इसे एक विडम्बना ही कहा जाएगा कि जिस नेहरू-इंदिरा को लेकर कॉन्ग्रेस पार्टी आज दंभ भरती है, उन्हीं के वंशजों को आने वाले समय में कहीं यह पार्टी पहचानने से इनकार न कर दे। इस परिवार की वर्तमान पीढ़ी ने तो कॉन्ग्रेस पार्टी की जड़ में इतनी तन्मयता के साथ मट्ठा डाला है कि आने वाले समय में यह पार्टी इनका नाम लेने से सम्मान जुटा पाएगी, इसके आसार फिलहाल तो नहीं दिखते।
दशकों से वंशवाद का आरोप झेल रही कॉन्ग्रेस पार्टी आजकल अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। सड़क से लेकर संसद के गलियारों तक इस बात से कोई भी व्यक्ति इनकार नहीं करेगा कि एक परिवार की निष्ठा में शीर्षासन करने वाली कॉन्ग्रेस पार्टी आज सियासी मैदान में लुढ़क कर गिरी जा रही है। आज हरियाणा चुनाव के तमाम रुझान एग्ज़िट पोल के नतीजों को टक्कर देने की स्थिति तक पहुँच रहे हैं। विलुप्त होने के कगार पर पहुँच रही कॉन्ग्रेस पार्टी के लिए ऐसे रुझानों का आना ठीक वैसे ही है जैसी किसी डूबते को तिनके का सहारा मिलना। मगर सवाल यह उठता है कि क्या इसका श्रेय भी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को दिया जाना चाहिए जो पूरे चुनाव प्रचार के दौरान हरियाणा से लगभग नदारद रहा?
जवाब है नही!
हरियाणा चुनाव में बेशक कॉन्ग्रेस पार्टी बढ़त बनाती दिख रही हो मगर यह नहीं भूलना चाहिए कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने इस राज्य के चुनाव में कुछ नहीं किया। 18 अक्टूबर को पार्टी अध्यक्ष सोनिया गाँधी को हरियाणा में एक जनसभा को संबोधित करना था मगर बाद में पार्टी की ओर से सूचना आई कि कुछ अपरिहार्य कारणों के चलते वे नहीं आएँगी, उनकी जगह आए सम्पूर्ण कॉन्ग्रेस पार्टी के लाडले युवराज राहुल गाँधी। अपने भाषणों में आस्तीन चढ़ाकर, अजीबो-गरीब भाव-भंगिमा सहित कुछ भी बोल देने वाले राहुल गाँधी। जिनका ‘गाँधी’ सरनेम उनकी सबसे बड़ी योग्यता है। इन साहब ने भी राज्य में कोई ख़ास प्रदर्शन करने की ज़हमत नहीं उठाई, उनके यही तेवर पार्टी को अस्तित्व के संकट से थोड़ा बहुत ऊपर लाए हैं। मानो जैसे जनता के सबसे बड़े दुश्मन यही हों। सच कहें तो यह पार्टी अब वह बैल है जिसे खुद गाँधी भी नहीं हाँकना चाहेंगे।
Congress General Secretary for UP (East) Priyanka Gandhi Vadra in Raebareli: I haven’t seen the latest trends, really happy at both (Haryana and Maharashtra). We also are happy about the fact that here in UP our vote percentage has increased. pic.twitter.com/m85CwuxrJu
— ANI UP (@ANINewsUP) October 24, 2019
‘गाँधी’ सरनेम की योग्यता से पार्टी की महासचिव बनीं प्रियंका गाँधी भले ही रुझानों पर कितनी ही ख़ुशी जताएँ मगर अंदरखाने वह इस बात को जानती हैं कि जनता उन्हें और उनके परिवार को सत्ता के लिए अब कितना योग्य समझती है और यह बताने के लिए लोकसभा चुनाव काफी थे। कॉन्ग्रेस पार्टी जिस प्रियंका गाँधी को फायरब्रांड नेता बताती है, हरियाणा में प्रचार को लेकर उनकी सुस्ती से मान लिया गया कि पार्टी के सर्वेसर्वा परिवार ने पहले ही अनहोनी को भाँपकर अपने हथियार डाल दिए थे। साथ ही आज हरियाणा के रुझानों से इतना तो तय हो ही गया कि अगर देश की सबसे पुरानी पार्टी को लोकतंत्र में अपने आस्तित्व को बचाए रखना है तो अब इस परिवार की तिलांजलि देने का वक़्त आ गया है।
