केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली 1 फरवरी 2019 को अपना अंतरिम बजट पेश करने वाले हैं, मोदी सरकार के कार्यकाल का यह अंतिम बजट होगा। उम्मीद लगाई जा रही हैं कि इस अंतरिम बजट में किसानों के मुद्दे को प्राथमिकता दी जाएगी। देश में किसानों का मुद्दा सरकार के लिए सबसे ज्यादा संवेदनशील रहा है। एक ओर जहाँ कॉन्ग्रेस पार्टी किसानों की ऋण माफ़ी को चुनावी हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है, वहीं NDA सरकार के लिए अंतरिम बजट में किसानों की माँगों और लम्बे समय से चली आ रही नाराज़गी को दूर करना प्राथमिकता हो सकती है।
मोदी सरकार किसानों को राहत देने के लिए कई बड़े फ़ैसले इस बजट में ला सकती है। इसमें फ़सल के लिए लिया जाने वाला ऋण ब्याज-मुक्त करना और ओडीशा तथा कर्नाटक की तरह ही छोटे किसानों को आर्थिक मदद देना भी शामिल हो सकता है। इस प्रकार संकेत मिल रहे हैं कि सरकार किसानों के साथ उनके परिवारों को भी लाभान्वित करने के उद्देश्य से ‘पैकेज फ़ॉर्मूला’ ला सकती है। इसमें किसानों के साथ साथ आर्थिक रूप से पिछड़े हुए परिवारों को भी मदद पहुँचाने के लिए योजना बनाई जा रही हैं।
‘इंडिया फर्स्ट’ बनाम ‘भारत’
2014 में अपने ‘इंडिया फर्स्ट’ के नारे के साथ आगे बढ़ने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए ‘भारत’ के साथ तालमेल मिलाना 2019 के लोकसभा चुनावों में चुनौती बन सकता है। इस कार्यकाल में समय-समय पर किसानों को मुद्दा बनाकर विपक्ष ने भी सरकार को घेरने की कोशिश की है।
गुजरात में पाटीदार समाज, जो मुख्यतः कृषि प्रधान है, उसके युवाओं ने रोजगार न मिलने को कारण बताकर आरक्षण के लिए आंदोलन चलाया। कहीं न कहीं महाराष्ट्र के दलित और मराठा आन्दोलन भी इसी माहौल की परिणिति हैं। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने जून 2017 में ₹34,022 करोड़ की वृहद कृषि ऋण माफ़ी योजना की शुरूआत की थी। इस योजना के जरिए भाजपा सरकार ने किसानों के ग़ुस्से को कुछ हद तक कम करने की कोशिश की है। मध्यप्रदेश में किसान आन्दोलन ने हिंसक रूप लिया। हालाँकि, शिवराज सरकार किसानों की मदद के लिए भावान्तर योजना भी लेकर आई, जिसकी तर्ज़ पर केंद्र सरकार किसानों को लेकर अंतरिम बजट बनाने का विचार कर रही है।
कुछ सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार किसानों की हालात में सुधार के लिए तेलंगाना और ओडिशा सरकार द्वारा शुरू की गई योजनाओं की भी समीक्षा कर रही है और इस योजना के लागू होने से राजस्व पर पड़ने वाले आर्थिक बोझ का अध्ययन किया जा रहा है। अंतरिम बजट में किसानों को ज्यादा से ज्यादा राहत पहुँचाने के लिए विभिन्न सरकार द्वारा की गई ऋण माफ़ी के साथ-साथ किसान हित में लिए गए अन्य निर्णयों की भी समीक्षा की जा रही है।
एक नज़र किसानों को लेकर चल रही विभिन्न राज्यों की योजनाओं पर
कॉन्ग्रेस सरकार की ऋण माफ़ी के चुनावी हथियार से निपटने के लिए भाजपा सरकार विभिन्न राज्यों के किसानों को लेकर चल रही योजनाओं पर निरंतर मंथन कर रही है। देखना यह है कि किस राज्य का मॉडल सरकार द्वारा चुना जाता है।
