इन गैरकानूनी शरणार्थियों को इकट्ठा होने दीजिए, एक बड़े जगह पर रखिए तो ये धीरे-धीरे अपने दीवार खड़े करते हैं, गैरमुस्लिम लोगों को उनके इलाके में घुसने से मना करते हैं, फिर संख्या बढ़ने पर स्थानीय प्रशासन से अपने लिए मजहबी आधार पर विशेष अधिकारों की माँग करते हैं, और एक समय आता है कि स्वीडन जैसे देश को बलात्कार के नक्शे पर नंबर एक बना देते हैं।
पुलिस जाँच से पता चला है कि छ: रोहिंग्याओं को दिल्ली में एक मदरसे में प्रशिक्षण दिया गया और उन्हें दिल्ली तथा मणिपुर के कुछ एजेंटों की मदद से यहाँ लाया गया था।
रोहिंग्या का मुद्दा काफी पुराना है। म्यांमार से अवैध रूप से रोहिंग्या भारत में प्रवेश करते रहे हैं। मोदी सरकार ने इन पर कठोर कार्रवाई करते हुए पिछले साल रोहिंग्या नागरिकों को वापस उनके देश म्यांमार वापस भेजने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी।
"रोहिंग्या को लावारिस मत समझना कि उन्हें बंगाल से निकाल दोगे। सुनो... ये असम नहीं, ये गुजरात नहीं, ये यूपी नहीं, ये मुजफ्फरनगर नहीं... ये बंगाल है, बंगाल। और बंगाल में अभी तक किसी माँ ने वो औलाद नहीं जना है जो मुसलमानों को निकाल कर दिखा दे।"
त्रिपुरा-असम बॉर्डर से रेलवे पुलिस फ़ोर्स ने 7 नाबालिग रोहिंग्यों को गिरफ़्तार किया है। सभी को उत्तरी त्रिपुरा के धर्मनगर रेलवे स्टेशन से गिरफ़्तार किया गया।
2019 के शुरुआती महीने में निर्वासन के डर से क़रीब 1300 रोहिंग्याओं ने बांग्लादेश में पलायन किया है, जिसकी वजह से नई दिल्ली को और केंद्रीय सरकार को काफ़ी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है।
भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में रोहिंग्याओं को अवैध अप्रवासी बताते हुए उन्हें देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा बताया था। सरकार का तर्क था कि रोहिंग्या लोगों को रहने की अनुमति देने से हमारे अपने नागरिकों के हित काफी प्रभावित होंगे और देश में तनाव भी पैदा होगा।