देशभर में कोरोना वायरस के कहर के बीच रविवार (25 अप्रैल 2021) को NDTV ने कोरोना वायरस की दूसरी लहर के बारे में चर्चा करने के लिए महामारी विशेषज्ञ एरिक फीगल-डिंग को टीवी पर आमंत्रित किया।
पत्रकार विष्णु सोम को दिए इंटरव्यू में एरिक फीगल-डिंग ने दावा किया, “भारत में डेटा बहुत खराब है। मौतों की संख्या ठीक से नहीं बताई जा रही है। भारत में आगामी 1 अगस्त तक लाखों लोगों की मौत हो सकती है।” उन्होंने यह पूर्वानुमान व्यक्त किया कि देश में मरने वालों की संख्या 1 मिलियन नहीं भी हो सकती है, लेकिन अगस्त तक 5 मिलियन भी पार कर सकती है। उन्होंने भारत सरकार से लोगों को मुफ्त सहायता देने और देश में कर्फ्यू लागू करने को कहा। पेशे से एक “महामारी विज्ञानी” एरिक फीगल-डिंग ने भी राजनीतिक रैलियों पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया है।
विशेषज्ञ ने यह भी दावा किया कि मौतों के जो आँकड़े सरकार के द्वारा जारी किए जा रहे हैं, हकीकत में श्मशान में 20 से 50 गुना ज़्यादा मौतें होती हैं। हालाँकि, उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि कोविड -19 दुनिया में मौत का एकमात्र कारण नहीं है और लोग अन्य बीमारियों से भी मर सकते हैं।
आगे के संदर्भ के लिए बता दें कि भारत में हर दिन लगभग 27,000 लोग सभी कारणों से मरते हैं। वर्तमान और अगस्त के बीच तीन महीने हैं, जो लगभग 90 दिनों का है। यानी भारत में सभी कारणों से अब और अगस्त के बीच औसतन 2,430,000 लोगों की मृत्यु होगी। जबकि, विशेषज्ञ के अनुसार, अगस्त तक अकेले कोविड -19 की मौत 5 मिलियन को पार कर सकती है।
इससे पहले 16 अप्रैल को इंडिया टुडे को दिए इंटरव्यू में महामारी विशेषज्ञ ने दावा किया कि भारत में कुल मामलों की संख्या वास्तव में दर्ज किए जा रहे आँकड़ों की 5-10 गुना अधिक हो सकती है।
एरिक फीगल-डिंग कौन हैं?
हार्वर्ड टीसी चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के अनुसार, एरिक फीगल-डिंग एक जन स्वास्थ्य महामारी विज्ञानी, आहार विशेषज्ञ और हेल्थ इकोनॉमिस्ट हैं। हालाँकि, सामान्य तौर पर ये जैसे दिखते हैं उससे कहीं अधिक हैं। वह कोरोना वायरस के स्टार एक्सपर्ट के रूप में उभरे हैं। जितनी प्रसिद्धि इनकी हुई है उतनी न तो किसी स्वास्थ्य शोधकर्ता / महामारी विज्ञानी या वैज्ञानिक की भी नहीं हुई। उन्हें कोरोना वायरस पर एक रिसर्च पेपर पढ़ने का मौका मिला था, जिसमें उन्होंने पिछले साल 2020 में जनवरी में एक महामारी के प्रकोप होने की भविष्यवाणी की थी। विशेषज्ञ डिंग एक संक्रामक रोग विशेषज्ञ भी नहीं हैं, वह एक पुरानी बीमारी महामारी विशेषज्ञ हैं।
एक ट्वीट में (जो अब डिलीट हो गया है) उन्होंने लिखा, “HOLY MOTHER OF GOD- नया कोरोनोवायरस 3.8 है !!! कितना बुरा है कि इसका प्रजनन RO मूल्य? यह थर्मोन्यूक्लियर महामारी का खराब स्तर है – मेरे पूरे करियर में ट्विटर के बाहर कभी भी ऐसा नहीं देखा। मैं अति नहीं कर रहा हूँ। इसके बाद डिंग का ट्वीट वायरल हो गया और फॉलोवर्स की संख्या 2000 से 1,60,000 तक पहुँच गई। इसके बाद एरिक फीगल-डिंग को सीएनएन समेत दूसरे लिबरल टीवी चैनल्स कोरोना महामारी के बारे में बात करने के लिए बुलाने लगे।
