जब उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली तो उन्होंने आरे में आंदोलन करने वाले करीब दो दर्जन ‘पर्यावरण प्रेमियों’ के खिलाफ दर्ज किए गए आपराधिक मामलों को वापस ले लिया था। उन्होंने घोषणा की थी कि मेट्रो नहीं रुकेगा लेकिन आरे में अब पेड़ तो क्या, एक पत्ता भी नहीं काटा जाएगा।
"मेरे पास अंग्रेजी और हिंदी दोनों संघीय भाषा में बोलने का अधिकार है। लेकिन उन्होंने मुझसे कहा कि अगर मैं भारत में रहना चाहती हूँ तो मुझे मराठी सीखनी पड़ेगी।”
"मैं रामलला का आशीर्वाद लेने के लिए यहाँ आया हूँ। आज मेरे साथ मेरे 'भगवा' परिवार के कई सदस्य मौजूद हैं। मेरा सौभाग्य है कि पिछले डेढ़ साल में मैं तीन बार अयोध्या आ सका। मैं बीजेपी से अलग हूँ, हिंदुत्व से नहीं।"
"मुझे लगता है कि उद्धव ठाकरे ने सही रुख अपनाया है। शिवसेना के साथ हमारा गठबंधन विचारों पर आधारित था। उन्हें कॉन्ग्रेस और एनसीपी के दबाव की चिंता नहीं करनी चाहिए। यदि वे सरकार से निकल जाते हैं तो इस मुद्दे पर हम सरकार का साथ देंगे।"
विश्व हिंदू परिषद ने मुस्लिमों को आरक्षण देने पर चिंता जताते हुए कहा था, “शिवसेना से मुस्लिम तुष्टिकरण की उम्मीद नहीं की जा सकती।” रविवार (मार्च 1, 2020) की सुबह शिवसेना ने ट्वीट का जवाब देते हुए कहा, “इस तरह का फैसला विचाराधीन नहीं है।”
जो शिवसेना कभी महाराष्ट्र में धर्म के आधार पर आरक्षण देने के सख्त खिलाफ थी, उसी ने आज कॉन्ग्रेस और एनसीपी के आगे झुककर इस प्रस्ताव को सहमति दी। मुस्लिम समुदाय को 5% आरक्षण के लिए कॉन्ग्रेस और NCP की तरफ से मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर पहले से ही दबाव बनाया जा रहा था।
महाविकास अघाड़ी सरकार ने राज्यपाल से सीधे जनता से सरपंच चुनने के पूर्ववर्ती सरकार के निर्णय को रद्द कर ग्राम पंचायत सदस्यों में से सरपंच चुनने संबंधी अध्यादेश जारी करने की शिफारिस की थी। जिसे राज्यपाल ने खारिज कर दिया।
जिन्होंने राम मंदिर बनवाने के लिए अपनी जाने गवाईं, उनके नाम पर शहीद स्मारक बननी चाहिए। इन 'शहीदों' के लिए श्रद्धांजलि के रूप में सरयू तट पर एक स्मारक बनवाया जाना चाहिए। अमर जवान की तरह इन शहीदों के नाम भी अमर जवान ज्योति के समान लिखा जाना चाहिए।
इस मुलाकात की वजह नहीं बताई गई है। लेकिन, सीएम बनने के बाद दिल्ली की अपनी पहली यात्रा पर उद्धव ऐसे वक्त में आ रहे हैं जब एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार के साथ अनबन की खबरें चर्चा में हैं। इससे महाराष्ट्र में राजनीतिक सरगर्मियॉं अचानक से तेज हो गई हैं।
इस्तीफा देने वाले नेता हैं- सांसद अरविंद सावंत और विधायक रविंद्र वायकर। सावंत को उद्धव ने राज्य की संसदीय समन्वय समिति का प्रमुख नियुक्त किया था। वायकर मुख्यमंत्री कार्यालय में प्रमुख समन्वयक बनाए गए थे।