मध्यस्थता पैनल ने कहा है कि सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड विवादित स्थल पर अपने दावे से पीछे हट गया है। इस संबंध में शीर्ष अदालत में वह हलफनामा दायर कर सकती है। हालॉंकि बोर्ड किन शर्तों पर राजी हुआ है, इस संबंध में अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है।
40 कुम्हार परिवार की आबादी वाले गाँव जयसिंहपुर में सभी परिवारों को क्षमता अनुसार दीपक बनाने का ऑर्डर दिया गया है। कुम्हारों के चाक जगमग हो उठे हैं। इससे चाइनीज झालरों की चकाचौंध कम होगी और दीपक की रौशनी में पूरा अयोध्या नहाएगा।
पराशरण ने कहा- यह राम का जन्मस्थान है, इसे बदला नहीं जा सकता। किसी को भी भारत के इतिहास को तबाह करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। कोर्ट को इतिहास की गलती को ठीक करनी चाहिए।
"हम हिंदुस्तान के वफादार नागरिक हैं। विवाद पसंद नहीं करते। हम मुस्लिम हैं। हमारा मजहब कहता है कि जिस मुल्क में रहो उसके वफादार बनो, उसका कानून मानो। कौन-क्या कह रहा है उससे हमारा कोई लेना-देना नहीं है।"
"वे कौन होते हैं सद्भावना के नाम पर पेशकश करने वाले? क्या मुस्लिम जनसंख्या उन लोगों के बारे में कुछ जानती है? 0.1% मुसलमानों को भी उनके बारे में मालूम नहीं है।”
आखिर अंग्रेज़ों के दस्तावेजों में चोरी-छिपे 'बाबरी मस्जिद' किसने जोड़ा? खुदाई में मिले साक्ष्यों से यह साफ़ है कि न केवल मस्जिद मंदिर तोड़कर बनी, बल्कि यह स्थल मस्जिद के सैकड़ों, हज़ारों साल पहले से मंदिर रहा है।
योगी ने विपक्षियों पर तंज कसते हुए कहा कि हमारे देश में राम का नाम लेते ही कुछ लोगों को हाई-वोल्टेज करंट लगता है। उन्होंने कहा कि भारत तभी तक बना रहेगा और मानव कल्याण का मार्ग यहाँ से गुजरता रहेगा, जब तक यह देश मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम से ख़ुद को जोड़ कर उनसे प्रेरणा लेता रहेगा।
एएसआई की रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट के सवालों का साफ-साफ जवाब नहीं दे पाईं मुस्लिम पक्ष की वकील मीनाक्षी अरोड़ा। कमल के निशान, खुदाई में वराह की मूर्ति मिलने जैसे कई सबूतों पर अदालत ने पूछे थे सवाल। अष्टकोणों को भी हिन्दू धर्म का मानने से कर दिया इनकार।
पराशरण ने कहा कि अगर लोगों को विश्वास है कि किसी जगह पर दिव्य शक्ति है तो इसे न्यायिक व्यक्ति माना जा सकता है। उन्होंने कुड्डालोर मंदिर का उदाहरण देते हुए कहा कि वहाँ मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है और केवल एक दीया जलता है जिसकी पूजा की जाती है।
पराशरण ने बताया कि मूर्ति अपने-आप में भगवान नहीं है, लेकिन स्थापना के बाद उसमें दिव्यता आ जाती है। उन्होंने बताया कि ऐसी मूर्ति में स्थापित ईश्वर लोगों की भावनाओं और आस्थाओं का प्रतीक होते हैं।
उन्हें समर्पित की गई चल व अचल संपत्ति के भी वह स्वामी होते हैं।