भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023, भारतीय न्याय संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 पहली जुलाई से लागू हो जाएँगे। गृह मंत्रालय ने आज (24 फरवरी 2024) इस बारे में एक राजपत्र अधिसूचना (नोटिफिकेशन) जारी कर दिया है। ये तीनों विधेयक पिछले वर्ष दिसंबर में संसद में पारित किए गए थे। ये कानून भारतीय दंड संहिता 1860, दंड प्रक्रिया संहिता 1898 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 का स्थान लेंगे।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने शनिवार को जारी नोटिफिकेशन में कहा है कि 1 जुलाई से देश में तीन नए आपराधिक कानून – भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Bharatiya Sakshya Adhiniyam) लागू होंगे। इसके लिए गृह मंत्रालय ने तीन अलग-अलग नोटिफिकेशन जारी किए हैं। ये नए कानून दशकों पुराने भारतीय दंड संहिता (IPC), आपराधिक प्रक्रिया संहिता और 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे।
Bharatiya Sakshya Adhiniyam 2023, Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita 2023 and Bharatiya Nyaya Sanhita 2023 to come into effect from 1st July, 2024. pic.twitter.com/Kw0F3I7A4D
— ANI (@ANI) February 24, 2024
इन तीनों कानूनों को 21 दिसंबर 2024 को संसद की मंजूरी मिली थी। इसके बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 25 दिसंबर 2024 को तीनों कानूनों को अपनी मंजूरी दे दी थी। संसद में तीनों विधेयकों पर चर्चा के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि इनमें सजा देने के बजाय न्याय देने पर फोकस किया गया है। पिछले माह ही प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने निर्देश दिए थे कि नए आपराधिक कानूनों को सभी केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) में लक्षित तरीके से लागू किया जाना चाहिए।
क्या क्या बदलाव आएँगे?
भारतीय दंड संहिता 1860 (IPC) के अधिकांश अपराधों को भारतीय न्याय संहिता (BNS) में अलग रखा गया है। इसमें ‘सामुदायिक सेवा’ को सजा के रूप में जोड़ा गया है। आत्महत्या जैसे अपराधों में व्यक्ति को सामाजिक सेवा की सजा दी जा सकती है। हालाँकि, इस दौरान उसे किसी तरह का मेहनताना नहीं दिया जाएगा।
राजद्रोह को अब अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है। राजद्रोह के बजाय अब भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों के लिए एक नया अपराध के रूप में जोड़ा गया है।
BNS में आतंकवाद को एक अपराध माना गया है। इसे एक ऐसे कृत्य के रूप में परिभाषित किया गया है जिसका उद्देश्य देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा को खतरे में डालना, आम जनता को डराना या सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ना है। स्थानीय स्तर पर शांति भंग करना भी आतंकवाद की श्रेणी में शामिल है। फेक करेंसी की तस्करी आतंकवादी कृत्य होगा।
संगठित अपराध को अपराध के रूप में जोड़ा गया है। इसमें अपराध सिंडिकेट की ओर से किए गए अपहरण, जबरन वसूली और साइबर अपराध जैसे अपराध शामिल हैं। छोटे-मोटे संगठित अपराध भी अब अपराध हैं।
जाति-नस्ल, भाषा, समुदाय या व्यक्तिगत विश्वास जैसे कुछ पहचान चिह्नों के आधार पर पाँच या अधिक व्यक्तियों के समूह द्वारा की गई हत्या में सात साल से लेकर आजीवन कारावास या मौत तक की सजा का प्रावधान किया गया है।
