ट्रस्ट बनाने और मंदिर निर्माण की योजना के लिए तीन महीने का वक्त सरकार को दिया गया है। साथ ही शीर्ष अदालत ने कहीं और मस्जिद बनाने के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ जमीन देने का भी निर्देश दिया है। अदालत ने कहा कि बोर्ड अपना दावा साबित करने में नाकाम रहा।
अंग्रेजों के आने से पहले ही राम चबूतरा, सीता रसोई और विवादित ज़मीन के बाहरी हिस्से में हिन्दू पूजा किया करते थे। अर्थात, आउटर कोर्टयार्ड हिन्दुओं की पूजा का मुख्य बिंदु था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सारा विवाद अंदर के हिस्से को लेकर है।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कर दिया कि 1857 से पहले हिन्दू यहाँ पूजा करते थे। यानी, अंग्रेजों के आने से पहले ही राम चबूतरा, सीता रसोई और विवादित ज़मीन के बाहरी हिस्से में हिन्दू पूजा किया करते थे।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कर दिया कि राम जन्मभूमि कोई ज्यूरिस्टिक पर्सन नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कर दिया कि बाबरी मस्जिद खाली ज़मीन पर नहीं बनी थी। उससे पहले वहाँ स्ट्रक्चर था, जो इस्लामिक नहीं था।
राम मंदिर मामले में चल रही सुप्रीम कोर्ट की नियमित सुनवाई 6 अगस्त को शुरू हुई थी। 40 दिनों की नियमित सुनवाई के बाद सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय पीठ ने 16 अक्टूबर को फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था
असंतुष्ट पक्ष के पास दूसरा विकल्प क्यूरेटिव याचिका दाखिल करने का होगा। इसे उपचार याचिका भी कहा जाता है। पुनर्विचार याचिका ख़ारिज होने के 30 दिनों के भीतर क्यूरेटिव याचिका दायर की जा सकती है।
राम मंदिर के हक में फैसला आया तो यह पहला मौका नहीं होगा, जब हिंदुओं के दावे पर मुहर लगेगी। हाई कोर्ट ने भी विवादित स्थल को रामजन्भूमि माना था। अंग्रेजों के जमाने में भी अदालत ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने की बात मानी थी।
उन्हें हिंदुत्व का विद्वान माना जाता है। धार्मिक पुस्तकों का उन्हें इतना ज्ञान है कि वह अदालत में बहस के दौरान भी उनका जिक्र करते रहते हैं। तभी तो मद्रास HC के पूर्व मुख्य न्यायाधीश उन्हें 'भारतीय वकालत के पितामह' कहते हैं।
एक 'एक्सपर्ट' गवाह ने अयोध्या गए बिना ही विवादित स्थल के ऊपर एक भारी-भरकम पुस्तक लिख डाली। उन्होंने कोर्ट को बताया कि उन्हें बाबर के बारे में बस इतना पता है कि वह 16वीं शताब्दी का शासक था।
राजनीतिक और सैन्य कारणों से मराठे पवित्र स्थलों को वापिस पाने का सपना पूरा नहीं कर पाए। लेकिन भरसक प्रयासों में कोई कोताही नहीं बरती। आज यह याद करना ज़रूरी है कि हमारे पूर्वजों ने धन, प्राण, शक्ति समेत कितनी कुर्बानियाँ दी।