ज्वैलरी ब्रांड तनिष्क ने एक बार फिर विवादित विज्ञापन बनाया था। जिसमें तनिष्क ने हिन्दू विरोधी एजेंडा परोसते हुए दिवाली को निशाना बनाया था। पिछली बार की तरह इस बार भी तनिष्क के इस विज्ञापन की जम कर आलोचना हुई और विरोध में ट्विटर पर ट्रेंड भी चला। अंततः नतीजा यह निकला कि तनिष्क को अपना विज्ञापन हटाना पड़ा। इस विज्ञापन में कुछ महिलाएँ यह कहती हुई नज़र आ रही थीं कि उन्हें नहीं लगता किसी को पटाखे जलाने चाहिए।
विज्ञापन में दिवाली के नाम पर सिर्फ़ कुछ महिलाएँ नजर आ रही थीं जो हल्के रंग की साड़ियों में थीं और तनिष्क के आभूषण धारण करके बता रही थीं कि इस दीवाली पर क्या-क्या किया जाना चाहिए और क्या-क्या नहीं। परंपरागत शृंगार के नाम पर महिलाओं ने सिर्फ़ तनिष्क की ज्वैलरी ही पहनी थी।
विज्ञापन में न दिवाली पूजा से संबंधित कुछ नजर आ रहा था और न ही कुछ उसकी महत्ता से संबंधित। वहीं बैकग्राउंड की बात करें तो उसमें भी सामान्य लाइटिंग है, कोई दीया या कोई साज-सज्जा नहीं थी। विज्ञापन शुरू होते ही एक महिला इसमें कहती है, “यकीनन कोई पटाखे नहीं। मुझे नहीं लगता किसी को पटाखे जलाने चाहिए।” इसके बाद दो-तीन महिलाएँ अपनी बातें रखती हैं और अंत में इकट्ठा होकर खिलखिलाती नजर आती हैं। विज्ञापन खत्म।
Somehow all women look of the same shade. Which filter?😂😂 @TanishqJewelry guys c'mon.. your #ekatvam ads handling team is screwing up majorly.
— Maya (@Sharanyashettyy) November 8, 2020
Stop pontificating and lecturing what to do and not do during Diwali when you don't have a spine to do it during other festivals.
सभी जानते हैं कि तनिष्क आभूषण बनाने वाला समूह है और आभूषणों की भारतीय परिवारों में क्या अहमियत है। तनिष्क जैसे ब्रांड के लोकप्रिय होने का यह एक बड़ा कारण भारतीय समाज द्वारा इसे तवज्जो देना है। ऐसे में सबसे पहला प्रश्न यही खड़ा होता है कि तनिष्क के इस विज्ञापन का त्योहार से क्या संबंध? उस पूरे विज्ञापन में कहीं भी इस तरह की कोई बात ही नहीं है। सबसे ज़्यादा हैरानी की बात यह है कि जिस त्योहार की बात हो रही है उससे संबंधित बुनियादी चीज़ें तक विज्ञापन से नदारद हैं।
We dont wear dull colors on Diwali ….we wear bright colors…and we speak in our mothertounge…. we have poojas all 4 days including cow, dhan ,laxmi ,lord Ram ,chopdi pooja …ok … and we dont call our mothers MUM ….fake angrej…. !!Tanishq…change ur team …dumbs
— Ash (@Ashwini66669900) November 8, 2020
अगर आम जनता इसे हिन्दूफोबिया से ग्रसित विशुद्ध मार्केटिंग नहीं कहे तो क्या कहे? सिर्फ हिंदुओं के त्यौहार पर ही इस तरह के ब्रांड इतने जागरूक क्यों हो जाते हैं? अन्य त्योहारों पर इनकी जागरूकता का दायरा सीमित क्यों हो जाता है? चाहे इसके पहले वाला विज्ञापन ही क्यों न हो जिसमें तनिष्क ने मुस्लिम परिवार में हिंदू बहू की स्वीकार्यता का नाटक पेश किया था। अगर विज्ञापन और विज्ञापन के माध्यम से साझा किया गया विचार इतना ही सार्थक था तो उसे हटाने की ज़रूरत क्यों पड़ी? अगर तनिष्क का उद्देश्य सकारात्मक था और उसे बेहतर संदेश देना था तो दोनों विज्ञापन को हटाना ही नहीं था।
इस मामले में भी यही हुआ, विज्ञापन की मदद से पटाखे नहीं जलाने की नसीहत दी गई। जनमानस की भावनाएँ आहत हुई और चुपके से विज्ञापन हटा लिया गया। ठीक इसी पड़ाव पर कल्पना की जा सकती है कि इसी तरह का त्योहार विरोधी विज्ञापन किसी और मज़हब के लिए बना होता तब क्या हालात होते। तनिष्क ने अपने हिस्से की छद्म चर्चा बटोर ली भले उससे देश की बहुसंख्यक आबादी की भावनाओं का अपमान होता है।
ऐसा विज्ञापन जिसमें दिवाली का ज़िक्र है पर मिठाई, दीये, पूजा पाठ, रंगोली, मोमबत्ती कहीं नज़र नहीं आती है। यानी दिवाली का मतलब पटाखे नहीं जलाए जाएँ और इंसान सिर्फ तनिष्क के आभूषण पहन कर बैठ जाए। बाकी विज्ञापन को अच्छे से देखने पर समझ आता है, दिवाली का माहौल कम और किटी पार्टी का माहौल ज़्यादा नज़र आता है।