इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (IAMC) ने एक बार फिर से हिंदू विरोधी और भारत विरोधी प्रोपेगेंडा को बढ़ाने वाला काम किया है। वॉशिंगटन स्थित इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल ने हिंदू अमेरिकियों को बदनाम करने की कोशिश में एक सर्वे प्रकाशित किया है, जिसका उद्देश हिंदू अमेरिकियों को ‘जातिवादी’, ‘असहिष्णु’ और ‘इस्लामोफोबिक’ बताना है। IAMC वाशिंगटन स्थित एक इस्लामवादी समूह है, जिसका अतीत आतंकवादी संगठनों से जुड़ा रहा है।
इस रिपोर्ट में हम IAMC के सर्वेक्षण (पीडीएफ) के पीछे की सच्चाई को उजागर करेंगे और इसके प्रभावों का विश्लेषण करेंगे।
IAMC का सर्वेक्षण
IAMC ने भारतीय मूल के मुसलमानों पर एक सर्वेक्षण किया, जिसमें केवल 950 लोगों का चयन किया गया। यह संख्या बहुत कम है, जो कि कुल 2.41 लाख भारतीय मूल के मुसलमानों का केवल 0.003% है।
IAMC का यह सर्वेक्षण यह दर्शाता है कि कैसे हिंदू राष्ट्रवाद का उभार भारतीय मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव का कारण बना है। हालाँकि वो पहले भी ऐसी भ्रामक रिपोर्ट्स प्रकाशित करता रहा है।
IAMC ने दावा किया, ‘अधिकांश उत्तरदाताओं ने पिछले दशक में हिंदू मित्रों या सामाजिक संपर्कों से भेदभाव का अनुभव किया।’ हालाँकि, इस रिपोर्ट में कोई ठोस उदाहरण या साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है। यह केवल सांकेतिक और व्यक्तिगत अनुभवों पर आधारित है, जो वास्तविकता को दर्शाने में असफल है।
IAMC के सर्वेक्षण में व्यक्त की गई धारणाएँ भ्रामक हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तरदाताओं ने सामाजिक और व्यावसायिक सेटिंग में भेदभाव का अनुभव किया। लेकिन जब हम इस दावे की गहराई में जाते हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि IAMC ने सिर्फ भावना को ‘सत्य’ के रूप में प्रस्तुत किया है। उदाहरण के लिए, उत्तरदाताओं ने सोशल मीडिया पर उत्पीड़न की घटनाओं का उल्लेख किया, लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया गया कि ये उत्पीड़न हिंदू अमेरिकियों द्वारा थे या अन्य किसी धार्मिक पृष्ठभूमि से संबंधित थे।
सर्वेक्षण में कई प्रश्न ऐसे थे जो भारतीय राजनीति को अमेरिका में मुसलमानों के अनुभवों से जोड़ते थे। उदाहरण के लिए, IAMC ने पूछा कि क्या नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद मुसलमानों को अमेरिकी सांस्कृतिक आयोजनों में अधिक या कम आरामदायक महसूस होता है। यह प्रश्न पूर्वाग्रह से भरा हुआ है और इसका कोई ठोस आधार नहीं है।
समुदायों के बीच झगड़े को बढ़ावा देना
IAMC ने अपने सर्वेक्षण में दावा किया है कि 94% उत्तरदाताओं ने कहा कि हिंदू राष्ट्रवाद धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए खतरा है। यह दावा पूरी तरह से संदिग्ध है। IAMC ने जानबूझकर ईसाई समुदाय का समर्थन पाने की कोशिश की है, जिससे हिंदू अमेरिकियों को निशाना बनाया जा सके। यह स्पष्ट है कि IAMC का उद्देश्य मुसलमानों को एकजुट करना और हिंदू अमेरिकियों के खिलाफ नफरत को बढ़ावा देना है। सर्वेक्षण का उद्देश्य यह दिखाना था कि हिंदू अमेरिकियों के खिलाफ भेदभाव बढ़ रहा है।
इस सर्वेक्षण में कई प्रश्न ऐसे थे जो अमेरिकी सांस्कृतिक और सामाजिक आयोजनों में मुसलमानों की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करते थे। उदाहरण के लिए, IAMC ने पूछा कि क्या 2014 में नरेंद्र मोदी और बीजेपी के सत्ता में आने के बाद मुसलमानों को अमेरिकी सांस्कृतिक आयोजनों में अधिक या कम आरामदायक महसूस होता है। यह प्रश्न पूरी तरह से पक्षपाती और पूर्वाग्रह से ग्रस्त है, क्योंकि यह एक देश की राजनीति को दूसरे देश की सांस्कृतिक धाराओं के साथ जोड़ने का प्रयास करता है।
इस सर्वेक्षण में IAMC ने कई व्यक्तिगत धारणाओं को ‘सत्य’ के रूप में प्रस्तुत किया है। उदाहरण के लिए, उत्तरदाताओं ने बताया कि उन्हें सोशल मीडिया पर उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि ये उत्पीड़न हिंदू अमेरिकियों द्वारा थे या अन्य धार्मिक पृष्ठभूमि के लोगों द्वारा।
आईएएमसी ने आरोप लगाया, “डिजिटल प्लेटफॉर्म भेदभाव के केंद्र बन गए हैं, 48% उत्तरदाताओं ने फेसबुक, व्हाट्सएप और लिंक्डइन सहित सोशल मीडिया पर उत्पीड़न की रिपोर्ट की है। उत्तरदाताओं ने इन अनुभवों को भावनात्मक रूप से थका देने वाला बताया, जिससे अलगाव और शत्रुता की भावना बढ़ती है।”
