केरल पुलिस ने त्रिशूर में 2 बंगाली झोलाछाप डॉक्टरों को गिरफ्तार किया है। यह दोनों बिना किसी डॉक्टरी की पढ़ाई किए दशकों से लोगों को इलाज के नाम पर मूर्ख बना रहे थे। साथ ही ये कई गंभीर रोगों का इलाज करने का दावा करते थे।
इनमें से एक बंगाली व्यक्ति तो जिलाधिकारी के दफ्तर से मात्र 4 किलोमीटर दूर ही बैठ कर यह झोलाछाप डॉक्टर क्लिनिक चला रहा था, इसका नाम इसने ‘चाँदसी क्लीनिक’ रखा हुआ था। इसका नाम दिलीप कुमार सिकदर है और यह बंगाल का रहने वाला है। हैरानी की बात यह है कि वह पिछले तीन दशकों से यह क्लीनिक चला रहा था।
इसके खिलाफ एक शिकायत आई थी जिस पर जिले की मेडिकल टीम ने छापा मारा और इसे गिरफ्तार किया। उसके पास से यूनानी, एलोपैथिक और होम्योपैथिक दवाइयाँ बरामद हुई हैं। उसके पास से एक ऐसा फर्जी प्रमाण पत्र भी प्राप्त हुआ है जिसमें लिखा था कि वह किसी भी तरह की मेडिकल प्रैक्टिस कर सकता है। सिकदर गंभीर रोगों जैसे कि भगंदर और बवासीर का इलाज करने का दावा करता था और काफी बड़ा क्लीनिक बना रखा था। त्रिशूर से ही एक और फर्जी बंगाली डॉक्टर त्रिदीप कुमार रॉय को पकड़ा गया है। वह भी एक ऐसा ही क्लिनिक चला रहा था।
गौरतलब है कि मात्र केरल ही नहीं बल्कि पूरे देश में ऐसे डॉक्टर बड़ी संख्या में हैं। गाँवों में इनका प्रभाव और भी ज्यादा है। वर्ष 2016 में आई WHO की एक रिपोर्ट बताती है कि देश में 57 प्रतिशत डॉक्टर फर्जी हैं। हालाँकि, बीते कुछ वर्षों में इनकी संख्या में कमी आई है।
स्थानीय स्तर पर अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएँ ना हों और जिला मुख्यालय पर स्थित अस्पतालों का दूर होना भी ऐसे फर्जी झोलाछाप डॉक्टरों के लिए मुफीद स्थिति पैदा करता है। जिस तरह के डॉक्टर त्रिशूर में पकड़े गए हैं, यह अधिकांश गंभीर बीमारियों को सस्ते में ठीक करने का दावा करते हैं। स्वास्थ्य के लिए अधिक पैसा ना लगाने में सक्षम गरीब जनता इनके चंगुल में आती है।