NDA सरकार द्वारा किया गया 124वॉं संविधान संशोधन एक ऐतिहासिक कदम है, जिसमें गरीब लोगों को रोज़गार के क्षेत्र में और शिक्षा के क्षेत्र में 10 प्रतिशत का आरक्षण दिया जाएगा। ये फ़ैसला देश के हर कोने में सराहा जा रहा है। राजनैतिक उठा-पटक के चलते भी कई लोगों द्वारा इस बिल का समर्थन किया गया है। लेकिन, इसके बावजूद कई नेता, कई राजनैतिक पार्टियाँ और उनके कार्यकर्ता बेवजह इस बिल से जुड़े झूठ फैलाने में जुटे हुए हैं।
इस बिल से संबंधित चार झूठों के बारे में हम आपको बताते हैं, जो इस समय धड़ल्ले से हर जगह विरोधियों और विपक्षियों द्वारा फैलाए जा रहे हैं। इन झूठ को फैलाने में कई मीडिया संस्थान भी शामिल हैं और कई राजनैतिक पार्टी के समर्थक भी।
इन झूठों को फैलाने के लिए सबसे महत्तवपूर्ण रोल भारतीय मीडिया का ही है। बिल के आने से पहले ही इस बात पर बहस छेड़ी जा रही थी कि ये बिल सिर्फ ऊँची जाति वालों के लिए ही होगा न कि पूरी जनरल कैटेगरी के लिए। अब बिल के आने के बाद भी ये झूठ लगातार दर्शकों और पाठकों को परोसा जा रहा है। जबकि, बिल में ऊँची जातियों को आरक्षण दिया जाएगा, इसका कहीं पर भी वर्णन नहीं है।
बिल में स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि ये आरक्षण केवल आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए है, इसमें जाति, धर्म और पंथ पर कोई बात नहीं की गई है।
दूसरा झूठ – इस बिल को लेकर फैलाया जा रहा है वो ये कि इस बिल को लाने के बाद भाजपा एससी, एसटी और ओबीसी को दिए जाने वाले जातिगत आरक्षण को खत्म कर देगी और सिर्फ आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाएगा। भाजपा द्वारा इस बात को बार-बार दोहराया गया है कि इस बिल को लाने के साथ उनकी मंशा जाति के आधार पर मिलने वाले आरक्षण में हस्तक्षेप करने की बिल्कुल भी नहीं है। फिर भी विरोधियों द्वारा इस तरह झूठ को फैलाना बताता है कि वो देश की जनता को अपनी मन से गढ़ी हुई बातों में फँसाकर उलझाना चाहते हैं।
तीसरा झूठ – इस 10 प्रतिशत आरक्षण बिल द्वारा 50 प्रतिशत मिलने वाले आरक्षण की सीमा का उल्लंघन किया है। अब आपको बताएँ कि संवैधानिक संशोधन के ज़रिए पास हुआ ये आरक्षण बिल अनुच्छेद 15(6) और अनुच्छेद 16(6) द्वारा प्रस्तावित किया गया है। 50 प्रतिशत मिलने वाला आरक्षण केवल जाति के आधार पर है, जबकि ये 10 प्रतिशत मिलने वाला आरक्षण आर्थिक स्थिति के आधार पर है। जिससे अब ये भी साबित होता कि विरोधियों और विपक्षियों द्वारा फैलाई जाने वाली ये अफवाह भी बिलकुल झूठी है कि 10 प्रतिशत आरक्षण बिल 50 प्रतिशत मिलने वाले आरक्षण की सीमा का उल्लंघन करती है।
चौथा झूठ – किसी घर का एक अकेला व्यक्ति यदि 8 लाख रूपए सालाना कमाता है तो वो भी आरक्षण के तहत आएगा। आरक्षण बिल को लेकर कही जाने वाली ये बात बिलकुल झूठ है। इस आरक्षण बिल में कहा गया है कि यदि किसी परिवार की सालाना आय ₹8 लाख तक है तो वो इस आरक्षण का फाएदा उठा सकता है। किसी परिवार में अकेले इंसान की आय ₹8 लाख होने से ही वो इस आरक्षण का फ़ायदा नहीं उठा सकता है। ऐसी बात केवल लोगों को बरगलाने के लिए फैलाई जा रही हैं।
हमें इंटरनेट पर पसरे प्रोपगेंडा पर ग़ौर करने से ज्यादा समझना चाहिए कि संसद कोई छोटी चीज़ नहीं है। वहाँ पारित किया जाने वाला हर बिल अपने आप में बहुत बड़ा उद्देश्य लिए होता है। हमें इन पारित बिलों के बारे में पूरी तरह पढ़कर ही अपना मत तैयार करना चाहिए। हमें समझना चाहिए यदि देश में केवल अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लोग ही प्रभावित नहीं है, बल्कि वो लोग भी प्रभावित है जिनके जाति प्रमाण पत्र पर जनरल होने का टैग भी लगा हुआ और खाने के लिए रोटी भी नहीं है।
ऐसे में क्या बुरा है यदि उन्हें रोज़गार और शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण मिल रहा है? लोगों के हित में यदि सरकार उनके लिए कदम उठाती है तो सरकार का विरोध करने से ज़्यादा उसको सराहा जाना चाहिए ताकि आने वाले समय में भी देश के हर वर्ग के हित में काम होता रहे।