उत्तराखंड से स्थानीय लोगों के पलायन और मैदानी इलाकों से खास समुदाय के लोगों के आकर बसने के कारण राज्य के कई इलाकों में डेमोग्राफी में बड़ा बदलाव आया है।
जनगणना पारंपरिक पेन और पेपर के बजाए मोबाइल फोन एप्लीकेशन के जरिए होगी। अधिसूचना में साफ शब्दों में कहा गया है कि मोबाइल नंबर सिर्फ जनगणना के मकसद से ही पूछा जाएगा। इसके अलावा परिवार के मुखिया का नाम, शौचालय का इस्तेमाल करते हैं या नहीं, पीने के पानी के स्नोत जैसे सवाल पूछे जाएँगे।
"इस रजिस्टर में आपका नाम ज़रूर होना चाहिए, क्योंकि ये आपके बहुत काम आएगा। एनपीआर के बहुत सारे फायदे हैं। इसके जरिए ही 'यूनिक आइडेंटिटी कार्ड' मिलेगा। ये पहचान पत्र सरकारी योजनाओं में ख़ास कर के काम आएगा।"
NPR की शुरुआत मनमोहन सरकार के दौरान हुई। इसमें शामिल होना भारत में रह रहे लोगों के लिए अनिवार्य किया गया। साथ ही इसे NRIC की दिशा में पहला क़दम बताया गया। अमित शाह ने साफ किया है कि दोनों का कोई लेना-देना नहीं है।
एनपीआर को कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद से विपक्ष उसी तरह अफवाह फैलाने में जुट गया है जैसा उसने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लेकर किया। जिस तरीके से CAA को NRC से जोड़ा गया, उसी तरह अब NPR को भी NRC से जोड़कर दिखाने की कोशिश हो रही है। जबकि हकीकत कुछ और ही है।
केंद्रीय मंत्री ने कई इस्लामी देशों का उदाहरण देते हुए कहा कि वहाँ भी जनसंख्या नियंत्रण क़ानून है, लेकिन भारत में उसका विरोध किया जाता है। उन्होंने चेतावनी दी कि जहाँ-जहाँ हिन्दुओं की जनसंख्या गिरती है, वहाँ-वहाँ सामाजिक समरसता को ख़तरा पैदा हो जाता है।