हिंसक प्रदर्शन का ठीकरा जामिया प्रशासन ने 'बाहरी' लोगों के सिर फोड़ा हो, लेकिन कैंपस की दीवारों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के ख़िलाफ़ ख़ूब ज़हर उगला गया है।
हिंसक प्रदर्शन को लेकर जामिया प्रशासन ने कहा है कि इसमें शामिल ज्यादातर लोग बाहरी थे। उल्लेखनीय है कि यूनिवर्सिटी के आसपास के इलाकों में समुदाय विशेष के लोगों की घनी आबादी है। तो क्या इस प्रदर्शन के पीछे कोई साजिश रची गई थी?
संविधान में आस्था है तो पुलिस पर पत्थरबाज़ी कैसे कर लेते हो? वो इसलिए कि तुम्हें पता है कि वो 'उम्माह' तुम्हारी खातिर जहाँ कहीं भी है, उठ खड़ा होगा और बोलेगा। अगर ये प्रदर्शन सिर्फ नागरिकता कानून को ले कर होता, और तुम सिर्फ विद्यार्थी होते तो इस प्रकरण में न तो पत्थर आता, न ही अल्लाह!
तेरा मेरा रिश्ता क्या-ला इलाहा इल्लल्लाह, ये शहर जगमगाएगा- नूर-ए-इलाहा से। वैसे ही नारे जैसे कश्मीर में पाकिस्तान के समर्थन में आतंकी लगाते हैं। जामिया में प्रदर्शन के दौरान पुलिस को उकसाने के किए गए तमाम जतन। कहा- पुलिस बचकर जाने न पाए। उसे छोड़े ना।
नागरिकता संशोधन बिल में प्रावधान है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए हिन्दू, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध एवं पारसी समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता प्रदान करना है।
इसमें कहा कि रामराज्य कुछ और नहीं बल्कि शिर्क (अत्याचारी, गैर मजहबी) का झंडा और बाबरी विध्वंस तौहीद अर्थात न्याय के झंडे के पतन के अलावा और कुछ नहीं है।