“हमारे परिवार के सदस्यों को मार दिया गया है, बेटियों का धार्मिक रुपांतरण करा दिया और संपत्तियाँ छीन ली गई है। वहाँ पर जिंदगी मौत से भी बदतर है। हमें भारत सरकार द्वारा बनाए गए नए कानून के तहत कुछ उम्मीद है।”
“समिति ने यह पाया कि जब शायरी पढ़ी गई तब शायद, समय और स्थान उपयुक्त नहीं थे। जिस व्यक्ति ने उसका (कविता) पाठ किया, वह इस दृष्टिकोण से सहमत हुआ और उसने एक नोट लिखा कि किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचने पर उसे पछतावा है। तो ऐसे में अब यह मामला बंद हो चुका है।”
सीएए विरोधियों और माओवादियों के बीच लिंक मिलने के बाद राज्य में सुरक्षा के लिए एहतियाती कदम उठाए गए हैं। बताया जा रहा है कि नागरिकता कानून का विरोध कर रहे लोग सरकारी कार्यालयों में अनिश्चितकालीन हड़ताल करवाने की फिराक में लगे हुए हैं।
इन पर पुलिस चौकी और वाहनों को फूॅंकने तथा सरकारी कार्यालयों में लूटपाट का आरोप है। साथ ही ‘हत्या के इरादे से’ पुलिस पर गोलीबारी के भी ये आरोपित हैं। इनमें से कई जेल में हैं। जो जमानत पर बाहर हैं उन्हें फिर से दबोचा जाएगा।
"इस देश की अदालतें यूँ ही आतंकवादियों के लिए रात को नहीं खुल जातीं। यूँ ही दंगाइयों के अधिकारों के लिए खड़ी नहीं होती। ज्यूडिशियरी में #UrbanNaxals घुसे पड़े हैं। महाराष्ट्र के पूर्व न्यायाधीश को सुनिए- कैसे मुस्लिमों को भड़का रहे हैं- 20 करोड़ हो, पुलिस से मत डरो, लड़ कर मरो।"
नौशाबा कुछ दिनों से अपनी तकरीबन डेढ़ माह की बच्ची को लेकर प्रदर्शन में शामिल हो रही थी। कई बार उसने प्रदर्शन स्थल पर रात में भी रुकने की कोशिश की थी। शुक्रवार को मासूम बच्ची की इंतकाल की खबर आई।
शाहीन बाग से प्रदर्शनकारियों द्वारा गिरफ्तार आरोपित मुस्लिमों की रिहाई की माँग करना अपने आप में कई सवाल खड़े करता है। आरोपित की रिहाई कानूनी प्रक्रिया के तहत होती है, भीड़ की माँग पर नहीं। फिर आखिर क्या वजह है कि शाहीन बाग में धरने पर बैठी भीड़ आरोपितों को छोड़ने के लिए दबाव बना रही है?
हर्ष मंदर ने कहा कि शाहीन बाग में पिछले कुछ महीनों से हो रहे विरोध प्रदर्शन को अब वापस ले लेना चाहिए, क्योंकि इसका इस्तेमाल आरएसएस और उसके सहयोगियों द्वारा मुस्लिमों के खिलाफ हेट कैंपेन को बढ़ावा देने के लिए ट्रिगर के रूप में किया गया।