Friday, October 11, 2024
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1200 निर्दोषों के नरसंहार पर चुप्पी, जवाबी कार्रवाई को ‘अपराध’ बताने वाला फोटोग्राफर TIME का दुलारा: हिन्दुओं की लाशों का ‘कारोबार’ करने वाले को भी ऐसे ही मिला था ‘अवॉर्ड’

वामपंथी-इस्लामी गिरोह की 3 प्रमुख खासियत है - उनके कनेक्शंस बहुत मजबूत होते हैं, वो जिस जनसमूह को अपना विरोधी मानते हैं उसका नरसंहार भी हो जाए तो चूँ तक नहीं करते और वो नए-नए किस्म के शब्द गढ़ कर खुद को बुद्धिजीवी दिखाते हैं।

Time मैगजीन ने 2024 में सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों की सूची जारी की है, जिसमें ‘आइकॉन्स’ वाली केटेगरी में फिलिस्तीन के फोटोग्राफर मोताज़ अज़ैज़ा को भी जगह दी गई है। मीडिया संस्थान का कहना है कि मोताज़ अज़ैज़ा गाजा में 108 दिनों तक दुनिया की आँख और कान बन कर रहे। कहा गया है कि कैमरा और PRESS लिखे सुरक्षा जैकेट से लैस 25 वर्षीय फोटोग्राफर ने लगभग 4 महीने गुजार कर गाजा में इजरायली बमबारी को कवर किया, पलायन को दिखाया, अपने सगों की मौत पर रोती महिलाओं को दिखाया और मलबे में फँसे व्यक्ति को दिखाया।

फोटोग्राफर मोताज़ अज़ैज़ा बना Time का दुलारा

मोताज़ अज़ैज़ा ने खुद को फिलिस्तीनी बताए जाने पर ख़ुशी जताते हुए कहा कि उन्हें अपने देश का नाम अपनी उपलब्धि के साथ साझा करने पर गर्व है। इस दौरान इस मंच का इस्तेमाल वो अंतरराष्ट्रीय प्रोपेगंडा के लिए करना नहीं भूले और उन्हें ललकारा जो लोग फिलिस्तीन को अलग मुल्क की मान्यता नहीं देते या जो इसे अपनी जमीन बताते हैं। मोताज़ अज़ैज़ा ने कहा कि फिलिस्तीन ‘यहूदी कब्जे’ से एक दिन मुक्त होगा और इसमें सब अपना किरदार अदा कर रहे हैं और उनका किरदार अभी खत्म नहीं हुआ है।

क्या आपने कभी देखा है कि ‘Time’ मैगजीन ने किसी ऐसे फोटोग्राफर को प्रभावशाली लोगों की सूची में डाला हो, जिसने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में हो रह बर्बरता की तस्वीरें खींची हो? जिसने ISIS, अलकायदा या बोको हराम जैसे क्रूर इस्लामी आतंकी संगठनों द्वारा पीड़ित लोगों की तस्वीरें खींची हों? जिसने म्यांमार में रोहिंग्या द्वारा किए जाने वाले हिन्दुओं और बौद्धों के नरसंहार को दिखाया हो? शायद ऐसी तस्वीरें Time के एजेंडा को सूट नहीं करती, इसीलिए ऐसे फोटोग्राफरों को इनाम नहीं दिया जाता।

Time ने बड़ी चालाकी से लिखा है कि 7 अक्टूबर, 2024 से लेकर अब तक गाजा में 95 पत्रकार मारे जा चुके हैं, लेकिन उसने ये नहीं बताया कि उससे पहले क्या हुआ था। फोटोग्राफर मोताज़ अज़ैज़ा की तारीफ़ करते हुए कहा गया है कि वो गाजा में युद्ध रुकवाने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यानाकर्षण चाहते हैं, उन्हें सोशल मीडिया पर लाइक-शेयर की चिंता नहीं है, बल्कि वो चाहते हैं कि दुनिया अब एक्शन ले। इंस्टाग्राम पर उनके 1.82 करोड़ फॉलोवर्स हैं।

Time पर उक्त फोटोग्राफर का प्रोफाइल उसकी पत्रकार यास्मीन सेरहन ने लिखा है, जो सोशल मीडिया पर इजरायल विरोधी प्रोपेगंडा के लिए कुख्यात हैं। Time पर उनके लेख आप देखेंगे तो किसी में इजरायल और उसके साथी देशों पर युद्ध अपराधी होने का आरोप मढ़ा गया है, किसी में कहा गया है कि इजरायल वैश्विक विश्वसनीयता खो चुका है, किसी में राम मंदिर को सांप्रदायिक बताया गया है। बड़ी बात तो ये है कि 7 अक्टूबर को इजरायल पर हुए जिस हमले में 1200 लोग मारे गए, उस पर उन्होंने चुप्पी साध ली।

