झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन फरार हो गए थे। कारण – जमीन घोटाले और मनी लॉन्ड्रिंग में ED (प्रवर्तन निदेशालय) उनसे पूछताछ के लिए 10 बार समन जारी कर चुकी है लेकिन वो हाजिर नहीं हुए। उनके दिल्ली स्थित ठिकानों पर छापेमारी हुई, जहाँ से ED ने एक BMW समेत 2 गाड़ियाँ, 36 लाख रुपए कैश और कुछ कागजात मिले हैं। क्या आपको पता है कि हेमंत सोरेन की तरह ही कभी उनके पिता शिबू सोरेन भी पद पर रहते हुए फरार हो गए थे? हेमंत सोरेन अभी CM है, पिता शिबू तब केंद्रीय मंत्री हुआ करते थे।
हम इस घटना के बारे में जानेंगे, लेकिन उससे पहले समझिए कि झारखंड में चल क्या है। इस घोटाले की जाँच तेज़ होने के बाद झारखंड की राजनीति में अस्थिरता आ गई है। सत्ताधारी दल के विधायकों को राँची में रहने के आदेश दिए गए हैं। राज्यपाल CP राधाकृष्णन ने पुलिस महानिदेशक (DGP), मुख्य सचिव और गृह सचिव को तलब कर कानून-व्यवस्था की स्थिति पर बैठक की है। राजभवन, हेमंत सोरेन के आवास और ED दफ्तर के 100 मीटर के दायरे में धारा-144 लागू कर दी गई है।
जहाँ पार्टी के संस्थापक शिबू सोरेन अब भी JMM के अध्यक्ष हैं, उनके बेटे हेमंत पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष हैं। जमीन खरीद में गड़बड़ी, अवैध खनन और मनी लॉन्ड्रिंग – इन आरोपों के तहत ED उनकी जाँच कर रही है। बताया गया है कि भारतीय सेना के नियंत्रण वाली जमीन की खरीद-बिक्री की गई। राँची नगर निगम ने इस संबंध में FIR दर्ज करवाई थी। इसी आधार पर ECIR (सूचना रिपोर्ट) दर्ज की गई थी। आरोप है कि जमीन की खरीद-बिक्री के लिए दस्तावेजों में हेराफेरी की गई थी।
ये भी आरोप है कि जनजातीय समाज के नियंत्रण वाली जमीनों में भी गड़बड़ी कर के खरीद-बिक्री की गई। इस मामले में एक IAS अधिकारी और एक व्यापारी समेत 14 लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं। 2011 बैसण के अधिकारी छवि रंजन को ED ने मई 2023 में ही गिरफ्तार किया गया था। जुलाई 2020 से लेकर 2 वर्षों तक वो राँची के डिप्टी कमिश्नर थे। गिरफ़्तारी के समय वो ‘डायरेक्टर ऑफ सोशल वेलफेयर’ के पद पर थे। जून 2023 में दर्ज FIR के आधार पर उनकी गिरफ़्तारी हुई थी।
क्या है जमीन घोटाला और अवैध खनन वाला मामला
उस समय ‘राँची म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन’ में टैक्स कलक्टर रहे दिलीप शर्मा ने प्रदीप बागची नामक एक शख्स के खिलाफ FIR दर्ज करवाई थी। उस पर आरोप था कि उसने उस जमीन को खरीद कर उस पर कब्ज़ा कर लिया, जो भारतीय सेना के नियंत्रण में थी। शुरू में मामला 455 डेसिमल (4.50 एकड़) जमीन का था, जो BM लक्ष्मण राव के नाम पर हुआ करता था और देश की स्वतंत्रता के बाद उन्होंने इसे भारतीय सेना को सौंप दिया था। जमीन माफिया, अधिकारियों एवं दलालों ने मिल कर फर्जीवाड़ा किया और प्रदीप बागची को उसका मालिक दिखा दिया।
इस जमीन को फिर पश्चिम बंगाल के ‘जगतबंधु टी एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड’ को बेच दिया गया। इसका दाम 20.75 करोड़ रुपए होना चाहिए था, लेकिन इसे 7 करोड़ रुपए ही दिखाया गया। बागची को 25 लाख रुपए दिए गए, बाकी की धनराशि चेक द्वारा भुगतान किए जाने का फर्जी दावा कर दिया गया। बाद में पता चला कि छवि रंजन ऐसी दर्जन भर से ज्यादा जमीन की खरीद-फरोख्त में शामिल है। ED अवैध खनन से हुई 100 करोड़ रुपए की अवैध आय के मामले की भी जाँच कर रही है, अवैध खनन का ये मामला हजार करोड़ रुपए का है।
अब ये पूरा मामला सैकड़ों एकड़ जमीन तक पहुँच चुका है और जो जाँच CO स्तर से होते हुए कोलकाता के ‘रजिस्ट्रार ऑफ एस्युरेंस’ और फिर CM तक पहुँच गई, उसमें कई खिलाड़ी शामिल हैं। जिस व्यापारी को इस मामले में गिरफ्तार किया गया है, वो विष्णु अग्रवाल हैं। हेमंत सोरेन के एक अन्य करीबी प्रेम प्रकाश को भी इसमें गिरफ्तार किया गया था। इस मामले में भी बरहेट के विधायक हेमंत सोरेन के प्रतिनिधि पंकज मिश्रा को भी गिरफ्तार किया गया है। साहिबगंज के नींबू पहाड़ पर चल रहे अवैध खनन से ग्रामीणों के घर में दरार पड़ने लगी थी, एक मामूली सही शिकायत इतने बड़े स्तर तक पहुँच गई।
जब फरार हो गए थे शिबू सोरेन, देना पड़ा इस्तीफा
