रेलवे या ट्रेन जैसे शब्द कान में पड़ते ही मेरी तरह आपके ज़ेहन में भी आता होगा उन तमाम अव्यवस्थाओं की तस्वीर, जिनका आपने यात्रा के दौरान कभी सामना किया होगा। मसलन ट्रेन का समय पर न आना और न ही समय पर जहाँ जाना है वहाँ पहुँचा देना, गंदे टॉयलेट, गंदे ट्रैक, फिनायल की तेज गंध, ख़राब खाना, कर्मचारियों से लेकर ट्रेन अटेंडेंट का रुखा व्यवहार आदि-आदि… ऐसी कई बातें या तो हमने देखी हैं या अक्सर अपने यहाँ की ट्रेन यात्रा के बारे में कुछ ऐसा ही सुनते आए हैं।
ख़ैर, मैंने पिछले साल की शुरुआत में ही अपनी ट्रेन यात्रा के दौरान रेलवे में हो रहे निर्माण कार्य और बदलाव की व्यापकता की झलक देखी थी। जैसे ट्रेन ट्रैक का विस्तार, ट्रैक के नवीनीकरण के साथ स्टेशनों की साज-सज्जा में वहाँ की प्रमुख कलाकृतियों, संस्कृति को बढ़ावा देना जारी था। लेकिन कितना सुधार हो चुका है, इसे परखना बाकी था।
आप सोच रहे होंगे मैं ये सब क्यों बता रहा हूँ? तो असल बात ये है कि 15 फ़रवरी 2019 को “वंदे भारत एक्सप्रेस” की पहली यात्रा में एक पत्रकार के रूप में शामिल होने का मुझे भी अवसर मिला। पिछले कई सालों के जो सवाल थे, इस यात्रा में उन सभी का जवाब तलाशने का यह सुनहरा मौका था। क्योंकि, इस यात्रा में पूरे समय न सिर्फ़ रेल मंत्री बल्कि पूरा रेल मंत्रालय के साथ ही रेलवे बोर्ड भी सहयात्री के रूप में साथ ही थे और उन सभी तक पहुँच थी बेहद आसान।
हालाँकि, एक बात का यहाँ जिक्र करना चाहूँगा कि रेलवे में बदलाव की शुरुआत बहुत पहले से ही जब सुरेश प्रभु रेल मंत्री थे, तभी हो चुकी थी। फिर प्रधानमंत्री के विज़न के अनुसार देश में रेलवे के विस्तार और विकास यात्रा को तेजी से बढ़ाया वर्तमान रेल मंत्री पीयूष गोयल ने, जिसे उन्होंने खुद ही स्वीकार किया इस यात्रा में भी। अब तो बस एक पत्रकार के रूप में सभी दावों का ज़मीनी जायज़ा लेना बाकी था, तो जो कुछ जाना एक पत्रकार के रूप में वो आपसे साझा करने जा रहा हूँ।
सबसे पहले बात करते हैं ट्रेन-18 अर्थात “वंदे भारत एक्सप्रेस” के बारे में। यह इंटीग्रल कोच फैक्ट्री चेन्नई में मेक इन इंडिया के तहत बनाया गया भारत का पहला सेमी स्पीड ट्रेन प्रोजेक्ट है। इस ट्रेन की ख़ास बातों का जवाब देने के लिए स्वयं इंटीग्रल कोच फैक्ट्री के जनरल मैनेजर राहुल जैन जी मौजूद थे। जिन्होंने विस्तार से वंदे भारत एक्सप्रेस की ख़ास बातों से परिचय कराया जैसे- क्विक एक्सेलरेशन अर्थात स्टार्ट होते ही तेजी से स्पीड पकड़ लेने की क्षमता। आधुनिक यात्री सुविधाओं से युक्त इस ट्रेन को भारतीय इंजीनियरों ने मात्र 97 करोड़ रुपए की लागत में 18 महीने की अल्प अवधि में वैश्विक मानदंडों के अनुरूप तैयार कर कीर्तिमान रच दिया।
वंदे भारत एक्सप्रेस: 16 कोच, 1128 सीट
- 12 कोच नॉर्मल चेयर कार (प्रत्येक में सीट संख्या 78)
- 2 कोच एग्जीक्यूटिव चेयर कार (प्रत्येक में सीट संख्या 52)
