बिहार की रिपोर्टिंग करने पहुँचे लोग गमछा डालकर, लिट्टी-चोखा खाकर इसे नाटक बना देते हैं। बिहार का ना होते हुए भी वहाँ जाकर वहाँ का होने का आवरण ओढ़कर रिपोर्टिंग करना क्या रिपोर्टिंग है? देखा जाए तो टीवी वालों ने हर चीज को एक तरह से सर्कस की तरह बना दिया है।
अपने आपको अदाकारा बना लिया है और वो उसे बेचने की कोशिश करते हैं। लोगों को ट्रेनिंग दी जाती है कि उन्हें क्या बोलना है। उन्हें पहले ही इस चीज के लिए तैयार कर दिया जाता है कि उनसे क्या पूछा जाएगा और इसके जवाब में उन्हें क्या बोलना है।
लोजपा एनडीए से अलग है, लेकिन बीजेपी के साथ है। क्या रामलिवास पासवान के इलाकों में उसी तरह का दलित उत्थान हुआ है, जिस तरह से लालू ने दावा किया और किया कुछ नहीं, या वाकई दलितों के जीवन में उत्थान हुआ है?
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