डॉक्टर पायल तड़वी आत्महत्या मामला पूर्णतः रैगिंग ने जुड़ा है और इसका ‘जाति’ या जातिवाद’ से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है। ऐसे कोई सबूत नहीं मिले हैं, जिससे पता चले कि पायल को जातिगत भेदभाव से गुज़रना पड़ा हो या उसकी जाति को लेकर उस पर कोई अत्याचार किया गया हो। इसका अर्थ ये बिलकुल नहीं है कि जो हुआ वो सही है, बल्कि यह बिकुल ही ग़लत है। लेकिन, जो नहीं हुआ, उसे लेकर हाय-तौबा मचाने वाले ‘डर का माहौल’ गैंग ने जो किया, वो भी समाज में ज़हर फैलाने जैसा है। पायल की उसकी तीन सीनियरों ने रैगिंग की, ऐसा राज्य सरकार द्वारा गठित कमिटी की जाँच से निष्कर्ष निकला है। आगे बढ़ने से पहले जरा मामले को समझ लें। (नोट- इस लेख में संलग्न सारे व्यक्तिगत ट्वीट्स गिरोह विशेष के सदस्यों के हैं, जो जाँच से पहले अपना निर्णय देने और मनगढ़ंत मुद्दों पर चर्चा छेड़ने के आदि हैं।)
Article 15 is out on June 28; technically good timing since Dr Payal Tadvi’s tragic death has put the ugly behaviour of dominant castes in the spotlight. Hopefully, her story won’t have been buried under committees & the narrative won’t have changed. https://t.co/Lwbz6yj877 pic.twitter.com/2ORCNRgNQ4
— Deepanjana (@dpanjana) June 2, 2019
मुंबई स्थित टोपीवाला मेडिकल कॉलेज की छात्रा डॉक्टर पायल तड़वी ने कॉलेज से जुड़े बीवाईएल नायर अस्पताल परिसर में स्थित हॉस्टल के कमरे में आत्महत्या कर ली थी। यह घटना 22 मई की है। इसके बाद उनकी माँ ने अपनी एक शिकायत में सीनियरों द्वारा प्रताड़ित किए जाने और जातिगत भेदभाव करने का आरोप लगाया था। इसके बाद नायर अस्पताल ने अपनी एक रिपोर्ट में रैगिंग किए जाने की पुष्टि की थी। उस रिपोर्ट में आरोपितों द्वारा पायल को सार्वजनिक तौर पर प्रताड़ित किए जाने की बात तो पता चली लेकिन जातिगत भेदभाव या जाति को लेकर प्रताड़ना सम्बन्धी कोई बात सामने नहीं आई। भील-मुस्लिम समुदाय से आने वाली तड़वी ने एसटी कोटे के लिए आरक्षित सीटों के अंतर्गत कॉलेज में दाखिला लिया था।
#SundayStory | For her Tadvi Bhil tribe, Payal Tadvi was a symbol that one among them could make it ‘big’. For her family, she spelt hope for a life out of poverty. For her husband, she was love at first sight.@sadafmodak , @tabassum_b write:https://t.co/0aU99rDWhT
— The Indian Express (@IndianExpress) June 2, 2019
इस संबंध में राज्य सरकार ने एक कमिटी गठित कर के मामले की जाँच सौंपी, जिसमें सामने आया कि यह मामला जाति-उत्पीड़न से जुड़ा नहीं है। हालाँकि, इससे पहले ‘डर का माहौल’ गैंग अपना काम कर चुका था। जो उनका गन्दा अजेंडा था, उन्होंने जो घृणित उद्देश्य पाल रखे थे, उनका पालन कर इस गैंग ने मृत डॉक्टर की लाश पर अपना हथकंडा अपनाया और अपना उल्लू सीधा किया। जैसा कि सर्वविदित है, ‘मोदी सरकार के कार्यकाल में मुस्लिमों पर अत्याचार’ वाला माहौल बनाने वाले इन दोमुँहे साँपों ने जब देखा कि अब यह हथकंडा पुराना हो रहा है और इसकी पोल खुलती जा रही है, तब उन्होंने ‘दलितों पर जाति को लेकर अत्याचार’ वाला माहौल बनाना शुरू कर दिया।