- 2 ड्राइविंग-ट्रेलर कोच (प्रत्येक में सीट संख्या 44)
ड्राइवर केबिन से लेकर पूरी ट्रेन इंटेलिजेंट कूलिंग सिस्टम अर्थात मौसम के हिसाब से ख़ुद ही तापमान सेट होने में सक्षम वातानुकूलित तकनीक से लैस है। हर दूसरा कोच मोटिव मोटर से युक्त है ताकि ट्रेन के एक्सेलरेशन और डीएक्सेलरेशन दोनों को तेजी से बढ़ाया-घटाया जा सके। मतलब ट्रेन पल भर में अपनी औसत ऑपरेशनल गति 160 किलोमीटर की रफ़्तार पकड़ लेगी। अचानक ब्रेक लगाने की ज़रूरत पड़े तो भी इलेक्ट्रो न्यूमैटिक ब्रेक सिस्टम ऐसा है कि ट्रेन 600 मीटर से भी कम दूरी में बिना किसी ख़ास जर्क के रूक जाए। हालाँकि, ट्रेन की टेस्टिंग स्पीड 180 किलोमीटर प्रति घंटा की है फिर भी दिल्ली-वाराणसी रूट पर ट्रैक का नवीनीकरण पूरा न होने और अधिकांश जगहों पर बाड़ न लग पाने के कारण अभी इसे कुछ दूरी तक ट्रैक की क्षमतानुसार 110 तो कुछ जगह 130 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से चलाया जा रहा है।
सुरक्षा की दृष्टि से यह एहतियात मुझे सही भी लगा क्योंकि आमतौर पर आज भी कुछ लोग आँख मूंदे ही ट्रैक पर निकल लेते हैं। कुछ अपने मवेशी छोड़ देते हैं यूँ ही टहलने के लिए। पहली यात्रा से जब ट्रेन वापसी में वाराणसी से दिल्ली खाली ही आ रही थी तो टूंडला के पास ट्रेन को ऐसे ही किसी मवेशी से टकरा जाने पर रोकना पड़ा। और कुछ मीडिया संस्थानों ने जितना इस विकास यात्रा को कवर नहीं किया था उससे ज़्यादा ये साबित करने में लग गए कि ट्रेन अपनी पहली यात्रा में ही ख़राब हो गई। व्यक्तिगत रूप से ख़ार खाए कुछ तथाकथित पत्रकार बड़ी चालाकी से मवेशी हिट की घटना को छिपा गए। उस समय हम लोग दूसरी स्पेशल ट्रेन से दिल्ली वापस आ रहे थे। जब ये ख़बर ब्रेक हुई कि इसमें कुछ पत्रकार घायल भी हुए हैं तो ख़ुद को हँसने से नहीं रोक पाया।
आपको यहाँ एक बात बता दूँ कि इस ट्रेन में थ्री फेज IGBT बेस्ड प्रोपल्शन सिस्टम है, जिसके लिए फुली सस्पेंडेड थ्री फेज इंडक्शन टाइप ट्रैक्शन मोटर लगाए गए हैं। इस ट्रेन का शुरुआती एक्सेलरेशन 0.8 मीटर/सेकण्ड स्क़्वायर है। यह तुरंत गति पकड़ने में लगने वाले समय को 10-15% तक कम कर देता है। इस ट्रेन के सभी इक्विपमेंट VCC अर्थात व्हीकल कण्ट्रोल कंप्यूटर सिस्टम से संचालित होते हैं। इस ट्रेन के सभी कोचेज के सभी इक्विपमेंट आपस में ईथरनेट से जुड़े हैं। उस दिन अचानक से मवेशी के टकरा जाने से इसी कम्युनिकेशन सिस्टम में कुछ ख़राबी आ गई थी। लग रहा है तकनीक कुछ भारी हो गया! ख़ैर ये जानकारी उनके लिए जो अक्सर कौआ कान ले गया में कान नहीं देखते बल्कि कौए के पीछे दौड़ लगा देते हैं।