उनकी प्रसिद्धि बढ़ने के बाद कई महामारीविदों ने उनकी साख पर सवाल उठाए हैं। नाम न छापने की शर्त पर, एक महामारीविज्ञानी ने उच्च शिक्षा के क्रॉनिकल को बताया कि एरिक फीगल-डिंग की संक्रामक बीमारियों पर रिसर्च की पृष्ठभूमि शून्य है। उन्होंने डिंग को ‘अर्ध-सत्य अर्थात झूठ का पुलिंदा’ करार दिया। एक अन्य महामारी विज्ञानी ने खेद व्यक्त किया, “हर कोई उनसे बहुत निराश और दुखी है। हमने उसे बदनाम करने के लिए ऐसा नहीं किया है।” हार्वर्ड के महामारी विज्ञान के प्रोफेसर मार्क लिप्स्टिक (Marc Lipstisch) ने भी डिंग को अयोग्य होने के बाद भी चीप पब्लिसिटी का भूखा बताया है।
पिछले साल 19 मार्च को मार्क लिप्स्टिक ने ट्वीट किया था कि उनके जैसे महामारी विज्ञानी खुद की प्रसिद्धि के लिए मजबूत संबंधों का दोहन करने वाले चार्लटन को पसंद नहीं करते हैं। अब हटाए गए ट्वीट में उन्होंने कहा था कि डिंग का कोरोना वायरस का विश्लेषण 80% पारंपरिक ज्ञान पर आधारित था, 20 फीसदी दिखावे का विज्ञान है, जिससे 100 प्रतिशत का जन्म होता है। मार्क लिप्स्टिक ने आगे कहा, “ऊपर दिए गए प्रतिशत में जो वो कहते हैं वो गलत नहीं है। लेकिन अक्सर कुछ गलत हो जाता है कि आपको जानकारी के दूसरे हिस्सों को ढूँढना चाहिए।”
एरिक फेगल-डिंग न्यूट्रिशनिस्ट से बने कोरोनो वायरस विशेषज्ञ
मार्क लिप्स्टिक ने आगे जोर दिया, “दर्जनों ऐसे अच्छे कोरोना एक्सपर्ट हैं, जिन्हें सुना जा सकता है। एरिक एक आहार विशेषज्ञ हैं। एरिक के पास महामारी विज्ञान में प्रशिक्षण है, लेकिन यह एक बड़ा क्षेत्र है। ” दिलचस्प बात यह है कि उच्च शिक्षा के क्रॉनिकल ने यह भी पाया कि एरिक फीगल-डिंग के अकादमिक लेखों में से सभी व्यायाम और आहार के स्वास्थ्य के प्रभावों पर केंद्रित है। उनका एक लिस्टेड रिसर्च पेपर पहनने योग्य उपकरणों के बारे में था, जो शारीरिक गतिविधि को ट्रैक करने में मदद कर सकता था। उनके विद्वतापूर्ण लेख बचपन का मोटापा, रेड मीट के सेवन और कैंसर के खतरे आदि के प्रभावों पर भी आधारित थे।
उनकी शैक्षणिक रुचि आहार पर फोकस थी, जिसके लिए उन्हें हार्वर्ड विश्वविद्यालय के पोषण विभाग में “अवैतनिक विजिटिंग साइंटिस्ट” के रूप में नियुक्त किया गया था। दिलचस्प बात यह है कि ऐसी नियुक्तियाँ लगभग एक साल तक चलती हैं। ऐसे में उन्हें कई बार विशेष ज्ञान से लैस व्यक्ति के रूप में खुद को बढ़ावा देने के लिए चेतावनी दी गई थी। हालाँकि, महामारी एरिक फीगल डिंग के लिए आपदा में प्रसिद्धि के अवसर के रूप में साबित हुई।
चेतावनी के बाद भी खुद को प्रमोट करना रखा जारी
चीजों को बदतर बनाने के लिए केवल एरिक फीगल-डिंग इकलौते नहीं हैं, जिन्होंने इंटरनेट पर सक्रिय लोगों को चेतावनी दी थी। पिछले दिनों एनपीआर से बात करते हुए, एपिडेमियोलॉजिस्ट डब्ल्यू इयान लिपकिन ने चेतावनी देते हुए कहा था, “इसका प्रकोप बहुत बड़ा होता जा रहा है। अगर हम इस वायरस से निपटना चाहते हैं तो हमें बहुत तेज़ी से आगे बढ़ना होगा।”
लेकिन, डिंग को केवल इसीलिए मान्यता मिली है, क्योंकि उन्होंने हाल ही में रिसर्च पेपर के कुछ अंश को लिखा था। अपने ट्वीट में डिंग ने झूठा दावा किया था कि SARS-Covid-1 का R0 (जो 2003 में महामारी का कारण बना) 0.49 के आसपास के वास्तविक आँकड़े की तुलना में 0.49 फीसदी था। इस झूठे दावे के लिए उन्हें अपने फॉलोवर्स को ये स्पष्टीकरण देना पड़ा था कि वो संक्रामक रोग विशेषज्ञ या महामारी विशेषज्ञ नहीं थे।
