ऐसा लग रहा है कि देश की राजधानी दिल्ली के बीच स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय को इसके वामपंथी छात्र अपने राजनीतिक आका नक्सलियों के केंद्र ‘गढ़चिरौली’ जैसा बनाने पर ही तुले हुए हैं।
ट्विटर पर वायरल हो रहे एक वीडियो को देख कर लग रहा है कि माओ-लेनिन-मार्क्स के वंशजों के गढ़ में यूनिवर्सिटी के नियम तो दूर की बात, नागरिक कानून व्यवस्था ही पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है और विश्वविद्यालय लेफ्ट वाले छात्रों के रहमो करम पर आ चुका है। वीडियो के ट्वीट में बताया जा रहा है कि जेनएयू की एसोशिएट डीन ऑफ़ स्टूडेंट्स, डॉ. वंदना मिश्रा, को सुबह से यूनिवर्सिटी के छात्रों ने उनकी मर्ज़ी के खिलाफ एक कमरे में कैद कर रखा है (यानि अपहृत कर रखा है)।
वीडियो में उनके चारों ओर नारेबाजी करते, चीखते और दहाड़ते छात्र दिख रहे हैं। साथ ही डॉ. मिश्रा बहुत ही बेबस नज़र आ रहीं हैं। वीडियो शेयर करने वाले ट्वीट में यह भी दावा किया गया है कि उनकी सेहत सुबह से गिरती ही जा रही है। यह भी बताया गया है कि उन्हें उनकी ही स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज़ की बिल्डिंग में स्थित क्लास में कैद कर के रखा गया है।
Dr. Vandana Mishra, Associate Dean of Students being kept in illegal captivity by some JNU students since morning. She is still confined in her class room in SIS building. Her health is deteriorating. This is shameful and unbecoming of students. pic.twitter.com/3Nh2QVHYWB
— Mamidala Jagadesh Kumar (@mamidala90) November 8, 2019
ज़ी न्यूज़ की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इसके पीछे कारण छात्रों और यूनिवर्सिटी प्रशासन के बीच फीस, ड्रेस कोड, लाइब्रेरी के समय जैसी चीज़ों को लेकर टकराव है। इसके चलते छात्रों के भूख हड़ताल पर होने की बात कही गई है।
इस बीच कैम्पस ‘नक्सलियों’ की हरकतों से ट्विटर पर कई प्रबुद्ध व्यक्तित्व बिफर उठे हैं। पत्रकार आदित्य राज कौल ने ट्वीट करके कहा है कि भले ही उन छात्रों को शांतिपूर्वक अपनी बात कहने का अधिकार हो, लेकिन अवैध रूप से किसी को बंदी बनाना कानून के खिलाफ है। कौल ने जेएनयू के कुलपति वीके सारस्वत को निशाने पर लेते हुए सवाल किया है कि उन्होंने अब तक कार्रवाई क्यों नहीं की या दिल्ली पुलिस को क्यों नहीं बुलाया।
This is crazy. Faculty member kept in illegal captivity by some students in JNU. Peaceful protest and dissent is right of every individual. Illegal captivity is bizarre and against the law. Why hasn’t JNU VC acted against the students or called in Delhi Police yet? https://t.co/QaeJUED1iu
— Aditya Raj Kaul (@AdityaRajKaul) November 8, 2019
एएनआई सम्पादक स्मिता प्रकाश ने भी घटना की आलोचना की है। वरिष्ठ पत्रकार कंचन गुप्ता ने जेएनयू को ‘रिपब्लिक ऑफ़ जेएनयू’ बताते हुए बेबस देश की जनता के पैसों से चल रही एक समानांतर राजनीतिक सत्ता करार दिया है।
What kind of educational institution is this? Ridiculous. https://t.co/xdoxmD1RWi
— Smita Prakash (@smitaprakash) November 8, 2019
It is the Republic of JNU funded by the hapless taxpayers of Republic of India. https://t.co/keEgYiMmv2
— Kanchan Gupta (@KanchanGupta) November 8, 2019
ख़ास ही नहीं, आम लोग भी जेएनयू की घटना से बेहद नाराज़ हैं। एक ट्विटर यूज़र ने कहा कि खाली ट्वीट कर अपने आप को पीड़ित दिखा रहे जेएनयू कुलपति खुद को नाकारा साबित कर रहे हैं। वहीं एक दूसरे ट्वीटर हैंडल ने जेएनयू की तुलना दुर्दांत जिहादी संगठन इस्लामिक स्टेट से कर दी है।
The VC of JNU keeps tweeting like he is the ultimate victim and lawless gangs run JNU. Now if you tell me that is true, is proves he is ineffectual.
— Nayanika (@nayanikaaa) November 8, 2019
RT if you read SIS as ISIS, and didn’t flinch, because JNU. https://t.co/ug9Vn7HvLt
— How Dare You, Economic ProspeRatty (@YearOfRat) November 8, 2019