कोई भी तकनीक जब अपनी प्रारंभिक अवस्था में होती है तो सावधानी की थोड़ी ज़्यादा आवश्यकता होती है। पर हमारे यहाँ, थोड़ा तो अंध-विरोध और थोड़ी सी लापरवाही के कारण ऐसे कई एक्सीडेंट होते रहते हैं। फिर भी अगर पिछले कई सालों के आकड़ों पर नज़र डालूँ तो मोदी सरकार की तारीफ़ करनी होगी कि इस दौरान ट्रेन दुर्घटनाओं में व्यापक कमी देखी गई। साथ ही ट्रेन की टाइमिंग में भी पिछले कुछ सालों में काफ़ी सुधार आया है। क्योंकि आजकल ऐसी ख़बरें ब्रेकिंग न्यूज़ बनना बंद हो गई हैं, मतलब कुछ ठीक तो हुआ है। जिसकी पुष्टि स्वयं रेल मंत्री के ज़वाब से हो गई।
रेल मंत्री पीयूष गोयल ने कहा, “जगह-जगह ऑटोमेटिक टाइम लॉगर लगाने से, सिग्नलिंग और लाइटिंग, ट्रैक के उन्नयन, बैरीगेटिंग, मानवरहित सिग्नलों के ख़त्म करने से ऐसा सम्भव हुआ है।”
अब वापस से वंदे भारत एक्सप्रेस पर आते हैं एक तरफ़ कॉन्टिनिवस विंडो जहाँ इसे बेहतरीन लुक दे रहें हैं वहीं बेहतरीन कलर स्कीम इसकी ख़ूबसूरती में चार चाँद लगा रहा है। इसके साथ ही चाहे वो वाई-फाई इंफोटेनमेंट सिस्टम हो या GPS आधारित यात्री सूचना तंत्र, बायो वैक्यूम इंडियन एंड वेस्टर्न, फिजिकली चैलेंज्ड लोगों के लिए भी सुविधासम्पन्न, ऑटो सेंसर टैप युक्त टॉयलेट हो या डिफ्यूज्ड LED लाइटिंग के साथ अलग से टच बेस्ड पर्सनल रीडिंग लाइट, चार्जिंग की सुविधा, मॉड्यूलर लगेज रैक हो या आधुनिक पैंट्री और फ़ूड सर्विस सिस्टम या स्लाइडिंग डोर और एग्जीक्यूटिव क्लास में रोटेशनल सीट सब मिलकर ट्रेन को अंतरराष्ट्रीय स्तर का बना रहे थे।
CCTV का पूरे ट्रेन में इतना बड़ा जाल बिछा है कि आसानी से ऑटोमेटिक दरवाजों के साथ सिग्नल और प्लेटफॉर्म पर भी ड्राइवर केबिन से नज़र रखी जा सकती है। साथ ही ट्रेन को आपात स्थिति में रोकने के लिए एमर्जेन्सी अलार्म के साथ टॉक बैक सुविधा भी है। मतलब अब ट्रेन रोकने के लिए चेन खींचने के बजाय ड्राइवर को बताना होगा कि समस्या क्या है? ज़रूरी लगने पर ट्रेन रोकना ड्राइवर केबिन के हाथ में है।
हमारे संपादक अजीत भारती ने भी इस यात्रा से पहले मुझे अपनी बीजिंग और मास्को यात्रा की कई कहानियाँ सुनाई थी, वहाँ के अत्याधुनिक ट्रेनों की खूबियों के बारें में उन्हीं से जाना। इससे पहले सिर्फ़ फिल्मों में देखा था या कहीं थोड़ा-बहुत पढ़ा। कोई ये भी कह सकता है कि कुछ कुछ मिलती-जुलती सुविधाओं वाली दिल्ली मेट्रो तो पहले से ही चल रही है। एक तरफ़ जहाँ दिल्ली मेट्रो छोटी दूरी के लिए निर्धारित है वहीं लम्बी यात्रा के लिए भारत में इससे पहले ऐसी कोई सुविधा नहीं थी। और भी बहुत कुछ है जहाँ दिल्ली मेट्रो काफी पीछे छूट जाती है।
वंदे भारत एक्सप्रेस में यात्रा के दौरान अंतरराष्ट्रीय सुविधाओं का अपने देश में आनंद उठाना गौरव का क्षण था। वैसे इस ट्रेन की लागत अंतरराष्ट्रीय बाज़ार के हिसाब से लगभग 200 करोड़ रुपए से ज़्यादा आती। लेकिन अपने ही देश में इस कीमत की आधे से भी कम में ऐसे उम्दा प्रोडक्ट का बनना सुकून देता है। ट्रेन के अंदर तो ऐसा लग रहा था जैसे किसी और ही देश में हूँ। जानकारी के लिए बता दूँ कि मात्र 18 महीने में इसे ICF चेन्नई में डिजाइन और निर्मित किया गया। इस ट्रेन के निर्माण में लगभग 80% सामानों का निर्माण पूर्णतः स्वदेशी है।
