कई लोग मानते हैं कि 8वीं या 9वीं शताब्दी में माँ सरस्वती को जापान में बेंजाइटन के रूप में पूजा जाने लगा। लेकिन, पाँचवीं-छठी शताब्दी में लिखी गई बौद्ध पुस्तकों में बेंजाइटन का जिक्र है। उनकी प्रतिमाएँ सफ़ेद होती हैं और उनके हाथ में वीणा होता है।
"भारत में शक्ति का केंद्र सिर्फ संविधान है और कोई दूसरा शक्ति केंद्र हो, ऐसी हमारी कोई इच्छा नहीं है। यदि ऐसा हुआ तो हम विरोध करेंगे। संविधान में देश के भविष्य की तस्वीर एकदम साफ है। वही प्रारंभ बताता है और गंतव्य भी।"
"2016 में मैं समर्पित रूप से हिन्दू धर्म के अनुसार जीवन के मार्ग पर चलने का फ़ैसला किया। उस समय मुझे यह पता था कि यह मेरे काम और मेरे व्यवसाय को प्रभावित कर सकता है। फिर भी मैंने यह किया। इसके बाद आक्रामक कट्टरपंथी ईसाई लोगों ने 3-4 महीने तक मेरा पीछा किया, मेरे घर आकर धमकाना शुरू कर दिया।"
किसी वजह से किसी स्वास्तिक में बिंदु न हों तो इसका मतलब ये कतई नहीं है कि वो हिन्दुओं का प्रतीक चिन्ह नहीं है। यह एक बड़ी विडंबना है कि जो लोग हिन्दुओं के लिए अपने मन में घृणा रखते हैं वो बताते हैं कि कौन-सा प्रतीक हिन्दुओं का है और कौन-सा नहीं।
बीते दिनों हुए इन प्रदर्शनों में करीब 30 पोस्टर ऐसे दिखाई दिए, जो हिंदूघृणा की खुली किताब थे। जिन्हें देखते ही अंदाजा लग जाएगा कि सेकुलरिज्म बचाने के नाम पर ये हिंदुत्व पर हमला है।
इस यात्रा को हज़ारों लोग 83 किलोमीटर पैदल चल कर तय करते हैं। कुछ शरारती तत्वों ने इस पवित्र प्रक्रिया में विघ्न डालने के लिए यात्रा के रास्ते में जानवरों के माँस व कंकाल फेंक दिए ताकि हिन्दुओं की भावनाएँ आहत की जा सके। श्रद्धालुओं ने इसे लेकर गुस्सा जताया।
काशी विद्वत परिषद के रामनारायण द्विवेदी ने ऑपइंडिया को बताया कि परिषद की बैठक में ये प्रस्ताव रखा गया था कि सुबह की आरती और दर्शन के समय जो लोग शिवलिंग का स्पर्श दर्शन करना चाहते हैं या फिर स्पर्श कर के पूजन करना चाहते हैं, उनके लिए ड्रेस कोड तय किए जाएँ।
इंडोनेशिया की करीब 90 फीसद आबादी मुस्लिम है। जावा के जिस पठार से मूर्ति मिली है वह कलिंगा साम्राज्य के हिंदू मंदिरों का स्थान रहा। 140 सेमी मूर्ति की ऊँची और 120 सेमी चौड़ी मूर्ति का निर्माण 7वीं से 8वीं शताब्दी के बीच होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
फ़िल्म 'तान्हाजी' ने वामपंथी पोर्टलों की ऐसी सुलगाई है कि वो अजय देवगन से खार खाए बैठे हैं। क्विंट, वायर, एनडीटीवी और स्क्रॉल की समीक्षाओं का पोस्टमार्टम कर हमने आपके मनोरंजन की व्यवस्था की है। जानिए, वामपंथी समीक्षकों ने देश के अस्तित्व को कैसे नकारा है।
थरूर का कहना है कि हिंदुइज्म बहुलतावाद में विश्वास करता है जबकि हिंदुत्व समावेशी नहीं है। ऐसा कहते हुए उन्होंने इस्लाम और ईसाइयत को भी नीचा दिखा दिया। जाहिर है लिबरलों को यह पसंद न आया।