शनिवार (25 मई) को सरकार ने उच्चतम न्यायालय में सीधे-सीधे कहा कि राफेल सौदा देश के लिए मुनाफे का सौदा साबित हुआ है, और इस बात पर नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने भी मुहर लगा दी है। केंद्र ने यह भी कहा कि संप्रग सरकार के मुकाबले राजग सरकार द्वारा ख़रीदे गए लड़ाकू विमानों का ₹1000 करोड़ महंगा होना महज याचिकाकर्ताओं प्रशांत भूषण, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी के दिमाग का फितूर है।
मीडिया रिपोर्टों के आधार पर याचिका, CAG के आकलन से लैस सरकार
याचिकाकर्ताओं ने याचिका का आधार मीडिया में चली कुछ ख़बरों को बनाया था जिनमें दावा किया गया था कि कॉन्ग्रेस सरकार के समय तय की गई 126 राफेल की कीमत से 36 राफेल विमानों का सौदा (जो राजग सरकार ने किया था) ₹1000 करोड़ ज्यादा महंगा है। केंद्र ने इसके खिलाफ कैग की रिपोर्ट को रखते हुए याचिका के आधार और औचित्य को ही सवालिया घेरे में ला दिया है। सरकार ने न्यायालय को बताया कि उसने कैग को सभी मूल्य संबंधित जानकारियाँ, दस्तावेज और रिकॉर्ड मुहैया करा दिए थे। उनके आधार पर कैग ने विमानों की कीमत का एक स्वतंत्र आकलन किया, और मोदी सरकार के 36 विमानों के सौदे और मनमोहन सरकार के 126 विमानों के सौदे का अध्ययन किया।
केंद्र ने अपने 39 पन्नों के जवाब में कहा, “कैग का आकलन याचिकाकर्ताओं के उस मूल तर्क का समर्थन नहीं करता कि कि हर विमान को पहले तय की गई कीमत के मुकाबले ₹1000 करोड़ ज्यादा दाम देकर खरीदा गया। बल्कि कैग के कहे अनुसार तो 36 राफेल विमानों का सौदा तो अनुमानित मूल्य से 2.86% कम है। इसके अतिरिक्त नॉन-फर्म और फिक्स्ड कीमत का भी लाभ मिलेगा। इससे याचिकाकर्ताओं का केस ही खत्म हो जाता है।”
सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रख लिया फैसला
इसके बाद अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है। याचिका 14 दिसंबर के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार के लिए पड़ी थी। उस फैसले में अदालत ने केंद्र सरकार को राफेल विमानों की खरीद प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी से क्लीन चिट दे दी थी।