एक ओर पुलिस का दावा है कि इस हिंसा में 90 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं, और दूसरी ओर आरोपित चंद्रशेखर का कहना है कि वह अंबेडकर के संविधान को मानते हैं और हिंसा में विश्वास नहीं करते। यह उन्हें फँसाने की साजिश है।
राजस्थान के अलवर में दलित युवक हरीश जाटव की बाइक से एक महिला को टक्कर लग गई थी। महिला के परिजनों ने पिटाई से उसकी मौत हो गई। पुलिसिया जॉंच से परेशान होकर हरीश के पिता ने जहर खाकर जान दे दी। परिजनों का कहना है कि पुलिस मॉब लिंचिंग के मामले को एक्सीडेंट साबित करने पर तुली है।
"विधायक गीता गोपी के खिलाफ जातिवादी भेदभाव चौंकाने वाला है। यह आपराधिक और बेहद निंदनीय है कि कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं ने उस स्थान पर गाय का गोबर-मिश्रित पानी डाला, जहाँ लोकतांत्रिक ढंग से विरोध-प्रदर्शन किया गया।"
हरीश जाटव मंगलवार को अलवर जिले के चौपांकी थाना इलाके में फसला गाँव से गुजर रहा था। इसी दौरान उसकी बाइक से हकीमन नाम की महिला को टक्कर लग गई। जिसके बाद वहाँ मौजूद भीड़ ने उसे पकड़कर बुरी तरह पीटा।
छुआछूत हिन्दू समाज को उसी पायदान पर खड़ा करता है जिस पर समुदाय विशेष पर्दा, हलाला, बुरका और तीन तलाक के चलते खड़े हैं- इंसान से उसकी गरिमा का हक छीनने वाला चाहे तीन तलाक हो, हलाला हो, या छुआछूत, वह बराबर निंद्य है।
"इस गाँव में 95 प्रतिशत दूसरे मजहब से हैं। आज दलित नाई की दुकान में जाने की माँग कर रहे हैं, कल को शादी-घर बुक करने की माँग करेंगे। ये लोग यहाँ अराजकता पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। यहाँ दशकों से शांति बनी हुई थी। इस मामले को गलत मक़सद से हवा दी जा रही है।"
गाँव के दलित समुदाय के बुजुर्गों का कहना है कि यह भेदभाव वे अरसे से झेलते आ रहे हैं। लेकिन, चाहते हैं कि उनकी नई पीढ़ी को इससे आजादी मिले। इसलिए जाति के आधार पर भेदभाव अब खत्म होना चाहिए।
सामाजिक समारोह में इस प्रकार की झड़प और हिंसा जौनपुर-जौनसार में आम बात है और यही वजह है कि समय-समय पर यहाँ पर 10-15 गाँव मिलकर शादी-विवाह में शराब और DJ को प्रतिबंधित करते आए हैं लेकिन ऐसे में किसी व्यक्ति की मृत्यु होना बेहद चौंकाने वाला प्रकरण है।
कोरेगांव की लड़ाई की प्रशंसा ब्रिटेन की संसद तक में हुई थी और कोरेगाँव में एक स्मारक भी बनवाया गया था जिस पर उन 22 महारों के नाम भी लिखे हैं जो कम्पनी सरकार की ओर से लड़े थे। यह प्रमाणित होता है कि कोरेगाँव की लड़ाई दलित बनाम ब्राह्मण थी ही नहीं, यह तो दो शासकों के मध्य एक बड़े युद्ध का छोटा सा हिस्सा मात्र थी।
हिंसक आंदोलनों की नाजायज़ औलादें, लाशों पर पैर रख कर संसद तक पहुँचती है। ऐसी भीड़ें ही इन नाजायज़ बच्चों को जनती है जो बाद में इन्हीं के लिए बने संसाधनों को पत्थर से बने पर्स में, और पार्कों के पिलर पर बने हाथियों में खपा देते हैं।