Sunday, December 22, 2024
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गाँधीवाद की आड़ लेकर सजा से बचने की कोशिश कर रहा कश्मीरी आतंकी यासीन मलिक: अपहरण, हत्या, आतंकवाद और टेरर फंडिंग के मामलों में रहा है शामिल

मलिक ने कहा कि उसने 30 साल पहले 'सशस्त्र संघर्ष' (यानी आतंकवाद) छोड़ दिया था और अब 'संयुक्त स्वतंत्र कश्मीर' के लिए गाँधीवादी तरीके से लड़ाई लड़ने का फैसला किया।

जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के आतंकी यासीन मलिक, जिसे भारत के खिलाफ साजिश रचने और जंग छेड़ने का दोषी पाया गया था, ने अब कोर्ट में नया दावा किया है कि उसने 1994 से ‘गाँधीवादी तरीका’ अपना लिया था। एक ऐसा इस्लामिक कट्टरपंथी, जिसने अपनी पूरी ज़िंदगी आतंकवाद और मासूमों की हत्याओं में बिताई हो, अब सजा से बचने के लिए इस तरह के दावे कर रहा है।

हाल ही में दाखिल किए गए एक एफिडेविट में यासीन मलिक ने अपने आतंकी ऑर्गनाइजेशन पर लगे बैन को हटाने की माँग की है। उसने खुद को गाँधीवादी बताया है। उसने कहा कि उसने 30 साल पहले ‘सशस्त्र संघर्ष’ (यानी आतंकवाद) छोड़ दिया था और अब ‘संयुक्त स्वतंत्र कश्मीर’ के लिए गाँधीवादी तरीके से लड़ाई लड़ने का फैसला किया। लेकिन ये दावा सिर्फ उसकी सजा से बचने की कोशिश है, क्योंकि उसका खौफनाक अतीत साफ दिखाता है कि उसकी असली मंशा क्या रही है।

हालाँकि, UAPA ट्रिब्यूनल ने JKLF-यासीन पर लगे बैन को 5 साल और बढ़ा दिया है। मलिक ने अपने एफिडेविट में ये भी कहा कि केंद्र सरकार के बड़े अफसर और नेता उससे कश्मीर मसले का शांतिपूर्ण समाधान ढूँढने के लिए बात करते रहे हैं। लेकिन उसका ये दावा भी शक के घेरे में आता है, क्योंकि उसकी हरकतें बार-बार कश्मीर में हिंसा और दहशत फैलाने वाली रही हैं।

मोदी सरकार ने यासीन मलिक के फर्जी और गुमराह करने वाले दावों की पोल खोल दी। सरकार ने कोर्ट को बताया कि कैसे यासीन मलिक ने 2008 से 2016 के बीच जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को फंडिंग करके माहौल खराब किया। सरकार ने UAPA ट्रिब्यूनल को बताया कि मलिक ने अपने नए ‘शांतिप्रिय’ चेहरे का इस्तेमाल करके हिंसक अभियान के लिए पैसे जुटाए। JKLF-यासीन ने अपनी राष्ट्रविरोधी गतिविधियाँ जारी रखीं और 2008, 2010 और 2016 के दंगों में उसकी बड़ी भूमिका रही।

यासीन मलिक की आतंकी जिंदगी और गुनाहों की लंबी लिस्ट

मई 2022 में, स्पेशल NIA कोर्ट ने यासीन मलिक को जम्मू-कश्मीर में आतंकी फंडिंग गतिविधियों के लिए उम्रकैद की सजा दी थी। कोर्ट ने उसे UAPA के तहत दोषी माना। मलिक ने खुद केस में गुनाह कबूल किया था और माना था कि वो जम्मू-कश्मीर में टेरर फंडिंग एक्टिविटीज से जुड़ा हुआ था। NIA ने मलिक के लिए मौत की सजा की डिमांड की थी, लेकिन कोर्ट ने उसे दो उम्रकैद और पाँच 10-10 साल की सजा सुनाई। हालाँकि, ये सारी सजाएँ साथ-साथ चलेंगी।

मलिक पर 1989 में पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबिया सईद के किडनैपिंग का और 1990 की शुरुआत में 5 IAF कर्मियों की हत्या का भी आरोप है। इसके अलावा, मलिक पर जस्टिस नीलकंठ गंजू की हत्या का आरोप है, जिन्होंने JKLF आतंकी मकबूल भट्ट को मौत की सजा सुनाई थी। इसके साथ ही, मलिक पर श्रीनगर में दूरदर्शन केंद्र के पूर्व डायरेक्टर लस्सा काउ की हत्या में भी शामिल होने का इल्जाम है।

यासीन मलिक का ‘गांधीवादी तरीका’ सिर्फ दिखावा है। उसकी आतंकी गतिविधियाँ और हिंसक हरकतें उसकी असली सच्चाई बताती हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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