Saturday, November 23, 2024
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जारी रहेगा जल्लीकट्टू: सुप्रीम कोर्ट ने बताया- तमिल सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा, कर्नाटक-महाराष्ट्र में भी गोवंश से जुड़े पारंपरिक खेलों की अनुमति

जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार की संविधान पीठ ने कहा कि जब विधायिका मान चुकी है कि जल्लीकट्टू तमिलनाडु की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है तो न्यायपालिका इससे अलग दृष्टिकोण नहीं रख सकती है।

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की संविधान पीठ ने गुरुवार (18 मई 2023) को तमिलनाडु द्वारा पशु क्रूरता निवारण अधिनियम में किए गए संशोधनों की वैधता को बरकरार रखा। इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने कोर्ट ने कर्नाटक और महाराष्ट्र में कंबाला और बुल कार्ट रेसिंग की अनुमति देने वाले कानूनों को भी बरकरार रखा। इस तरह तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र में जल्लीकट्टू (Jallikattu) और इससे जुड़े खेल को भी अनुमति दे दी गई।

जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार की संविधान पीठ ने कहा कि गोवंश के दर्द और पीड़ा को कम करने और खेल को जारी रखने की अनुमति देने के लिए संशोधन पेश किए गए हैं। कोर्ट ने कहा कि जब विधायिका मान चुकी है कि जल्लीकट्टू तमिलनाडु की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है तो न्यायपालिका इससे अलग दृष्टिकोण नहीं रख सकती है।

पीठ ने कहा, “राज्य की कार्रवाई में कोई दोष नहीं है… यह एक गोजातीय खेल है और नियमों के अनुसार भागीदारी की अनुमति दी जाएगी। अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 48 से संबंधित नहीं है। कृषि गतिविधि को प्रभावित करने वाले कुछ प्रकार के सांडों पर आकस्मिक प्रभाव पड़ सकता है, लेकिन यह सारगर्भित रूप से भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची की प्रविष्टि 17, सूची III के संदर्भ में है।”

न्यायालय ने कहा कि राज्यों के ये कानून धारा 51ए(जी) और 51ए(एच) का उल्लंघन नहीं करते हैं और इस प्रकार ये भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का भी उल्लंघन नहीं करते हैं। कोर्ट ने कहा, “तीनों संशोधन अधिनियम वैध कानून हैं और हम निर्देश देते हैं कि सभी कानूनों को सख्ती से लागू किया जाए और डीएम एवं सक्षम अधिकारी संशोधित कानून के सख्त कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार होंगे।”

PETA एवं अन्य एनीमल राइट ग्रुप जैसे याचिकाकर्ताओं के वकील ने सर्वोच्च न्यायालय में तर्क दिया कि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री से पता चलता है कि जल्लीकट्टू एक खूनी खेल है। तर्क दिया गया था कि अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) लागू होगा क्योंकि केवल कुछ खेलों को जानवरों के प्रति क्रूरता की अनुमति दी गई है।

इसके पहले, सुप्रीम कोर्ट ने साल 2014 में कहा था कि तमिलनाडु में लोकप्रिय जल्लीकट्टू खेल जानवरों के अधिकारों के साथ-साथ क्रूरता निवारण (पीसीए) अधिनियम का भी उल्लंघन करता है। सर्वोच्च न्यायालय ने साल 2014 में माना था कि जल्लीकट्टू तमिलनाडु की संस्कृति या परंपरा का कभी भी नहीं रही है। इस आधार पर जल्लीकट्टू को अनुमति देने वाले 2009 के तमिलनाडु जल्लीकट्टू विनियमन अधिनियम (टीएनजेआर अधिनियम) को रद्द कर दिया था।

दक्षिण के राज्यों में जल्लीकट्टू के प्रति लोगों के जुड़ाव को देखते हुए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने जनवरी 2016 में पीसीए अधिनियम के दायरे से जल्लीकट्टू और बैलगाड़ी दौड़ को अपवाद के रूप में शामिल करते हुए एक नई अधिसूचना जारी की थी। इसके तहत इन खेलों को पशु क्रूरता अधिनियम के दायरे से बाहर कर दिया गया था। इसके बाद उस अधिसूचना को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।

बाद में तमिलनाडु सरकार ने साल 2017 के पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम बनाया। इसके जरिए जल्लीकटू जैसे सांडों को काबू में करने वाले खेलों और सांडों के दौड़ के लिए मार्ग प्रशस्त करने का काम किया गया था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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