मध्यप्रदेश भावान्तर योजना
पिछले साल मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने जिस भावांतर योजना के ज़रिए 15 लाख किसानों की मदद की थी, केंद्र की मोदी सरकार भी उसी की तर्ज़ पर किसानों को फ़सल के न्यूनतम समर्थन मूल्य और बिक्री मूल्य के अंतर को सीधे खाते में भेजने पर विचार कर रही है।
ओडिशा का ‘कालिया’ (KALIA) फ़ॉर्मूला
कर्ज़ के बोझ तले दबे किसानों की मदद के लिए ओडिशा सरकार ने ‘जीविकोपार्जन एवं आय वृद्धि के लिए कृषक सहायता’ (KALIA) योजना चालू की है। इस स्कीम के तहत किसानों की आय बढ़ाकर उन्हें आर्थिक रूप से समृद्ध किया जाएगा। ओडिशा सरकार ने ₹10,000 करोड़ की ‘जीविकोपार्जन एवं आय वृद्धि के लिए कृषक सहायता’ (KALIA) को मंजूरी दी है। इस स्कीम के द्वारा किसानों को कर्ज़माफ़ी के बजाय सीमांत किसानों को दायरे में लाकर फ़सल के लिए आर्थिक मदद देने का ज़रिया बनाया गया है। ‘KALIA’ के तहत छोटे किसानों को रबी और खरीफ में बुआई के लिए प्रति सीजन ₹5-5,000 की वित्तीय मदद मिलेगी, अर्थात सालाना ₹10,000 दिए जाएंगे।
झारखंड मॉडल
झारखंड की रघुवर दास सरकार भी मध्यम और सीमांत किसानों के लिए ₹2,250 करोड़ की योजना की घोषणा कर चुकी है। झारखंड में 5 एकड़ तक खेत पर सालाना प्रति एकड़ ₹5,000 मिलेंगे, एक एकड़ से कम खेत पर भी ₹5,000 की सहायता मिलेगी। इस योजना की शुरुआत झारखंड सरकार 2019-20 के वित्त वर्ष से करेगी जिसमें लाभार्थियों को चेक या डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफ़र के ज़रिए दिए जाएँगे।
तेलंगाना का ऋतु बंधु मॉडल
ओडीशा और झारखंड के साथ ही केंद्र सरकार तेलंगाना सरकार द्वारा शुरू की गई किसान योजनाओं की भी पड़ताल कर रही है। तेलंगाना सरकार ने किसानों के लिए ऋतु बंधु योजना शुरू की है। यहाँ के किसानों को प्रति वर्ष प्रति फ़सल ₹4000 प्रति एकड़ की रकम दी जाती है। दो फ़सल के हिसाब से किसानों को हर साल ₹8000 प्रति एकड़ मिल जाते हैं।
लगातार घट रही कृषि योग्य भूमि है चुनौती
कृषि ऋण और कर्ज़ माफ़ी जैसी योजनाएँ कहीं ना कहीं सरकारी राजस्व पर दबाव बनाती हैं, फिर भी सरकार के लिए किसान प्राथमिकता रहे हैं और उसे मध्यम मार्ग तो निकालना ही होगा। समय के साथ-साथ कृषि योग्य भूमि भी देश में निरंतर घट रही है। इस तरह की कुछ तमाम चुनौतियाँ हैं, जिनसे होकर सरकार अपना अंतरिम बजट पेश करेगी। मोदी सरकार का यह आख़िरी बजट है, इस कारण सभी वर्गों की निगाह इस बजट पर रहनी सामान्य बात है।
आम धारणा है कि देश के चुनावों का मिज़ाज काफी हद तक देश का किसान तय करता है। देश में ज्यादातर लोग कृषि पर आश्रित हैं, तो यह ज़ाहिर सी बात है कि सरकार उसकी बनती है जिसके साथ देश का किसान रहता है। वर्तमान सरकार किसानों की दशा सुधारने के लिए निरंतर रूप से महत्वपूर्ण प्रयास करती आ रही है। लेकिन सच्चाई यह भी है कि पिछले 60 वर्षों की क्षतिपूर्ति करिश्माई तरीके से कर देना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है।