https://t.co/e0jXGC5ueH
— Firstpost (@firstpost) June 4, 2019
Dr Payal Tadvi’s suicide exposes how under-representation of dalits, adivasis and caste discrimination affect higher education institutes. A team of #Firstpost writers explains. (1/9) #FPThreads
पायल तड़वी आत्महत्या मामले में गिरोह विशेष ने जो किया, उससे असल मुद्दा छिप गया। वास्तविक समस्या पर बातें नहीं हुईं और जो मनगढ़ंत कहानी थी, उसके आधार पर सोशल मीडिया में चर्चा छेड़ दी गई। जैसा कि जाँच कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में सुझाया है, रैगिंग को रोकने के लिए हर तीन महीने पर छात्रों, उनके अभिभावकों व पढ़ाने वाले शिक्षकों की एक नियमित बैठक बुलाई जानी चाहिए। लेकिन, इस पर बात नहीं हुई। बात हुई तो ‘कथित उच्च जाति के लोगों द्वारा दलितों के साथ किए जा रहे अन्याय’ के बारे में। कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में आगे कहा है कि छात्रों की काउंसलिंग व्यवस्था तगड़ी की जानी चाहिए। लेकिन, इस पर चर्चा क्यों हो? यह तो वास्तविक मुद्दा है न। चर्चा हुई तो ‘Brahmanical Patriarchy’ पर।
IMA has also constituted an ~upper caste manel to look into Payal Tadvi’s death while continuing to deny casteism in the medical profession pic.twitter.com/G7B5HBQuK1
— Anoo Bhuyan (@AnooBhu) June 3, 2019
अपनी रिपोर्ट में कमिटी ने सुझाया है कि क्लिनिकल विषयों में समय प्रबंधन को लेकर प्रोफेसरों को छात्रों की मदद करनी चाहिए। किसी भी घटना के बाद उसे अपने मनपसंद और मनगढ़ंत दिशा में मोड़ कर ज़हरीली फसल उगाना जिस गिरोह का पेशा है, उसकी इस हरकत से नुकसान यह हुआ कि मेडिकल कॉलेजों में रैगिंग को लेकर समाज में, सोशल मीडिया में और प्रशासन में चर्चा होनी चाहिए थी, वो नहीं हुई। होगी भी कैसे, इसे जातिवादी रंग से पोत कर वास्तविक मुद्दे को ही गौण कर दिया गया। इससे समाज को नुकसान हुआ। आज जब जाँच समिति की रिपोर्ट में जाति आधारित प्रताड़ना के कोई सबूत नहीं मिले हैं, तो गिरोह विशेष चुप है। लेकिन वे अन्दर ही अन्दर ख़ुश भी हैं, उनका काम जो पूरा हो गया।
न्यूज़ पोर्टल्स में बड़े-बड़े ओपिनियन लिखे गए। इसमें ‘दलितों पर हो रहे अत्याचार’ पर चर्चा की गई, पायल आत्महत्या मामले का उदाहरण देते हुए बताया गया कि कैसे भारतीय कॉलेजों में दलितों पर अत्याचार हो रहा है। इसे रोहित वेमुला सहित अन्य मामलों से जोड़ कर देखा गया। लाइवमिंट जैसे मीडिया संस्थानों ने अपनी वेबसाइट पर ऐसे लेख को जगह दी, जिसमें पायल आत्महत्या कांड को ‘दलित एवं आदिवासी छात्रों के प्रति अन्य छात्रों का पूर्वग्रह’ की बात की गई थी। इस लेख में दलित छात्रों से उनके अनुभव पूछे गए कि कैसे उनकी जाति को लेकर उन पर अत्याचार किया जाता है। हाँ, इस लेख में रैगिंग (जो मौत की वास्तविक वजहों में से है) की समस्या को लेकर कोई बात नहीं की गई क्योंकि यह अजेंडे को सूट नहीं करता था।
