जस्टिस एन आनंद वेंकटेश ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि ये राज्य का अधिकार नहीं है कि वो किसी के निजी स्थान पर जाकर इस तरह कोई संपत्ति उठाए। ये भविष्य में भी करने की अनुमति नहीं दी जाती। अदालत ने मामले के संबंध में फैसला सुनाते हुए कहा, “हमारे मन में कोई संदेह नहीं है कि प्रतिवादी ने निजी संपत्ति से भारत माता की मूर्ति हटाई, शायद उनपर ऐसा किसी ने ऐसा करने का दबाव डाला हो, लेकिन ये बेहद निंदनीय है।”
कोर्ट ने कहा, “हम एक कल्याणकारी राज्य में रह रहे हैं, जो कानून के द्वारा शासित है। इसलिए, भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने वाले संवैधानिक न्यायालय द्वारा इस तरह की मनमानी को कभी बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। इससे कहीं न कही भारत माता की अस्मिता को भी ठेस पहुंची है, इसलिए सरकार-पुलिस सतर्क रहे।”
उन्होंने ये भी कहा कि ये मामला निजी संपत्ति पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा एक दिलचस्प मुद्दा भी है। कोई भी व्यक्ति अपने सही होश में गंभीरता से यह तर्क नहीं दे सकता कि किसी की देशभक्ति और अपने देश के प्रति प्रेम को व्यक्त करने से राज्य या समुदाय के हितों को खतरा होगा।
बता दें कि भाजपा ऑफिस में ये मूर्ति 2016 में लाई गई थी, लेकिन पिछले साल खबर आई कि इसे देर रात हटा दिया गया। उस समय पुलिस ने मूर्ति हटाते हुए कोर्ट के निर्देशों का हवाला दिया था। अधिकारियों ने कहा था कि पहले भाजपा कार्यकर्ताओं से ही मूर्ति को हटाने के लिए कहा गया था, लेकिन उन्होंने इसे हटाने से इनकार कर दिया।
हालाँकि बाद में भाजपा के जिला अध्य जी पांडुरंगन इस संबंध में कोर्ट गए कि उन्हें मूर्ति लौटाई जाए और कम से कम कार्यालय परिसर में लगी मूर्तियों को लेकर हस्तक्षेप न किया जाए। भाजपा ने जो मूर्ति लगवाई को एक राष्ट्र के प्रतीक के तौर पर लगवाई। मगर, तमिलनाडु पुलिस उसे उठा ले गई।