2004 के लोकसभा चुनाव में JMM कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाले UPA गठबंधन का हिस्सा थी। जब यूपीए की जीत हुई तब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने। उन्होंने शिबू सोरेन को मई 2004 में कोयला मंत्री के रूप में केंद्रीय कैबिनेट में शामिल किया। हालाँकि, वो अधिक दिनों तक इस पर पर नहीं रह सके। इसी बीच चिरूडीह नरसंहार का 30 साल पुराना मामला सामने आ गया। सदन में इस पर हंगामा हुआ। शिबू सोरेन भूमिगत हो गए, उनका कहीं से कोई पता नहीं चल रहा था।
इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने शिबू सोरेन से इस्तीफा माँग लिया। मंत्री बनने के मात्र ढाई महीने बाद उन्होंने फैक्स के माध्यम से अपना इस्तीफा प्रधानमंत्री को भेज दिया। नवंबर 2004 में उन्हें जमानत मिल गई। फिर उन्हें फिर से केंद्रीय कैबिनेट में शामिल किया गया। उसके बाद वो झारखंड के मुख्यमंत्री बने। उन्हें जमानत मिलने के बाद केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के राँची में परिवर्तन रैली का आयोजन किया गया था। मजे की बात ये है कि उस रैली से ठीक एक दिन पहले शिबू सोरेन को सोनिया गाँधी के दखल वाली सरकार में शामिल किया गया था।
उस समय प्रकाश चंद्र पारख केंद्रीय कोयला मंत्रालय में सचिव हुआ करते थे। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘शिखर तक संघर्ष‘ में शिबू सोरेन को व्यक्तिगत एजेंडे वाला मंत्री करार दिया है। कई मुद्दों को लेकर शिबू सोरेन उनसे सहमत नहीं थे और उनके स्थानांतरण के लिए प्रधानमंत्री को उन्होंने पत्र तक लिखा। पारख यूपीए काल में हुए कोयला घोटाले के व्हिस्लब्लोवर भी थे। नियुक्ति-भर्तियों से लेकर कोयला आवंटन तक के मुद्दों पर शिबू सोरेन और उनमें एकमत नहीं हुआ करता था।
अब आप सोच रहे होंगे कि ये चिरूडीह नरसंहार वाला क्या मामला है, जिसमें शिबू सोरेन के खिलाफ गैर-जमानती वॉरंट जारी हुआ, वो फरार हुए और उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। चिरूडीह उस समय दुमका जिले में हुआ करता था, अब ये बोकारो में है। चिरूडीह में 1975 में नरसंहार हुआ था। उस समय शिबू सोरेन महाजनों के खिलाफ उग्र आंदोलन चला रहे थे। संथाल परगना का वो इलाका उस समय भागलपुर कमिश्नरेट से जुड़ा हुआ था। जब ये मामला 30 वर्षों बाद खुला, तब चिरूडीह जामताड़ा में चला गया था।
जामताड़ा आज फ्रॉड कॉल्स एवं ठगी के लिए कुख्यात है। शिबू सोरेन जब मंत्री बने थे, तब इससे जुड़ी खबरें अख़बारों में छिटपुट आने लगी थीं। निचली अदालत में ये मामला चल रहा था। शिबू सोरेन के झारखंड आंदोलन के दौरान हिंसा की एक नहीं बल्कि कई घटनाएँ हुई थीं। उनका दावा था कि वो गरीबों की जमीन वापस दिलाने के लिए अभियान चला रहे हैं। चिरूडीह में 13 लोग मारे गए। शुरुआती रिपोर्ट में शिबू सोरेन का नाम नहीं था, लेकिन चार्जशीट में उनका नाम भी आया।
फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट ने बाद में शिबू सोरेन को निर्दोष साबित कर दिया, जिसके बाद उनके समर्थकों ने जश्न मनाया। शिबू सोरेन के समर्थकों ने 23 जनवरी, 1975 को चिरूडीह में ‘दिकू’ लोगों के साथ हिंसा की। ‘दिकू’ वो कथित रूप से बाहरी लोगों को कहते थे और उन्हें पलायन करने को मजबूर करते थे। समर्थकों द्वारा ‘गुरूजी’ नाम से पुकारे जाने वाले शिबू सोरेन ने इस मामले में कुछ दिन अंडरग्राउंड रहने के बाद जामताड़ा की अदालत में आत्मसमर्पण किया था।
ये भी जाने वाली बात है कि मृतकों में 9 मुस्लिम थे। एक तरफ शिबू सोरेन के लोग थे तो दूसरी तरफ CPI के कम्युनिस्ट। इस मामले के एक अन्य आरोपित आरोपित लखींद्र सोरेन ने मरने से पहले 7 फरवरी, 1975 को जामताड़ा सदर अस्पताल में दिए गए बयान में कहा था कि शिबू सोरेन ने उनलोगों को आदेश दिया था कि मुस्लिम लोग जनजातीय समाज के घर जला रहे हैं, इसीलिए पहले उन्हें मार डाला जाना चाहिए। 1980 में शिबू सोरेन सांसद बने और मामला खिंचता रहा।
उनके केंद्रीय मंत्री बनने का बाद फिर ये जिन्न 2004 में सामने आया, लेकिन तब तक 69 में से 25 आरोपित और 40 में से 20 गवाह मर चुके थे। 2002 में झारखंड हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश VK गुप्ता ने इस मामले में फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन का आदेश दिया था। जून 2004 में शिबू सोरेन को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस अधिकारियों को दिल्ली भेजा गया। हालाँकि, संसद चल रही थी इस कारण लोकसभा अध्यक्ष की अनुमति की आवश्यकता थी। तब तक शिबू सोरेन अंडरग्राउंड हो गए।