अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष फैजुल हसन ने कहा कि देखना है तो मुस्लिमों का सब्र देखो। अग़र बर्बाद करने पर आए तो किसी देश को छोड़ेंगे नहीं। इतना गुस्सा है। वहीं जवाब में एक यूजर ने लिखा कि यह 1947 का हिंदुस्तान नहीं है कुचल कर रख देंगे।
आंदोलनकारी छात्रों के धरने में अचानक से एएमयू कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर पहुँच गए। उन्होंने जाते ही छात्रों को सोशल मीडिया पर वायरल हो रही एक पोस्ट से सम्बन्धित कागज को दिखाते हुए नाराजगी जताई, जिसके जवाब में छात्रों ने कहा कि वायरल हो रही खबर के कारण हम 32 हजार छात्रों को कटघरें में खड़ा नहीं कर सकते।
यह उस आज़ादी की माँग है। जिसकी एक झलक पिछले दिनों जामिया और जेएनयू में प्रदर्शनकारियों के हाथों में पकड़े पोस्टरों में दिखाई दी थी। इस आज़ादी की माँग को उन शिक्षकों ने दोहराया है, जिनके ऊपर विश्वविद्यालय के छात्रों को उज्ज्वल भविष्य की राह दिखाने की ज़िम्मेदारी है।
द वायर के संस्थापक की पत्नी, औरंगजेब परस्त इतिहासकार और द टेलिग्राफ ने दावा किया था कि अलीगढ़ पुलिस ने प्रदर्शन में भड़की हिंसा रोकने के लिए हथगोलों का इस्तेमाल किया। जबकि......
"मोटा भाई सबको हिंदू-मुस्लिम बनना सिखा रहे हैं, लेकिन इंसान नहीं। जब से आरएसएस अस्तित्व में आया है तब से वे संविधान में यकीन नहीं रखते। कैब से मुस्लिम दूसरी श्रेणी का नागरिक होगा और बाद में उसे एनआरसी लागू करके उसका शोषण किया जाएगा।"
जामिया नगर में शूट किए गए इस वीडियो के छठे सेकंड में आप सुन सकते हैं कि एक व्यक्ति यह कहता दिखता है कि वो मोदी, अमित शाह और हिन्दुओं से 'आज़ादी' लेकर रहेंगे।
"छात्र होने का मतलब यह नहीं है कि वे कानून-व्यवस्था अपने हाथ में ले सकते हैं। हम शांतिपूर्ण प्रदर्शन और अधिकारों के खिलाफ नहीं हैं। लेकिन सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान नहीं पहुॅंचाया जा सकता। ऐसे हालात में पुलिस को कदम उठाना ही होगा।"
यूनिवर्सिटी 5 जनवरी तक बंद कर दिया गया है। सुरक्षा लिहाज से अलीगढ़ में इंटरनेट सेवाएँ भी बंद कर दी गई है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 6 जिलों मेरठ, बुलंदशहर, कासगंज, बागपत, सहारनपुर एवं बरेली में एहतियातन धारा 144 लागू की गई है।
नागरिकता संशोधन विधेयक का अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में विरोध शुरू। खुद को 'छात्र' कहने वाले उन्मादियों के समूह ने कैंपस में सभा की, जिसमें CAB को मुस्लिम विरोधी करार दिया गया। इसके बाद छात्रों ने नागरिकता संशोधन विधेयक की प्रतियाँ जलाईं और ‘हिंदुत्व मुर्दाबाद’ के नारे भी लगाए।
अलीगढ़ का नाम बदलने की पहल तब भी हुई थी, जब कल्याण सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। लेकिन, उस समय केंद्र में कॉन्ग्रेस की सरकार होने के कारण यह मुमकिन नहीं हो पाया था।