भारत में इस ट्रेन से पहली बार ‘ट्रेन कैप्टेन’ रेल परिवहन तंत्र में शामिल हुए। खाने का स्वाद और गुणवत्ता बनाए रखने के लिए पिंड बलूची का खाना, साथ ही चाओस की चाय के साथ बढ़िया पौष्टिक और स्वादिष्ट नाश्ता भी आपको शानदार एवं सुखद रेल यात्रा का अनुभव कराएगा। साथ ही वेल ड्रेस्ड डेडिकेटेड क्लीनिंग एंड कैटरिंग स्टाफ आपको बेहद ख़ास महसूस कराएगा।
ट्रेन की सुविधाओं और व्यवस्थाओं से संतुष्ट होने के बाद अब बारी थी रेल मंत्री से मिलने की। एक-एक कर उनसे जो भी सवाल पूछे गए, उन्होंने इत्मीनान से सभी का जवाब दिया, साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नए भारत के निर्माण के सपने से भी अवगत कराया। पीएम मोदी के नए भारत पर सोचता हूँ तो पिछले कई सालों में जिन चीजों के बारे में हमने सोचा भी नहीं था, उस पर भी कोई व्यक्ति हमारे लिए न सिर्फ़ सोच रहा है बल्कि लगातार पूरी तत्परता से कार्य भी कर रहा है। ये हमारे लिए सौभाग्य की बात है।
ख़ैर, रेल मंत्री पीयूष गोयल ने बताया, “जल्द ही ऐसे 30 और ट्रेनों के निर्माण कार्य को आगे बढ़ाया जाएगा। एक ट्रेन तो जल्द ही इस बेड़े में शामिल हो जाएगी। जनता के रिस्पॉन्स से गदगद रेल मंत्री ने ये आश्वासन भी दिया कि जल्द ही इस सीरीज के 100 और ट्रेनों के लिए भी मंजूरी देने की योजना है। साथ ही ट्रेन-18 सीरीज में स्लीपर कोच भी बनाने का प्रावधान है, जो आने वाले समय में शताब्दी ट्रेनों को रिप्लेस करेंगी।”
रेल मंत्री ने ये भी बताया कि ‘साथ ही ट्रेन-20 पर भी काम चल रहा है और भारत में हमारे प्रधानमंत्री जल्द ही पहली बुलेट ट्रेन चलाने की परियोजना पर भी पूरा जोर दे रहे हैं, जिसके लिए युद्ध स्तर पर कार्य प्रगति पर है।’
साथ ही उन्होंने अपने रेल मंत्री के रूप में कुछ कार्यों से भी परिचय कराया। जैसे बिना किराया बढ़ाए सातवाँ वेतन आयोग का सारा ख़र्च रेलवे के अपने संसाधनों से पूरा करना। लगभग सभी ट्रेनों में बायो टॉयलेट लगवाना, स्टेशनों के विकास के साथ ही प्रतिदिन दोगुनी तेजी से रेलवे ट्रैक का निर्माण, स्टेशनों के साथ आम ट्रेनों में भी साफ-सफ़ाई का विशेष ध्यान, गंदे फिनायल की जगह अलग-अलग खुशबुओं में क्लीनर का इस्तेमाल, ट्रेनों की टाइमिंग में ऑटोमेटिक टाइम लॉगर से ट्रेन की टाइमिंग का रिकॉर्ड रख ट्रेन के संचालन में सुधार।
साथ ही रेल मंत्री ने इस बात का आश्वासन भी दिया कि कई वर्षों से प्रधानमंत्री देश को करप्शन मुक्त करने के लिए कृत संकल्पित हैं। इसी कड़ी में अब हम ट्रेनों के चार्ट सिस्टम को जल्द ही ऑनलाइन करने जा रहे हैं, जिससे यात्री को भी ट्रेन में यात्रा करते समय पता हो कि ट्रेन में कौन सी सीट खाली है, जिसे वो IRCTC की साइट पर जाकर ख़ुद ख़रीद सके। अब टीटी से लेकर सभी अधिकृत ट्रेन वेंडरों को नेम प्लेट के साथ POS मशीन रखना अनिवार्य किया जाएगा ताकि तुरंत हुए भुगतान की, वो यात्री को रसीद दे सकें। अगर रसीद नहीं देता है तो उस सुविधा को फ्री समझा जाए। जल्द ही इन सुविधाओं की जानकारी रेलवे अपनी एक अलग वेबसाइट पर उपलब्ध कराएगा।