नए कानून में सात वर्ष से अधिक और 12 साल से कम उम्र के किसी बच्चे के अपराध को अपराध नहीं माना जा सकता है, जिसकी समझ इतनी परिपक्व नहीं हुई कि उस अवसर पर वह अपने आचरण की प्रकृति और उसके परिणामों के बारे में निर्णय कर सके।
पहले किसी ऐसे व्यक्ति पर मुकदमा चलाने का कोई प्रावधान नहीं था, जो अपराध करने के उद्देश्य से किसी बच्चे को नियोजित या संलग्न करता था। नए कानून में इसके लिए एक खंड 95 जोड़ा गया है। इसमें यौन शोषण या पोर्नोग्राफी अपराध सहित अपराध करने के लिए किसी बच्चे को काम रखना या उसमें शामिल करना अपराध है। बच्चे द्वारा किए गए अपराध को उसे कराने वाले को भुगतना होगा।
भारतीय दंड संहिता विकृत दिमाग वाले व्यक्ति को अभियोजन (Prosecution) से सुरक्षा प्रदान करता है। BNS में इसे मानसिक बीमारी वाला व्यक्ति कहा गया है। मानसिक बीमारी की परिभाषा में मानसिक मंदता शामिल नहीं है और इसमें शराब एवं नशीली दवाओं के दुरुपयोग को शामिल किया गया है। अब मानसिक मंदता से पीड़ित व्यक्तियों पर मुकदमा चलाया जा सकता है।
इसमें हिट एंड रन मामले पर भी फोकस किया गया है। यदि किसी व्यक्ति सड़क पर एक्सिडेंट करता है और घायल व्यक्ति को छोड़कर भाग जाता है तो दस साल की सजा का प्रावधान किया है। वहीं, दुर्घटना के बाद वह घायल या घायलों को अस्पताल लेकर जाता है तो सजा कम हो सकती है।
पुलिस, FIR और हिरासत
पीड़ित व्यक्ति अब किसी भी थाने में जाकर जीरो एफआईआर दर्ज करा सकते हैं। इसके बाद शिकायत को 24 घंटे के बाद संबंधित थाने में स्थानांतरित किया जाएगा। वहीं, कोई भी महिला ई-एफआईआर दर्ज करा सकती और इस पर तुरंत संज्ञान लेने की व्यवस्था है। इसको लेकर दो दिनों के भीतर जवाब देने की व्यवस्था की गई है।
पुलिस किसी को गिरफ्तार करती है तो इसके बारे में उसके परिवार को सूचित करना जरूरी है। इसके बाद इस केस में क्या हुआ, इसके बारे में पुलिस को 90 दिनों में संबंधित परिवार को बताना होगा। पहले यह व्यवस्था नहीं थी।
किसी मामले में आरोपित अगर 90 दिनों में कोर्ट के समक्ष पेश नहीं होता है तो कोर्ट उसकी अनुपस्थिति में ट्रायल शुरू कर सकता है। इस कानून के बाद अब उन अपराधियों के खिलाफ भी ट्रायल शुरू हो जाएगा, जो विदेशों में छिपकर बैठे हैं।
नए कानून में दया याचिका को लेकर भी प्रावधान किया गया है। दया याचिका अब पीड़ित ही दायर कर सकता है। पहले एनजीओ एवं अन्य संस्थान भी ये काम कर लेते थे। इसमें यह भी प्रावधान किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट से याचिका खारिज होने के 30 दिन के बाद ही याचिका दाखिल किया जा सकेगा।
रेप और हत्या के आरोपितों को पुलिस हथकड़ी लगा सकती है। यह हथकड़ी गिरफ्तारी के समय और कोर्ट ले जाने के दौरान लगा सकती है। हालांकि, आर्थिक अपराध करने वाले आरोपित इससे बचे रहेंगे।
भारतीय न्याय संहिता के अनुसार, पुलिस अपराधियों को अपनी हिरासत में 15 दिन से लेकर 60 दिन या फिर 90 दिन तक रख सकती है। पहले यह अवधि सिर्फ 15 दिन तक थी। हिरासत की अवधि अपराध की प्रवृति पर निर्भर करेगी।
पुलिस को मिली शिकायत के 3 दिनों में ही दर्ज करना और बिना देरी किए बलात्कार पीड़िता की मेडिकल जाँच कराना, रिपोर्ट को 7 दिनों के अंदर पुलिस थाने और न्यायालय में सीधे भेजना अनिवार्य होगा।
