लखनऊ हिंसा में शामिल आरोपितों की पहचान पोस्टर के जरिए सार्वजनिक स्थानों पर लगवाने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार (मार्च 09, 2020) को फैसला सुनाया। कोर्ट ने अपने फैसले में योगी सरकार को सख्त हिदायत दी और इस मामले में लखनऊ के डीएम और कमिश्नर को इन पोस्टरों को हटवाने का आदेश जारी किया है। इसके लिए प्रशासन को 16 मार्च तक का समय मिला है।
लेकिन कोर्ट के इस फैसले के आने के बाद योगी सरकार के समर्थक और विरोधी ट्विटर पर एक-दूसरे पर लगातार कमेंट्स कर रहे हैं। दरअसल, कोर्ट का यह फैसला जैसे ही आया, उसके बाद से ट्विटर पर लगातार ‘वाह रे कोर्ट’ और ‘इलाहाबाद हाईकोर्ट’ ट्रेंड कर रहा है।
यही नहीं, ट्विटर पर यूजर्स ने ‘BehaveJustitute’ जैसे हैशटेग भी इस्तेमाल किए और एक समय यह नम्बर एक पर ट्रेंड करते हुए भी देखा गया। सोमवार शाम ”वाह रे कोर्ट’ हैशटैग तो कुछ ही देर में टॉप पर पहुँच गया। सोशल मीडिया यूजर कोर्ट के इस फैसले पर अपनी नाराजगी जताते हुए प्रतिक्रिया देते हुए नजर आए।
दरअसल, नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ लखनऊ में प्रदर्शन करने वालों का फोटो सहित पोस्टर व होर्डिंग लगाने के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है। रविवार का अवकाश होने के बावजूद इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर व न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की खंडपीठ ने इस प्रकरण पर सुनवाई की।
इस पर लखनऊ प्रशासन की ओर से सार्वजनिक स्थलों पर होर्डिंग व पोस्टर में प्रदर्शनकारियों के चित्र लगाने को निजता के अधिकार का हनन मानते हुए हाई कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका कायम की थी।
जनहित याचिका में सरकार से पूछा गया था कि किस कानून के तहत आंदोलन के दौरान हिंसा, तोड़फोड़ करने वालों की फोटो लगाई गई है? क्या सरकार बिना कानूनी उपबंध के निजता के अधिकार का हनन कर सकती है? कोर्ट में यूपी सरकार की ओर से कहा गया था कि प्रदर्शन के दौरान लोक व निजी संपत्ति को नुकसान पहुँचाने वालों को हतोत्साहित करने के लिए यह कार्रवाई की गई।
हाईकोर्ट के आदेश को लेकर सोशल मीडिया सहित विभिन्न प्लेटफॉर्मों पर की गई आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर एफआईआर दर्ज की गई है। सोशल एक्टिविस्ट नूतन ठाकुर ने गोमती नगर थाने में एफआईआर दर्ज कराई है। उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट के आदेश को प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रखी है।