हिंदू और भारत विरोधी एजेंडा फैलाने के लिए कुख्यात द वायर की आरफा खानुम शेरवानी ने हाल ही में उस आदमी को याद किया जिसने भारत के टुकड़े करने का विचार सबसे पहले दिया था। आरफा ने 17 अक्टूबर, 2024 को सर सैयद अहमद खान को याद करते हुए कहा कि आज के भारत में मुस्लिमों को उनकी जरूरत है। आरफा खानुम शेरवानी ने कहा कि सर सैयद अहमद खान अकेले ऐसे नेता थे जो तथाकथित तौर पर मुसलमानों के खिलाफ फैलाई जा रही नफरत से निपटने के लिए मुस्लिमों को राह दिखा सकते थे।
आरफा ने खान की 207वें जन्मदिन के मौके पर एक्स (पहले ट्विट्टर) पर लिखा, “आज भारत और भारतीय मुसलमानों को सर सैयद अहमद खान की पहले से कहीं ज्यादा जरूरत है। हम अपने इतिहास के उस मोड़ पर हैं जहाँ सरकार और समाज ने मुसलमानों को पूरी तरह से त्याग दिया है। दिशाहीन और निराश मुस्लिम एक नेता की तलाश में है।”
Today India and Indian Muslims need Sir Syed Ahmed Khan more than ever before.
— Arfa Khanum Sherwani (@khanumarfa) October 17, 2024
We are at a juncture in our history where the state and the society has totally abandoned its Muslims.
The directionless and hopeless community is desperately searching for a leader. #SirSyedDay pic.twitter.com/2Mf3IOn89X
आरफा ही नहीं बल्कि कई अन्य वामपंथी, इस्लामी कट्टरपंथी और बाकियों ने खान की तारीफ में कसीदे पढ़े। यह वही सर सैयद अहमद खान थे जो इस्लाम के आधार पर भारत को दो हिसों में बाँटना चाहते थे। कॉन्ग्रेस के छात्र संगठन NSUI के सोशल मीडिया के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जीशान अहमद खान ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) की स्थापना और मुस्लिमों में शिक्षा की विरासत छोड़ने के लिए उनकी तारीफ की।
जीशान अहमद खान ने लिखा, “शिक्षा सबसे बड़ी विरासत है जो माता-पिता अपने बच्चों के लिए छोड़ सकते हैं। AMU के संस्थापक डॉ. सर सैयद अहमद खान को उनकी 207वीं जयंती, सर सैयद दिवस पर श्रद्धांजलि। सर सैयद अहमद खान ने AMU के रूप में देश और दुनिया के लिए एक महान विरासत छोड़ी है!”
तालीम सबसे बड़ी विरासत है जिसे माँ-बाप अपने बच्चों के लिए छोड़ कर जा सकते हैं
— Zeeshan Ahmad Khan (@ZeeshanKhan7001) October 17, 2024
AMU के बानी डॉ सर सैयद अहमद ख़ान के 207 वें यौम-ए-पैदाइश सर सैयद डे पर उनको खिराज-ए-अक़ीदत। सर सैयद अहमद खान ने एएमयू की शक्ल में देश और दुनिया को एक महान धरोहर सौप कर गए हैं!#SirSyedDay pic.twitter.com/0tDuZW0eLy
AMU के आधिकारिक ट्विटर हैंडल ने भी इस संबंध में एक ट्वीट किया और इसमें एक वीडियो डाला। यह वीडियो अब सोशल मीडिया पर वायरल है।
#AMU Gears up to Celebrate #SirSyedDay
— Aligarh Muslim University (@AMUofficialPRO) October 16, 2024
Let us revisit #SirSyed's Vision of Empowerment through Character Building, Modern Education & Scientific Temper #aligarhmuslimuniversity #aligarh #India #amu #eid_e_aligs #सरसैयद
👇 Preparation for Sir Syed Day Celebration at AMU pic.twitter.com/PhhqQxVcdr
सर सैयद अहमद खान पर इन महान बातों के बीच यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि भले ही इस्लामी और वामपंथी स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर को ‘दो राष्ट्र सिद्धांत’ प्रचारित करने का आरोप लगाते हों, लेकिन असल में यह विचार सबसे पहले इस्लामी नेता सर सैयद अहमद खान ने सबसे पहले इस सिद्धांत को हवा दी थी।
सैयद अहमद खान ने 1876 में कहा था, “मुझे अब यकीन हो गया है कि हिंदू और मुसलमान कभी एक राष्ट्र नहीं बन सकते क्योंकि उनका मजहब और जीवन जीने का तरीका एक दूसरे से बिल्कुल अलग है।” सात साल बाद, वर्ष 1888 में, उन्होंने इसी तरह की बातें कही थीं।
सर सैयद अहमद ने लिखा, “दोस्तों, भारत में हिंदू और मुसलमान के नाम से दो प्रमुख देश रहते है। हिंदू या मुसलमान होना निजी आस्था का मामला है जिसका आपसी रिश्तों और बाहरी परिस्थितियों से कोई लेना-देना नहीं है। ऐसे में भगवान का हिस्सा भगवान पर छोड़ दो और जो तुम्हारा है, उससे खुद को मतलब रखो। भारत हम दोनों का घर है…भारत में इतने लंबे समय तक रहने से दोनों का खून बदल गया है।”
