टरपंथियों का वास्तविक रवैया क्या है? दरअसल, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन उनके समर्थन में लिखता-पढ़ता-बोलता रहा है। उन्हें बस फर्क पड़ता है तो इस बात से कि वर्तमान में उनके लिए कौन क्या बोल रहा है। जैसे कि द प्रिंट जिसने 100 में से 99 बार उन्हें सपोर्ट किया, उन्होंने उसको भी अपना शिकार बना लिया और नजमा आपी के सपोर्ट में आर्टिकल लिखने पर उन्हें घेर लिया।

इस्लामिक कट्टरपंथियों की ऐसी हरकतों से जाहिर होता है कि वे लोग सिर्फ़ उसी पोर्टल, उसी चैनल, उसी पत्रकार, उसी शख्स का समर्थन करते हैं, जो उनके पक्ष में और उनके इच्छानुसार बातें करता है। लेकिन, जैसे ही कोई उनकी दिखाई लीक से भटकता है, वे उसे अपना दुश्मन व धूर्त बता देते हैं।

द प्रिंट के बारे में बता दें कि बीते दिनों शेखर गुप्ता ने खुलकर तबलीगी जमातियों का समर्थन किया था। उन्होंने जमातियों के कुकर्मों को ढकने के लिए भाजपा के आईटी सेल को विलेन साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। इतना ही नहीं, उन्होंने कुछ दिन दक्षिणपंथी जिहाद का नैरेटिव भी गढ़ने की कोशिश की। लेकिन इतने सबके बावजूद एक ‘गलती’ के कारण वो कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गए और उन पर आरोप लग गया कि वे दुश्मनों का साथ दे रहे हैं।

इससे पहले द वायर की वरिष्ठ पत्रकार आरफा खानम शेरवानी को भी इस्लामिक कट्टरपंथियों ने अपना निशाना बनाया था, क्योंकि उन्होंने अपनी छवि से हटकर हिंदुओं को हैप्पी दशहरा विश कर दिया था। इसके अलावा राहुल कंवल को भी जमातियों का पर्दाफाश करने पर इस्लामिक कट्टरपंथियों की आलोचना झेलनी पड़ी थी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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