करतारपुर साहिब में दर्शन करने गए सरवन सिंह 75 साल बाद अपने भतीजे मोहन से मिले। विभाजन के वक्त उनके परिवार के 22 लोगों को मारा गया था। मोहन तब किसी तरह बचे थे।
विभाजन के दौरान पाकिस्तान में हिन्दुओं-सिखों की मदद के लिए न आई कोई राजनीतिक पार्टियाँ और ना ही आए वह नेता, जो उस समय इतिहास में खुद को दर्ज कराना चाहते थे।
1947 का विभाजन कोई अचानक हुई घटना नहीं थी। इसके लिए मुस्लिमों ने लंबे समय से माँग उठाई थी। मगर फिल्म में दिखाया गया है जैसे हिंदुओं ने उन्हें खदेड़ा हो।
कई देशों में 'National day of mourning', अर्थात शोक का दिवस मनाया जाता है। फिर भारत के हिन्दू/सिख अपने साथ हुई त्रासदी व इसके गुनहगारों को क्यों न याद करें?
प्रधानमंत्री का आज का वक्तव्य हमें आशावान बनाता है कि हम भविष्य में दशकों से प्रोपेगेंडा का हिस्सा रहीं कई और स्थापित धारणाओं और मान्यताओं को ध्वस्त होते हुए देखेंगे।