सामाजिक और पेशेवर स्तर पर भेदभाव का दुष्प्रचार
IAMC ने यह भी कहा कि 70% उत्तरदाताओं ने पेशेवर सेटिंग में भेदभाव का अनुभव किया। लेकिन इसमें भी कोई ठोस प्रमाण नहीं है। नौकरी से निकाले जाने या पदोन्नति न मिलने के मामलों में IAMC ने हिंदू प्रबंधन को दोषी ठहराने का प्रयास किया। यह एक अत्यधिक सामान्यीकरण है, क्योंकि कार्यक्षेत्र में कई कारक होते हैं, जैसे कि नौकरी के प्रदर्शन, अन्य बेहतर उम्मीदवारों की उपलब्धता, आदि।
IAMC का सर्वेक्षण सामाजिक तनाव को बढ़ावा देने का काम करता है। यह संगठन जानबूझकर ईसाई समुदाय का समर्थन पाने की कोशिश कर रहा है ताकि हिंदू अमेरिकियों को निशाना बनाया जा सके। इससे समुदायों के बीच घृणा बढ़ सकती है।
एजेंडा के तहत हिंदुओं को बदनाम करने की साजिश
IAMC ने अपनी ‘सर्वेक्षण रिपोर्ट’ में बड़े पैमाने पर कुछ खास शब्दों का जमकर इस्तेमाल किया है, जिसमें हिंदू राष्ट्रवाद (64 बार), भारत (35 बार), हिंदुत्व (16 बार), भाजपा (8 बार), आरएसएस (5 बार) जैसे शब्द हैं। ये शब्द 24 पन्नों की रिपोर्ट में बहुत बार आए। इसके साथ बी इसमें नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए), राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर और यह कैसे “संभावित रूप से अपने मुस्लिम नागरिकों को वंचित करने” की एक चाल है, के बारे में भी व्यापक झूठे दावे किए गए हैं। हालाँकि इस सर्वे में दिलचस्प बात ये निकलकर आई कि भारत में उत्पन्न ‘हिंदू राष्ट्रवाद’ का रोना रोने वाले मुस्लिमों में से 92% ने आस्था (अर्थात इस्लाम) को ‘बहुत महत्वपूर्ण’ बताया।
इस सर्वे में शामिल एक व्यक्ति ने IAMC को बताया कि हिंदू राष्ट्रवाद ने उसे और उसके परिवार को प्रभावित किया है, लेकिन उसने इस बारे में विस्तार से बताने की ज़हमत नहीं उठाई। दूसरे ने दावा किया कि उसने कथित “बीजेपी सरकार द्वारा फैलाए गए इस्लामोफोबिया और नफ़रत” के कारण अच्छे और पुराने दोस्तों को खो दिया।
वैसे, सिस्को से जुड़े ऐसे ही मामले में सारे आरोप खारिज हो चुके हैं, जिसमें जातिगत भेदभाव के आरोप लगे थे।
IAMC का उद्देश्य और आतंकवाद से जुड़ाव
IAMC एक इस्लामिक संगठन है, जो भारतीय मूल के मुसलमानों के अधिकारों की बात करता है। लेकिन इसके दावे और गतिविधियाँ संदिग्ध हैं। यह संगठन आतंकवादी समूहों जैसे लश्कर-ए-तैयबा, सिमी और जमात-ए-इस्लामी से जुड़ा हुआ है। इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल के अपने संस्थापक शेख उबैद के माध्यम से लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) और जमात-ए-इस्लामी (जेईआई) के साथ संबंध हैं।
IAMC की गतिविधियाँ अक्सर भारत और भारतीय हिंदुओं के खिलाफ भ्रामक प्रचार करने पर केंद्रित होती हैं। इसकी गतिविधियाँ स्पष्ट रूप से इस्लामवादी एजेंडे को बढ़ावा देती हैं।
Shoot and scoot strategy ?
— Anti Propaganda Front (@APF_Ind) January 18, 2023
Baseless allegation of 'crime against humanity' is hurdled against CM #YogiAdityanath, who won a thumping re-election in India's most populous state.
So, who runs @IAMCouncil ? what is their agenda ?
An Expose 👇#WorldEconomicForum #MahantYogiMocked https://t.co/jwokdVrXau
IAMC ने अन्य अमेरिकी समूहों के साथ मिलकर भारत को यूएससीआईआरएफ (अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर USA का आयोग) की काली सूची में डलवाने के लिए अभियान चलाया था और काफी धन भी खर्च किया था, लेकिन वो बुरी तरह से फेल रहा था। IAMC पर इस्लामिक गतिविधियों को बढ़ावा देने और फर्जी खबरें फैलाने का भी आरोप है, जिसकी वजह से साल 2021 में इस पर UAPA के तहत कार्रवाई भी की गई थी।
IAMC का यह नया सर्वेक्षण भी हिंदू अमेरिकियों को बदनाम करने के लिए एक सुनियोजित प्रयास है। इसके परिणाम और दावे संदेहास्पद हैं और सच्चाई से बहुत दूर हैं। भारतीय मूल के मुसलमानों के अनुभवों को इस तरह से प्रस्तुत किया गया है कि यह हिंदू अमेरिकियों के खिलाफ नफरत को बढ़ावा दे सके। इस प्रकार के भ्रामक सर्वेक्षणों से हमें सावधान रहना चाहिए और वास्तविकता को समझने के लिए तथ्यों पर आधारित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
मूल लेख अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित है। मूल लेख पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।