"हमारे दो घर थे वहाँ। कश्मीरी पंडितों का दमन शुरू हुआ तो हमें दोनों घर छोड़ने पड़े। हमें दिल्ली आना पड़ा। सरकार ने हमारी कोई चिंता नहीं की। न ही नुकसान की भरपाई हुई।"
अमूमन देखने को मिलता है कि 'आंदोलनों' के समर्थन में नौकरी छोड़ने वाले अफसर या तो करप्शन के आरोपित हैं या फिर कुछ दिन बाद उनका पॉलिटिकल एजेंडा सामने आ जाता है।
जम्मू कश्मीर की स्थानीय पार्टियों का भारत-विरोधी रुख तो जगजाहिर है, लेकिन अब कॉन्ग्रेस पार्टी भी फ़ारूक़ अब्दुल्लाह और महबूबा मुफ़्ती जैसे नेताओं के सुर में सुर मिला रही है।