जिस ट्वीट के बाद एरिक फीगल-डिंग लाइम लाइट में आए थे उन्हें सोशल मीडिया पर आलोचना के बाद मजबूरन डिलीट करना पड़ा। लोगों ने उन की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा किया था। एचआईवी और कोरोनावायरस के बीच आनुवंशिक समानता का सुझाव देने के मामले में भी उन्हें अपने ट्वीट्स को डिलीट करना पड़ा था। उन्होंने एक बार वायरस के पुनः सक्रिय होने और पुन: संक्रमण की समानता को भी समाप्त कर दिया था। डिंग ने सुझाव दिया था कि एन -95 मास्क स्वास्थ्य कर्मियों को फ्लू से रोक नहीं सकते हैं और वुहान कोरोन वायरस के खिलाफ भी यह असरदार नहीं है। हालाँकि, कुछ हफ्ते बाद वह ट्विटर अभियान #मास्क4all में सबसे आगे थे।
एरिक फीगल-डिंग और ‘डैमेज कंट्रोल’ तंत्र
हार्वर्ड के महामारी विज्ञानी ने अपने दोहरे भाषणों पर कई बार फँसने के बाद उसे वाइटवॉश करने की कोशिश की है। डिंग ने कहा था, “हम सभी ने एक डिटेल या वाई एक्सिस या एक्स एक्सिस को गलत पढ़ा है। मुझे लगता है कि मैं जो कुछ भी पढ़ रहा हूँ उसके वाक्यों को जोड़कर जनता के लिए उसका अच्छा अनुवाद करने में मैं सक्षम हूँ।” एरिक फ़ीगल-डिंग ने मार्क लिप्स्टिक द्वारा की गई टिप्पणियों पर भी आपत्ति जताई। उन्होंने अपना बचाव करते हुए कहा था, “यह दावा बहुत ही आश्चर्यजनक है कि 20 प्रतिशत दिखावे का विज्ञान है। मैं एक महामारी के बीच में इस तरह की नीचता को बढ़ावा नहीं देना चाहता।”
संक्रामक रोगों के विशेषज्ञ नहीं हैं डिंग
एरिक फीगल-डिंग ने भी कहा है कि वह संक्रामक रोगों के विशेषज्ञ नहीं थे और उन्होंने कभी भी खुद को गलत नहीं बताया। उन्होंने कहा कि उनका ज्ञान ‘सामान्य महामारी विज्ञानी’ के रूप में उनकी डिग्री पर आधारित है। उन्होंने अपने ट्विटर थिएट्रिक्स के बारे में बात करते हुए कहा, “मेरे बहुत से फॉलोवर्स ऐसे हैं कि जब तक आप उन्हें स्पून फीडिंग नहीं कराओ नहीं पढ़ पाते।” संक्रामक रोगों में कोई पृष्ठभूमि नहीं होने के बावजूद, एरिक फीगल-डिंग को शीर्ष 100 हेल्थकेयर पेशेवरों की कोविड सूची में दूसरे स्थान पर रखा गया है।
उन्हें फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स के अध्यक्ष अली नूरी का भी काफी समर्थन मिला। नूरी ने जोर देकर कहा, “मुझे लगता है कि उनकी कुछ आलोचना उनके अपने स्टाइल की वजह से हो रही है न कि जो वो कह रहे हैं उसके कारण। यह आमतौर पर वैज्ञानिक नहीं करते हैं, लेकिन एरिक यह काम कर रहा है।” यहाँ तक कि न्यूजर्सी के डेमोक्रेटिक गवर्नर फिल मर्फी ने न्यू जर्सी में हालात से निपटने के लिए डिंग की मदद लेने की कसम खाई थी।
NDTV, हार्वर्ड, और कोरोनावायरस में एक गैर-विशेषज्ञ
डिंग का अधिक मुँहफट होना, विशेषज्ञता की कमी, हार्वर्ड विश्वविद्यालय के साथ उनका जुड़ाव और भारत में अगस्त तक 5 मिलियन कोविड-19 की मौत जैसे बड़े-बड़े दावों को करने की क्षमता ने उन्हें NDTV का आदर्श अतिथि बनाया। ऐसे भारतीय जिन्हें अपनी समस्याओं को समझने और उसके हल और देश को बदनाम करने के लिए विदेशियों के दिमाग की जरूरत होती है, एरिक उनके लिए सबसे बेहतर है।
भारत में जब कोरोना वायरस के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। ऐसे में एनडीटीवी को कोरोना में गैर विशेषज्ञता वाले व्यक्ति की जरूरत थी। अपनी राजनीतिक टिप्पणियों से एरिक ने देश में मोदी विरोधी लॉबी को चीनी कोरोना वायरस को लेकर भय और डर फैलाने की खुराक दे दी है।