सामान्य वर्ग के गरीबों को आरक्षण देने सबंधी विधेयक को गुरुवार (जनवरी 10, 2019) को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देने वाली NGO ने यू-टर्न लेते हुए अब इस विधेयक का स्वागत किया है। बता दें कि इस बिल को संसद में पास हुए अभी 24 घंटे भी नही हुए थे तभी ‘यूथ फॉर इक्वलिटी (YFE)’ नामक NGO ने इसके ख़िलाफ़ उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल कर दी थी। अपनी याचिका में इस क़ानून को रद्द करने की मांग करते हुए संस्था ने कहा था कि यह विधेयक संविधान की मूल भावना के ख़िलाफ़ है और आरक्षण के लिए बनाए गए 50 प्रतिशत के दायरे को पार करता है।
अब यू-टर्न लेते हुए इस NGO के प्रेसिडेंट डॉक्टर कौशल कान्त मिश्रा ने इस विधेयक का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि मूल रूप से ये विधेयक एक स्वागत-योग्य कदम है। उनके इस बयान से छह घंटे पहले ही संस्था के वकील गोपाल शंकरनारायणन ने मीडिया को जानकारी देते हुए कहा था कि उन्होंने इस विधेयक को अदालत में चुनौती दी है।
संस्था के दोहरे रवैये से लोगों को पता नहीं चल पा रहा है कि आख़िर YFE इस विधेयक के समर्थन में है या फिर ख़िलाफ़ है। एक तरफ़ इसके अध्यक्ष इस विधेयक का स्वागत कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ वो इसके खिलाफ याचिकाकर्ता भी हैं। एक तरफ वो इसे गरीबों के हित में बता रहे हैं वहीं दूसरी तरफ उन्होंने अदालत में इसे संविधान के ख़िलाफ़ बताया है।
YFE ने गुरूवार को देश की शीर्षतम अदालत में दायर की गई याचिका में कहा था:
“यह संशोधन पूरी तरह से संवैधानिक मानदंड का उल्लंघन करता है क्योंकि संविधान में कहा गया है कि सिर्फ़ आर्थिक स्थिति ही आरक्षण पाने का आधार नहीं हो सकती। इंद्रा साहनी केस में 9 सदस्यों वाली पीठ ने ये निर्णय दिया था। ये संशोधन उच्चतम न्यायलय के फ़ैसले के ख़िलाफ़ है, इसीलिए इसे रद्द कर देना चाहिए।”
वहीं यू-टर्न लेते हुए उन्होंने इस विधेयक का समर्थन करते हुए कहा:
“ये विधेयक स्वागत योग्य है क्योंकि इसमें जाति नहीं, गरीबी को आधार बनाया गया है।”