आज दोपहर 2 बजे महेंद्रगढ़ में श्री @RahulGandhi जी जनता से संवाद करने पहुंच रहे हैं। किसी कारणवश @INCIndia राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गाँधी जी आने में असमर्थ हैं।
— Haryana Congress (@INCHaryana) October 18, 2019
आपसे निवेदन है कि इस जन सभा में पहुंच कर कांग्रेस परिवार को अपना समर्थन दें।
लोकतंत्र में राजनीतिक दलों और संगठनों का ख़ासा महत्त्व होता है। इस तंत्र में हर एक दल किसी न किसी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करने के लिए राजनीति में उतरते हैं। इन्हें समाज के विभिन्न विचारों की नुमाइंदगी करने वाले के रूप में देखा जाता है। ऐसा ही एक दल एक शताब्दी से भी लम्बा इतिहास समेटे आज अस्तित्व तलाशने में लड़खड़ा रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि पिछले 10-15 सालों में जनता ने इस बात को बखूबी समझा है कि कॉन्ग्रेस पार्टी में सत्ता-सुख की लालसा रखने वाला केन्द्रीय नेतृत्व यानी गाँधी परिवार पर गाहे-बेगाहे भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहते हैं। आरोप लगने से लेकर इसकी सच्चाई आने तक जनता एक मतदाता के रूप में अपना काम कर चुकी होती है। क्यों, क्योंकि खून-पसीना एक कर टैक्स भरने वाली जनता और करे तो क्या करे? उसके खाते में तो बस टू-जी स्पेक्ट्रम, कोयला और कॉमनवेल्थ जैसे घोटालों की खबरें ही आती हैं जिसके बाद वह खुदको सिर्फ एक ठगा हुआ मतदाता महसूस करता है।
अगर कोई यह कहे कि अस्तित्व की इस लड़ाई में पार्टी को उम्मीद की किरण अध्यक्ष पद पर सोनिया के दोबारा आने से सक्रिय हुए ओल्ड-गार्ड्स (पुराने नेताओं) की बनाई नीति ने दी है तो इस बात का उल्लेख किया जाना बेहद ज़रूरी है कि इस नीति के तहत या तो परिवार को पंजाब के विधानसभा चुनाव से सीख लेकर इस चुनाव में थोड़ा दूर रहने की नसीहत दी गई थी (जिसका प्रभाव इलेक्शन में देखा गया) अन्यथा दूसरा विकल्प यही था कि ओल्ड-गार्ड उन्हें अटलजी की कविता ‘क्या हार में क्या जीत में’ सुना दें। जो लोग इस डूबती नैय्या के बाल-बाल बचने पर सोनिया गाँधी के सर क्रेडिट का ताज पहना रहे हैं उन्हें जानना चाहिए कि पंजाब में विधानसभा चुनाव के दौरान राहुल गाँधी पार्टी अध्यक्ष होकर भी सक्रिय नहीं थे। इस पर जनता ने पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुवाई वाली कॉन्ग्रेस को इज्ज़त बक्शी थी और वे सरकार में आ गए। उस वक़्त भी पार्टी का शीर्ष नेतृत्व यानी गाँधी परिवार राज्य के चुनाव से दूर था। लिहाज़ा हरियाणा और पंजाब के इन उदाहरणों से यह बात स्पष्ट होती है कि लगातार हार का मुँह देखकर जीवनयापन करने वाली कॉन्ग्रेस पार्टी बार-बार परिवार की छवि से अब खुदको धूमिल करना नहीं चाहेगी। हरियाणा और पंजाब दोनों राज्यों के चुनाव में जनता ने पुरखों की पार्टी लेकर इतराने वाले ‘गाँधी परिवार’ को आइना दिखाया है।