वसीम रिजवी ने दावा किया कि अयोध्या की विवादित ज़मीन सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की संपत्ति है ही नहीं, वो शिया वक़्फ़ बोर्ड की संपत्ति है। इसके पीछे तर्क देते हुए उन्होंने कहा कि बाबर के जिस सेनापति ने इस मस्जिद को बनवाया था, वो एक शिया मुसलमान था।
"अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के दूरगामी असर वाले परिणाम देखने होंगे, इसीलिए बेहतर होगा अगर सुप्रीम कोर्ट अपने इस ऐतिहासिक फैसले को कुछ इस तरह पेश करे, जिससे वह उन संवैधानिक मूल्यों का भी प्रदर्शन करे, जिन पर इस देश को भरोसा है।"
वे पर्दे के पीछे से साजिश रचेंगे और डराने के लिए खून भी बहाएँगे। वे चाहेंगे कि माहौल बिगड़े ताकि मंदिर निर्माण टलता रहे। वे नक्शे को फाड़ेंगे, क्योंकि वे जानते हैं कि जिस दिन हिंदू जगेगा उनका इतिहास हर गली-नुक्कड़ पर फाड़ा जाएगा।
1528-1731 के बीच विवादित स्थल पर कब्जे को लेकर दोनों सम्प्रदायों के बीच 64 बार संघर्ष हुए। 1822 में फैजाबाद अदालत के मुलाजिम हफीजुल्ला ने सरकार को भेजी एक रिपोर्ट में कहा कि राम के जन्मस्थान पर बाबर ने मस्जिद बनवाई।
"सुन्नी वक्फ बोर्ड और अन्य मुस्लिम पक्षकार यह साबित करने में विफल रहे हैं कि विवादित स्थल पर बाबर ने मस्जिद का निर्माण किया था। उनका दावा था कि मस्जिद का निर्माण शासन की जमीन पर हुकूमत (बाबर) द्वारा किया गया था।"
भारतीय इतिहास लेखन के “Big Four” रोमिला थापर, इरफ़ान हबीब, आरएस शर्मा और डीएन झा ने इस मामले में प्रपंच रचा। डॉ. जैन ने बताया कि इन्हें पता था कि अदालत ने पोल खुल सकती है तो पेशी के लिए अपने छात्रों को भेजते रहे और बाहर अपनी लेखनी से झूठ की पालकी ढोते रहे।
स्क्रॉल ने अपनी ख़बर की हेडलाइन और सोशल मीडिया में शेयर टेक्स्ट ऐसा रखा, जिससे धवन की पहचान उजागर न हो। इसी तरह 'आउटलुक' ने भी सोशल मीडिया पर टेक्स्ट में कहीं भी धवन या सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड का जिक्र नहीं किया।
शीर्ष अदालत में सुनवाई के दौरान हिन्दू महासभा ने कुछ कागज़ात और नक़्शे दिए थे। अदालत में ही धवन ने उन्हें एक-एक कर फाड़ना शुरू कर दिया। जब मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने उन्हें टोका तो उन्होंने कुछ और पन्ने फाड़ डाले।
दावे से पीछे हटने के बदले में सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने तीन शर्तें रखी है। उसने कहा है कि एएसआई के नियंत्रण में जितने भी धार्मिक स्थल हैं, उनकी स्थिति की जाँच करने के लिए सुप्रीम कोर्ट एक समिति बनाए।