रेल मंत्री ने जो भी कहा चाहे वो ट्रेन की सुविधाओं के बारे में हो या जो कार्य हो चुका है उसके बारे में मुझे जैसे ही मौका मिला मैंने रास्ते के चारों स्टेशनों पर उसकी पुष्टि की तो दावा खोखला नहीं था। बल्कि थोड़ी और जानकारी के लिए मैंने इन स्टेशनों के अन्य स्थानीय लोगों से भी बात की तो सभी एक सुर में सहमति व्यक्त करते नज़र आए। इस पूरी यात्रा में मैंने रेल परिवहन तंत्र में व्यापक बदलाव के प्रधानमंत्री के सपनों को हक़ीक़त में बदलते हुए देखा, जिस बदलाव की पहल जारी है, उसकी ज़मीनी हक़ीक़त से वन्दे भारत एक्सप्रेस की इस पूरी यात्रा में, मैं ख़ुद गवाह हूँ।
फिर भी अभी कई जगहों पर सुधार की और आवश्यकता है जैसे अगर अभी आगे की एक ट्रेन में प्रॉब्लम आती है तो उसका ख़ामियाजा पीछे के कई ट्रेनों को भुगतना पड़ता है। इसकी वैकल्पिक व्यवस्था? जिस पर रेल मंत्री ने कहा कि तेजी से नए ट्रैक बिछाने का कार्य प्रगति पर है, जल्द ही इस समस्या का समाधान भी हो जाएगा। फिर, हम ट्रेनों को निर्धारित समय पर चलाने में सक्षम होंगे।
क्या देश का सबसे ग़रीब तबका भी कभी AC ट्रेनों में सफर कर पाएगा? इस पर रेल मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री का सपना है भारत की सभी ट्रेनें पूरी तरह से वातानुकूलित हों। मेक इन इंडिया के तहत ये सभी परियोजनाओं पर देश के मुखिया की नज़र है। तो उम्मीद की जा सकती है क्योंकि देश उनकी कथनी और करनी से वाकिफ़ है, किसी भी तरह के कठोर से कठोर निर्णय लेने से भी कभी उनको पीछे हटते नहीं देखा।
चलते-चलते इस देश का युवा क्या चाहता है? ये बात भी मैंने रेल मंत्री के जरिए प्रधानमंत्री तक पहुँचाने की कोशिश की। रेल मंत्री पीयूष गोयल ने इसका भी जवाब दिया कि प्रधानमंत्री रोजगार के नित नए साधनों के विस्तार के लिए हर सम्भव प्रोजेक्ट में ये क्लॉज ज़रूर जुड़वाते हैं कि इसका तकनीक भी देना होगा, साथ ही इसका निर्माण भारत में हो ताकि हमारे देश के युवाओं को रोज़गार मिल सके।
बेशक सही आँकड़ों की उपलब्धता न होने से हमें ये भ्रम हो कि भारत में रोजगार का सृजन नहीं हुआ, पर जिस तरह से इंफ़्रास्ट्रक्चर से लेकर इज ऑफ़ डूइंग बिजनेस में भारत की रैंकिंग सुधरी है, ज्ञात हो कि नरेंद्र मोदी सरकार ने इस दिशा में बेहतर प्रदर्शन करते हुए चार सालों में भारत को 57 रैंक ऊपर पहुँचाया है। जब कार्यकाल शुरू किया था, 2014 में भारत 134वें रैंक पर था, जबकि 2018 में 190 देशों में 77वें रैंक पर है। यह वास्तव में भारत के लिए आने वाले समय में और तेज़ विकास का संकेतक भी है।