सर सैयद अहमद खान कोई साधारण इस्लामी विद्वान नहीं थे, बल्कि एक कट्टरपंथी मौलवी थे, जो हिंदुओं के खून के प्यासे थे। 14 मार्च, 1888 को एक भाषण के दौरान उन्होंने कहा आपको याद रखना चाहिए कि भले ही मुसलमानों की संख्या हिंदुओं से कम है, और भले ही मुसलमानों में अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त करने वाले लोग बहुत कम हैं, फिर भी मुसलमानों को महत्वहीन या कमजोर नहीं समझा जाना चाहिए।”
आगे उन्होंने खूनखराबे की बात करते हुए कहा, “अपनी मौजूदगी को बनाए रखने के लिए मुसलमान अकेले ही काफी हैं। लेकिन मान लीजिए कि वो ना भी हों तब हमारे मुसलमान भाई, पठान, अपनी पहाड़ी घाटियों से टिड्डियों के झुंड जैसे निकलेंगे और उत्तर से लेकर बंगाल के अंतिम छोर तक खून की नदियाँ बहाएँगे।”
इसी भाषण में खान ने कहा, “अब मान लीजिए कि अंग्रेज लोग और सेना भारत छोड़कर चले जाएँ, और अपने साथ अपनी सारी तोपें, अपने हथियार और बाकी सब कुछ भी अपने साथ ले जाएँ तो भारत पर कौन राज करेगा। क्या दो देश – मुसलमान और हिंदू – इन परिस्थितियों में एक ही सिंहासन पर बैठ सकते हैं और एक बराबर से रह सकते हैं। इसका उत्तर है नहीं।”
आगे खान ने कहा, “मुसलमान और हिन्दुओं में से एक को दूसरे पर जीत हासिल करनी होगी। यह आशा करना कि दोनों एक बराबर में रह सकें असंभव और अकल्पनीय की इच्छा करना है। लेकिन जब तक एक दूसरे पर विजय प्राप्त नहीं कर लेता और उसे अपनी बात मानने को मजबूर नहीं करता तब तक शांति नहीं आती।”
सर सैयद अहमद खान का साफ़ तौर पर मानना था कि हिंदुओं और मुसलमानों का एक साथ रहना असंभव और अकल्पनीय विचार है, इसलिए उन्होंने प्रस्ताव दिया था कि दो देश बनाना, जिसमें एक हिंदुओं तथा दूसरों मुसलमानों के लिए ही देश में शांति लेकर आ सकते हैं।
खान का मानना था कि मुसलमानों और हिंदुओं के धर्म, संस्कृति और जीवन शैली में बुनियादी अंतर हैं और यह अंतर इतने बड़े हैं कि उन्हें अलग-अलग समाज और राजनीतिक इलाका चाहिए। सर सैयद अहमद खान ने कहा था कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद, मुसलमानों को काफी कष्ट झेलना पड़ा था। खान ने मुस्लिमों को अंग्रेजों से संबंध सुधारने को कहा था। खान का मानना था कि अंग्रेजों के साथ मिलने से मुसलमान ज्यादा समृद्ध हो सकेंगे। उनका कहना था कि कॉन्ग्रेस हिन्दुओं की पार्टी थी।
सर सैयद अहमद खान का कहना था कि आने वाले समय में कॉन्ग्रेस में मुसलमानों को दरकिनार कर दिया जाएगा और उन्हें कॉन्ग्रेस के अलावा अपना खुद एक मुस्लिम नेतृत्व तैयार करना होगा। इसी विचार के चलते आगे मुस्लिम लीग का जन्म हुआ जिसने देश का बँटवारा करवाया और जिन्ना जैसे नेता पैदा किए। मुसलमानों में अंग्रेजी शिक्षा की कमी को देखते हुए उन्होंने AMU की स्थापना की थी, इसे तब एंग्लो मोहम्मडन स्कूल कहा जाता था।
आरफा खानुम शेरवानी जब सर सैयद अहमद खान को याद करते हुए यह कहती हैं कि आज मुसलमानों को सही तरीके से केवल वही ‘राह’ दिखा सकते हैं, उनका मतलब होता है कि हिन्दुओं और मुस्लिमों के बीच खाई को और गहरा करना चाहती हैं। उनके ‘राह दिखाने’ से आखिर क्या तात्पर्य है?
क्या वह चाहती हैं कि वर्ष 1888 में हिंदुओं के खून के प्यासे होने की बात कहने वाले सर सैयद अहमद खान वापस आएँ। क्या वह चाहती हैं कि खान मुस्लिमों को हिंदुओं पर जीत हासिल करने का आदेश दें जैसा उन्होंने 1888 में कहा था? या वह चाहती हैं कि मुस्लिम हिंदुओं से प्रतिस्पर्धा करें और हिंदू बहुल देश भारत में अपनी सत्ता चलाएँ?
वायर की ‘पत्रकार’ का सर सैयद अहमद खान का समर्थन करना दिखाता है कि वह इस बात में विश्वास करती हैं कि मुस्लिम और हिंदू एक देश में नहीं रह सकते। आरफा खानुम शेरवानी और उनके समर्थकों जैसे वामपंथी तथा इस्लामी कट्टरपंथियों ने हमेशा ही जिहाद और इस्लामी आतंक को कम करके दिखाया है। यह लोग हिंदुओं पर होने वाले अत्याचार को यह कह कर नहीं दिखाते हैं कि इससे अल्पसंख्यक खतरे में पड़ जाएँगे। ध्यान देने वाली बात यह है कि इस्लामी कट्टरपंथी भारत को 2047 तक मुस्लिम राष्ट्र में तब्दील करना चाहते हैं।
यह लेख मूल रूप से अंग्रेजी में सिद्धी सोमानी ने लिखा है। इसे अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।