जम्मू-कश्मीर में आतंकियों का नेटवर्क तोड़ने के लिए केंद्र शासित प्रदेश की विभिन्न जेलों में बंद आतंकी, पत्थरबाज, ओवर ग्राउंड वर्कर और आतंकियों के मददगारों को अब प्रदेश के बाहर की जेलों में शिफ्ट किया जा रहा है। शनिवार को (23 अक्टूबर 2021) 38 कैदियों को आगरा सेंट्रल जेल शिफ्ट किया गया। इससे पहले 18 कैदियों को आगरा भेजा गया था। यह कार्रवाई हाल की टारगेट किलिंग की घटनाओं के मद्देनजर की गई है।
आगरा सेंट्रल जेल के सीनियर सुप्रीटेंडेंट बीके सिंह ने बताया शनिवार को जम्मू के 11 और कश्मीर के 27 कैदियों को आगरा जेल पहुँचाया गया है। ये वे कैदी हैं जो अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में आतंकी घटनाओं में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार हुए थे।
बीके सिंह ने कहा कि आगरा जेल में सुरक्षा के मद्देनजर पीएस की एक कंपनी भी तैनात की गई है। जेल के अंदर भी सुरक्षा और कड़ी कर दी गई है। टारगेट किलिंग की घटनाओं के दौरान इस महीने 17 अक्टूबर को 15 कश्मीरी बंदी पहले आ चुके हैं। तीन कश्मीरी बंदी पहले से ही इन्हीं जेल में हैं, इनमें से दो पाक अधिकृत कश्मीर के हैं।
जम्मू-कश्मीर के पूर्व DGP और सिक्योरिटी एक्सपर्ट एसपी वैद का कहना है कि इस तरह के आतंकियों को जम्मू-कश्मीर से निकाल कर दूसरे राज्यों में भेजने से इनका आतंकी नेटवर्क कमजोर होगा, आतंकी घटनाएँ कम होगीं। ऐसा इसलिए क्योंकि दूसरे राज्यों में इनका सपोर्ट सिस्टम नहीं होगा, तो ये खुद-ब-खुद कमजोर पड़ जाएँगे।
उल्लेखनीय है कि कश्मीर घाटी की अलग-अलग सेंट्रल जेलों में बंद 26 आतंकियों का पहला ग्रुप शुक्रवार (22 अक्टूबर 2021) को उत्तर प्रदेश की आगरा सेंट्रल जेल के लिए रवाना किया गया था। ये आतंकी जेल में रहकर भी बाहर स्लीपर सेल के साथ लिंक जोड़े हुए थे। आने वाले दिनों में और भी आतंकियों को दूसरे राज्यों की जेल में शिफ्ट कराने की योजना है। आतंकियों को आगरा के अलावा दिल्ली, हरियाणा और पंजाब की जेलों में शिफ्ट किया जा सकता है।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया, “ये ओवरग्राउंड वर्कर्स आतंकवादियों को फोन कॉल और आगंतुकों के माध्यम से रसद और अन्य सहायता प्रदान करते रहे हैं। उन्हें घाटी से बाहर निकालना इस आतंकी नेटवर्क को तोड़ने की कोशिश है। बंदियों को सेंट्रल जेल, श्रीनगर जिला जेल, बारामूला, जिला जेल कुपवाड़ा, सेंट्रल जेल जम्मू कोठभलवाल और राजौरी और पुँछ की जिला जेलों से बाहर निकाला जा रहा है।”
बता दें कि यह पहली बार नहीं है जब जम्मू-कश्मीर की जेल में बंद कैदियों को दूसरे राज्यों की जेल में शिफ्ट किया जा रहा है। सितंबर 2019 में भी जम्मू कश्मीर से बंदियों को आगरा भेजा गया था। कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद वहाँ सक्रिय अलगाववादी लोगों को तत्कालीन सरकार ने गिरफ्तार किया था। 80 से अधिक कैदियों को भेजा गया था। इन सभी बंदियों को लोक सुरक्षा अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया था।
इससे पहले जम्मू-कश्मीर की जेल में बंद पाकिस्तान के सात आतंकियों को तिहाड़ जेल शिफ्ट करने की माँग की गई थी। केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासन का कहना था कि ये आतंकी स्थानीय कैदियों की सोच में बदलाव करके उन्हें आतंक के रास्ते पर धकेलने में जुटे हैं। जिन आतंकियों को शिफ्ट करने की माँग की थी उसमें लश्कर-ए-तैयबा का वकास मंजूर उर्फ काजिर, मोहम्मद अब्दुल्ला उर्फ अबु तलहा और जफर इकबाल के अलावा पाकिस्तान में मुल्तान का रहने वाला लश्कर आतंकी जुबैर तलहा जरूर उर्फ तलहा और मोहम्मद अली हुसैन शामिल था।
लश्कर-ए-तैयबा आतंकी जाहिद फारूक को जम्मू जेल से दूसरी जगह शिफ्ट करने के लिए 14 फरवरी को कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आतंकी हमले के एक दिन बाद सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई थी। फारूक को सुरक्षा बलों ने 19 मई 2016 को तब गिरफ्तार किया था, जब वह सीमा सुरक्षा बाड़ पार करने की कोशिश कर रहा था।
राज्य सरकार ने कहा कि इस बात का पक्का विश्वास है कि कैदी और अन्य व्यक्तियों को स्थानीय लोगों को समर्थन हासिल है। इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि उन्हें आतंक संबंधी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए सूचनाएँ, संसाधन और अन्य मदद भी मिलती हैं। सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार अभी भी आतंकियों को दूसरे राज्यों की जेल में शिफ्ट कराए जाने के पीछे की यही वजह है।