Dr Payal Tadvi’s suicide in Mumbai shows how deep caste prejudices run in medical colleges across the country. From not being allowed to perform important surgeries to being labelled ‘quacks’, TOI decodes the anatomy of bias
— Times of India (@timesofindia) June 3, 2019
Read: https://t.co/oD0DXgCd7B pic.twitter.com/4vXORDnGrP
अब आगे ‘द न्यूज़ मिनट’ के एक लेख की बात करते हैं। इस लेख में दावा किया गया कि आरोपितों के माता-पिता ने उन्हें जाति, धर्म, रंग और वर्ग को लेकर भेदभाव करने के विरुद्ध कोई शिक्षा नहीं दी। इसमें मेडिकल क्षेत्र में ‘जातिगत भेदभाव’ की बात की गई और लिंचिंग वगैरह का जिक्र करते हुए इसे पूरी तरह जाति वाला मामला बताया गया। इसका कोई सबूत? कुछ नहीं। अब जब कमिटी की रिपोर्ट में इनकी पोल खुल गई है, क्या ये माफ़ी माँगेंगे? यह इसी तरह है जैसे ज़मीन के विवाद में हुई मौत को कुत्ता काटने से हुई मृत्यु बताना और उसके बाद पूरे सोशल मीडिया में यह चर्चा करना कि कुत्ता काटने से कैसे बचा जाए, कुत्ता काटने के बाद कौन सी दवाएँ इस्तेमाल की जाएँ, किस डॉक्टर से दिखाया जाए, इत्यादि-इत्यादि।
Payal Tadvi suicide case | The suicide points to deep-seated prejudices towards Dalit & tribal students
— Livemint (@livemint) June 8, 2019
Read more: https://t.co/eiX5CjVp5d
जबकि उपर्युक्त उदाहरण में असल मामला तो ज़मीन से जुड़ा विवाद था। चर्चा तो होनी चाहिए थी कि ज़मीन से जुड़े विवादों को कैसे सुलझाया जाए? ठीक इसी तरह, इस मामले में भी रैगिंग के कारण हुई मृत्यु में चर्चा का रुख अपने हिसाब से मोड़ कर जाति, धर्म और वर्ग को लाया गया। यह नया नहीं है। आजकल हर एक घटना में ऐसा ही मोड़ दिया जा रहा है, जिससे जब तक वास्तविकता साफ़ हो, तब तक अपना अलग ही निर्णय सुना दिया जाए और इसे लेकर चर्चा छिड़ जाए और लोगों को ऐसा लगे कि वास्तविक समस्या पर बात हो रही है। कुछ लोग समर्थन करेंगे, कुछ विरोध करेंगे और इस तरह पूरी की पूरी चर्चा का रुख उसी तरफ मुड़ जाता है, जिधर गिरोह विशेष की इच्छा हो।
More stardust: Dr Payal Tadvi was killed by a heartless, soulless system @sakie339 #Opinion https://t.co/TFYv5zj6Ku
— The News Minute (@thenewsminute) June 10, 2019
यहाँ हम उन लेखों के स्क्रीनशॉट्स शेयर कर रहे हैं और गिरोह विशेष के ट्वीट्स भी संलग्न कर रहे हैं, जो पायल तड़वी की आत्महत्या और जाँच कमिटी की रिपोर्ट आने के बीच हुआ। आजकल की हर घटना में इनकी ऐसी भागीदारी को देखते हुए यह अनिवार्य हो जाता है कि किसी भी घटना पर टिप्पणी करने या प्रतिक्रिया देने से पहले हम वास्तविकता से पूरी तरह रूबरू हो जाएँ।