हर जगह वामपंथी-इस्लामी गिरोह की वही फितरत

वामपंथी-इस्लामी गिरोह की 3 प्रमुख खासियत है – उनके कनेक्शंस बहुत मजबूत होते हैं, वो जिस जनसमूह को अपना विरोधी मानते हैं उसका नरसंहार भी हो जाए तो चूँ तक नहीं करते और वो नए-नए किस्म के शब्द गढ़ कर खुद को बुद्धिजीवी दिखाते हैं। भारत में भी असहिष्णुता, मॉब लिंचिंग, भगवा आतंकवाद, हिन्दू नेशनलिस्ट जैसे शब्द गढ़े गए, ‘जय श्री राम’ को वॉर कराई बताया गया। सेक्युलरिज्म जैसे शब्द तो अक्सर उनके मुँह पर ही रहता है। भारत में आजकल ये गिरोह ‘संविधान बचाओ’ नारे के साथ चुनावी मैदान में है।

अगर कनेक्शन मजबूत नहीं होते तो मोताज़ अज़ैज़ा Time में न आ जाता। इसका एक और उदाहरण देखिए, हाल ही में उसने राशिदा तलैब से मिला था। वो फिलिस्तीनी मूल की अमेरिकी सांसद हैं, इजरायल के खिलाफ अमेरिकी नीति को प्रभावित करने की कोशिश में लगी रहती हैं। दूसरी बात, 7 अक्टूबर को इस गिरोह ने पूरी तरह छिपा दिया। आइए, जानते हैं कि 7 अक्टूबर को ऐसा क्या हुआ था कि इजरायल को जवाबी कार्रवाई के लिए मजबूर होना पड़ा।

7 अक्टूबर को भुलाया: ‘क्रिया’ गायब, ‘प्रतिक्रिया’ की कवरेज

उस दिन हमास के आतंकी बड़ी संख्या में इजरायल में घुसे और 1200 लोगों का नरसंहार किया, जिसमें महिलाएँ-बच्चे शामिल थे। पालतू जानवरों तक को गोली मारी गई। घरों को लूट कर फूँक दिया गया। मजहबी नारे लगाए गए। रीम में ‘सुपरनोवा’ म्यूजिक फेस्टिवल में शामिल महिलाओं का अपहरण किया गया, उनके साथ बलात्कार हुआ। वहाँ 300 के करीब लाशें मिलीं। शानी लॉक नाम की जर्मन महिला को किस तरह नग्न कर के परेड निकाला गया, इसका वीडियो भी सबने देखा।

क्या आपने इस ‘क्रिया’ की कवरेज देखी? नहीं। लेकिन, अपने हजार से अधिक लोगों का बेरहमी से क़त्ल किए जाने और पूरी जनता के भयाक्रांत होने के बाद एक छोटे से मुल्क ने जवाबी कार्रवाई कर दी तो उस ‘प्रतिक्रिया’ को युद्ध अपराध बता कर कथित पीड़ितों की तस्वीरें लेने वालों को प्रभावशाली लोगों की सूची में डाला जाने लगा। हमास ने जो आतंकी हमला किया, उन 1200 लाशों में से किसी एक की भी तस्वीर Time ने लगाईं, अपने फोटोग्राफर भेजे?

और हाँ, हमास खुद ही अपने लोगों का इस्तेमाल खुद को पीड़ित दिखाने के लिए करता रहा है। एक बार इजरायल की सेना फिलिस्तीन में घुसी थी तो वहाँ महिलाओं-बच्चों को एक इमारत में वहीं की फ़ौज ने बंधक बना कर रखा था। इजरायली सेना ने उन्हें छुड़ा कर निकाला, फिर इमारत को उड़ाया। हमास जब खुद ऐसी हरकतें करता है, फिर फिलिस्तीन के लोगों की इस हालत के लिए इजरायल कैसे जिम्मेदार हुआ, यहूदी कैसे दोषी हुए? वामपंथी-इस्लामी कौन सा गणित पढ़ कर ये गणनाएँ करते हैं?

दानिश सिद्दीकी: जिन आतंकियों का था हमदर्द, उन्होंने ही मार डाला

दानिश सिद्दीकी आपको याद हैं? वही Reuters का फोटोग्राफर, जो कोरोना के दौरान हिन्दुओं की जलती चिताओं की तस्वीरें बेच-बेच कर कमाई करता था। उसने इस्लामी कब्रिस्तानों की एक भी तस्वीर नहीं ली, हिन्दुओं की लाशों का सौदा किया। इसके लिए उसे दोबारा पुलित्जर पुरस्कार तक से सम्मानित कर दिया गया। कंधार के स्पिन बोल्डक में अफगानिस्तान फौजियों और तालिबान के बीच युद्ध को कवर करते समय आतंकियों ने उसे भी मार डाला, उसकी लाश के साथ बदतमीजी की।

ये वही इस्लामी आतंकी थे, जिनकी वो पैरवी करता था। रोहिंग्यों की तस्वीरें खींचने के लिए उसे पहली बार पुलित्जर इनाम मिला था। वही रोहिंग्या, जो भारत में घुसपैठ करते हैं, अवैध रूप से रह कर अपराधों को अंजाम देते हैं। वही रोहिंग्या, जिन्होंने अगस्त 2017 में म्यांमार में 100 से भी अधिक हिन्दुओं का नरसंहार किया। महिलाओं के सामने ही पुरुषों को काट डाला गया। महिलाओं-बच्चों को भी काटा गया। दानिश सिद्दीकी इन्हीं आतंकियों की पैरवी करता था, उसके ही वैचारिक भाइयों ने उसकी जान ले ली।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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