रंगों का त्योहार होली नजदीक है। इसके साथ ही वामपंथियों, लिबरलों और इस्लामवादियों का प्रोपेगेंडा भी शुरू हो गया है। वो हमेशा की तरह हिंदू त्योहार को नीचा दिखाने की अपनी हरकत में लग गए हैं। इस्लामवादियों और उनके वैचारिक कॉमरेडों ने एक बार फिर से हिंदू पर्व की छवि को खराब करने का बीड़ा उठाया है। उन्होंने होली के पर्व को महिलाओं के खिलाफ दिखाने की कोशिश की है। उन्होंने आरोप लगाया कि होली के त्योहार के दौरान हिंदू पुरुष, महिलाओं के साथ छेड़छाड़ करते हैं और उनका उत्पीड़न करते हैं।
एक सोशल मीडिया यूजर ने ट्विटर पर सेक्सिस्ट टिप्पणी करते हुए लिखा कि होली के नाम पर पूरे देश में महिलाओं के साथ छेड़छाड़ किया जाता है।
मिनी नायर नाम की एक महिला, जो कि लेखक होने का दावा करती है, लिखती है कि होली उसके लिए काफी भयानक थी, क्योंकि पिछले साल वह केरल में इस त्योहार के दौरान बेचैनी महसूस कर रही थी। ‘फेमिनिस्ट’ मिनी नायर पुरुषों को ‘राक्षस’ बुलाते हुए कहती है कि भांग उसकी परेशानी का सबब बना था।
शची नेली नाम की एक अन्य हिंदूफोबिक सोशल मीडिया यूजर ने शनिवार को ट्विटर पर दावा किया कि वह होली नहीं खेलती है, क्योंकि अतीत में होली खेलने खेलने के दौरान उसके साथ छेड़छाड़ की गई थी। नेली यह भी कहती है कि इस त्योहार को मनाते समय जब ‘होली है’ का उद्घोष किया जाता है, तो ये उसे एक युद्ध की तरह लगता है।
सोशल मीडिया पर एक इस्लामिक ट्रोल Opus of Ali ने भी इसी तरह के हिंदूफोबिक ट्वीट्स का सहारा लिया है, जिसमें कहा गया कि होली छेड़छाड़ का त्योहार है। कट्टरपंथी इस्लामवादी ने लगातार एक के बाद एक कई ट्वीट करते हुए लिखा कि छेड़छाड़ से बचने के लिए लोगों को होली को ना कहना चाहिए।
एक अन्य ट्वीट में Opus of Ali ने होली मनाने वाले हिंदुओं पर झूठे दावे करते हुए कहा कि इस दौरान महिलाओं का यौन उत्पीड़न किया जाता है।
इसके साथ ही ‘Baudhkaro’ नामक एक अल्ट्रा-लेप्ट समूह ने होली पर हमला किया। ये खुद को डॉ. बीआर अंबेडकर की शिक्षाओं का फॉलोवर होने का दावा करता है। इसमें दो वामपंथी कट्टरपंथी द्वारा ‘त्योहार- द एंटी होली सॉन्ग’ गाया जाता है। इसमें से एक कट्टरपंथी विवादास्पद वामपंथी विश्वविद्यालय जेएनयू से पीएचडी छात्र है, जो भड़काऊ टिप्पणी करता है और दावा करता है कि होली एक जातिवादी त्योहार है, जिसमें ऊँची जाति के हिंदुओं द्वारा निचली जातियों की महिलाओं का यौन उत्पीड़न किया जाता है।
इनका रीति-रिवाजों और परंपराओं को कोसना केवल हिंदू त्योहारों तक ही सीमित है। गैर-हिंदू त्योहारों की प्रतिगामी प्रथाओं की बात आते ही ये आँखें मूंद लेते हैं। हकीकत यह है कि लिबरल देश की गैर-स्वदेशी संस्कृति के सभी पहलुओं को छुपाते हैं, जबकि वे सभी हिंदू त्योहारों को खत्म करने का प्रयास करते हैं।
उल्लेखनीय है कि लेफ्ट मीडिया ने पिछले साल भी होली पर निशाना साधा था। फेक न्यूज वेबसाइट ‘द क्विंट’ ने हिंदुओं के रंगों के त्योहार की छवि को खराब करने के लिए इस पर्व को बच्चों द्वारा सड़कों पर आतंक फैलाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अवसर के रूप में ब्रांड बनाने के लिए आगे बढ़ाया था। इसी तरह से वामपंथी मीडिया पोर्टल स्क्रॉल ने भी होली के खिलाफ जहर उगले थे।