भारतीय न्याय संहिता (BNS) में किसी भी मामले में पुलिस को 90 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल करने की समय सीमा तय गई है। इसके साथ ही मजिस्ट्रेट को 14 दिनों में मामले का संज्ञान लेना होगा।
किन धाराओं में बदलाव
धारा 124: IPC की धारा 124 में राजद्रोह से जुड़े मामलों के सजा का प्रावधान था। नए कानून में ‘राजद्रोह’ को ‘देशद्रोह’ कर दिया गया है। भारतीय न्याय संहिता में अध्याय 7 में राज्य के विरुद्ध अपराधों की श्रेणी में ‘देशद्रोह’ को रखा गया है। वहीं, BNS में 124 में अब गलत तरीके से रोकने का प्रावधान किया गया है।
धारा 144: IPC की धारा 144 घातक हथियार से लैस होकर गैरकानूनी सभा में शामिल होने से संबंधित थी। इस धारा को भारतीय न्याय संहिता के अध्याय 11 में सार्वजनिक शांति के विरुद्ध अपराध की श्रेणी में रखा गया है। अब भारतीय न्याय संहिता की धारा 187 गैरकानूनी सभा के बारे में है। वहीं, BNS में धारा 144 में गैरकानूनी रूप से अनिवार्य श्रम को जोड़ा गया है।
धारा 302: IPC में हत्या करने वाले लोगों पर धारा 302 लगाया जाता था। अब ऐसे अपराधियों पर धारा 101 लगेगी। नए कानून के अनुसार, हत्या की धारा को अध्याय 6 में मानव शरीर को प्रभावित करने वाले अपराध कहा जाएगा। BNS में धारा 302 छिना-झपटी के लिए प्रयोग किया जाएगा।
धारा 307: भारतीय दंड संहिता में हत्या करने के प्रयास के लिए धारा 307 के तहत सजा मिलती थी। अब ऐसे दोषियों को भारतीय न्याय संहिता की धारा 109 के तहत सजा सुनाई जाएगी। इस धारा को भी अध्याय 6 में रखा गया है। वहीं, BNS में धारा 307 का प्रयोग लूटपाट से संबंधित होगा।
धारा 376: IPC में दुष्कर्म से संबंधित अपराध को धारा 376 में परिभाषित किया गया था। भारतीय न्याय संहिता में इसे अध्याय 5 में महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराध की श्रेणी में जगह दी गई है। नए कानून में दुष्कर्म से जुड़े अपराध में सजा को धारा 63 में परिभाषित किया गया है। वहीं, सामूहिक दुष्कर्म को आईपीसी की धारा 376D था, जो अब नए कानून में धारा 70 में शामिल किया गया है।
धारा 399: मानहानि के मामले में पहले IPC की धारा 399 का प्रयोग होता था। भारतीय न्याय संहिता में अध्याय 19 के तहत आपराधिक धमकी, अपमान, मानहानि आदि में इसे जगह दी गई है। मानहानि को भारतीय न्याय संहिता की धारा 356 में रखा गया है। वहीं, BNS में धारा 399 का प्रावधान नहीं है।
धारा 420: भारतीय दंड संहिता में धारा 420 में धोखाधड़ी या ठगी से संबंधित अपराध था। यह अपराध अब भारतीय न्याय संहिता की धारा 316 के तहत आएगा। इस धारा को भारतीय न्याय संहिता में अध्याय 17 में संपत्ति की चोरी के विरूद्ध अपराधों की श्रेणी में रखा गया है।
दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य संहिता में बदलाव
दंड प्रक्रिया संहिता यानी CrPC की जगह अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) लागू हो गई है। सीआरपीसी में कुल 484 धाराओं का प्रावधान था। वहीं, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में 531 धाराओं का प्रावधान है। नए कानून में 177 प्रावधानों को बदला गया है। इनमें 9 नई धाराएँ और 39 उपधाराएँ जोड़ी गई हैं। इसके अलावा, 35 धाराओं में समय सीमा तय की गई है। वहीं नए भारतीय साक्ष्य अधिनियम में 170 धाराओं का प्रावधान हैं। इससे पहले वाले साक्ष्य कानून में 167 धाराएँ थीं। नए कानून में 24 प्रावधान बदले हैं।