डेमेंशिया (dementia) से पीड़ित 69 वर्षीय महिला को ‘केयर होम’ निवासी युवक (कथित बॉयफ्रेंड) के साथ सेक्स करने की अनुमति कोर्ट ने दे दी है। फैसला सुनाते हुए जज ने यह भी कहा कि महिला युवक के साथ सेक्स कर सकती है लेकिन उससे शादी नहीं कर सकती।
‘डेमेंशिया’ बुजुर्गों में बेहद आम बात है, जिसमें भूलना, याददाश्त कमज़ोर होना, सोचने-समझने की क्षमता कम होना जैसे लक्षण नज़र आते हैं। दरअसल बुजुर्ग महिला ने युवक के साथ यौन संबंध बनाने की इच्छा जताई थी, जिसके बाद काउंसिल सोशल सर्विसेज़ ने इस मामले में न्यायालय के दखल की माँग उठाई।
इस दौरान एक मनोवैज्ञानिक ने महिला का परीक्षण किया था और सेक्स को लेकर उनकी जानकारी परखने के लिए सवाल भी पूछे थे। जिसके बाद जस्टिस पूल ने कहा कि महिला ‘यौन संबंध बनाने को लेकर’ फैसला लेने की स्थिति में है।
जज ने हालाँकि यह भी स्पष्ट किया कि 69 वर्षीय महिला यह फैसला लेने की स्थिति में नहीं है कि उसे युवक से शादी करनी है या नहीं। न ही महिला को इस बात की समझ है कि शादी के दौरान किस तरह के आर्थिक और न्यायिक समस्याएँ खड़ी हो सकती हैं।
जज के मुताबिक़ इस बात के सबूत मौजूद हैं कि महिला को इसका अंदाज़ा नहीं है कि तलाक के बाद उसके रुपयों और संपत्ति का क्या होगा। लेकिन महिला इस स्थिति में ज़रूर है कि वह ‘यौन संबंध बनाने’ या ‘दूसरों से संपर्क में रहने’ के मुद्दे पर फैसला ले सके।
इंग्लैंड की एक अदालत में इस मामले पर सुनवाई करते हुए जज ने कहा, “इस मुद्दे पर फैसला सुनाने में देरी अफ़सोसजनक है क्योंकि महिला उस युवक के साथ प्रेम संबंध नहीं बना पा रही।” पिछले कुछ महीनों में 69 वर्षीय महिला की युवक से काफी बातचीत हुई, जिसके बाद दोनों की नजदीकियाँ बढ़ीं।
जस्टिस पूल ने महिला का परीक्षण करने वाले मनोवैज्ञानिक की रिपोर्ट का भी संज्ञान लिया। मनोवैज्ञानिक का इस मुद्दे पर कहना था कि महिला ने ‘यौन संबंधों की प्रकृति और संरचना’ को लेकर औसत समझ दिखाई। महिला को इस बात का भी अंदाजा था कि इसके क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं।
महिला को STD (sexually transmitted disease) से होने वाले खतरे का अनुमान था। इस पर महिला का कहना था, “मुझे ऐसी बीमारी न तो हुई है और न ही मैं ऐसी बीमारी चाहती हूँ।” इससे बचाव को लेकर पूछे गए सवाल पर महिला ने जवाब दिया, “कॉन्डोम का इस्तेमाल करके STD से बचा जा सकता है।”
अंत में जज ने कहा कि मीडिया रिपोर्ट्स में महिला की पहचान नहीं की जा सकती है और मामले से जुड़े काउंसिल की पहचान भी सार्वजनिक नहीं की जानी चाहिए।