यदि वकीलों ने लॉकअप को पहले तोड़ने की कोशिश की और उसमें असफ़ल रहने पर आगजनी का सहारा लिया, जैसा कि एडिशनल डीसीपी (नॉर्थ) का दावा है, तो यह निष्पक्ष और बेहद गंभीर जाँच का विषय होना चाहिए कि यह जेल तोड़ने का प्रयास महज़ गुस्से की अभिव्यक्ति था, या इसके पीछे कोई ठंडे दिमाग से बनाई गई योजना थी।
पार्किंग विवाद को लेकर दिल्ली के तीस हज़ारी कोर्ट के बाहर वकीलों और पुलिस के बीच हिंसा हुई थी। एक पुलिस कार और 20 अन्य वाहनों को आग लगा दी गई थी। 2 पुलिस वालों को दिल्ली हाई कोर्ट ने सस्पेंड कर दिया था और न्यायिक जाँच के आदेश दे दिए थे।
कटनी में एक आरएसएस प्रचारक को पुलिसकर्मियों ने जमकर पीटा और उनके कपड़े फाड़ दिए। घटना से नाराज बीजेपी के कार्यकर्ता थाने में धरने पर बैठ गए। मामले के तूल पकड़ने के बाद आरोपित थाना प्रभारी लाइन हाजिर कर दिए गए हैं।
कानून के शासन और नैतिकता, मूल्यों, आदर्शों की बातें करने वाली योगी सरकार क्या जनता के लिए अलग और अपने विधायक के लिए अलग मापदंड अपनाएगी? नेताजी के लिए “भीड़” का समर्थन आएगा, इस डर से नेताजी को छोड़ा भी जा सकता है! या फिर नेताजी भी वैसे ही जेल जाएँगे जैसे इस मामले में कोई साधारण व्यक्ति गया होता?
इस दोनों प्रथाओं के बीच समानता स्थापित करने के कोई भी प्रयास अत्यंत घृणित है और मुस्लिम महिलाओं द्वारा तीन तलाक के परिणामस्वरूप झेले जा रहे दमन के चरम की गंभीरता को कमतर करता है।
पथराव शुरू हुआ, डॉक्टरों पर जानलेवा हमले हुए तो पुलिस ने क्यों नहीं रोका? क्यों डॉक्टरों की जान बचाने के लिए दंगाईयों पर नियंत्रण के लिए कड़ी कार्रवाई नहीं की गई? जवाब हम सब को पता है।
पूरे मामले पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि विधायक पर हमला, टीएमसी के भीतरी कलेश को दर्शाता है। इससे स्पष्ट होता है कि किस तरह आपसी गुटों में झगड़ा चल रहा है।