इन घटनाओं में एक वर्ग तो वह होता है जो सुनियोजित ढंग से शामिल होता है और एक वर्ग वह होता है जो कि जाने-अनजाने में घटनाओं में शामिल तो हो जाता है लेकिन इसके बाद कानूनी कार्यवाई में फँसने के बाद वह अपने आप को निर्दोष बताते हुए पहले तो दर-दर की ठोकरें खाता है और फ़िर अपनी ही आँखों से अपने भविष्य को चौपट होते हुए भी देखता है।
JNU में तो दो बार से सारे वामपंथियों के नितम्ब चिपक कर एक होने के बाद ही चुनाव जीते जा रहे हैं, इस साल कितने चिपकेंगे ये देखने की बात है। घर में कॉफी पीने वाला लेनिनवंशी पब्लिक में लाल चाय पीने लगता है और छत पर मार्लबोरो फूँकता माओनंदन कॉलेज के स्टाफ क्लब में बीड़ी पीता दिखता है।