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पुस्तक समीक्षा
सहज भाषा में पठनीय व्यंग्यबाणों से लैस है ‘गंजहों की गोष्ठी’
85 पृष्ठों की पुस्तक "गंजहों की गोष्ठी" में कुल 20 व्यंग्यबाण (लेख) हैं। हर लेख एक मनके के समान है जो अद्वितीय है
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