केरल के वायनाड जिले के तलापुझा गाँव में 28 अक्टूबर 2024 को कुछ परिवारों को अचानक एक गंभीर और चौंकाने वाला नोटिस मिला। इस नोटिस में केरल राज्य वक्फ बोर्ड ने दावा किया कि वे ज़मीनें जो इन परिवारों की मानी जा रही थीं, असल में वक्फ बोर्ड की संपत्ति हैं।
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, तलापुझा गाँव के लोगों भेजे गए नोटिस में वक्फ संपत्ति के अतिक्रमण का आरोप लगाया गया है। जैसे ही यह खबर फैली, पूरे इलाके में हड़कंप मच गया। अब तक पाँच परिवारों को यह नोटिस मिला है, लेकिन वहाँ के निवासी चिंतित हैं कि जल्द ही पूरे गाँव के बाकी परिवारों को भी इसी तरह के नोटिस मिल सकते हैं।
इस नोटिस में क्या है?
वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 52 के तहत जारी इस नोटिस में कहा गया कि 4.7 एकड़ जमीन, जो सर्वे नंबर 47/1 और 45/1 में पंजीकृत है, को वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज किया गया है। नोटिस में यह बताया गया कि इस ज़मीन पर वक्फ संपत्ति का दावा है और इसके अतिक्रमण की शिकायत की गई थी। वक्फ बोर्ड ने जमीन मालिकों से कहा कि वे 16 नवंबर 2024 तक अपने लिखित जवाब पेश करें और सभी दस्तावेज़ जमा करें।
इसके अलावा, 19 नवंबर 2024 को इस मामले की ऑनलाइन सुनवाई निर्धारित की गई। नोटिस में चेतावनी दी गई कि अगर मालिकों ने जवाब नहीं दिया या सुनवाई में उपस्थित नहीं हुए, तो मामला उनकी अनुपस्थिति में ही निपटाया जाएगा। इसका सीधा मतलब यह था कि वक्फ बोर्ड अपने स्तर पर निर्णय ले लेगा और उस पर अमल कराएगा।
जमीन मालिकों ने नोटिस का किया विरोध
इस नोटिस से जमीन मालिकों में गहरी नाराज़गी है और उनमें असमंजस की स्थिति भी है। इन लोगों ने अपना वैध स्वामित्व प्रमाणित करने के लिए दशकों पुरानी कानूनी दस्तावेज़ों और निर्बाध कब्जे का हवाला दिया। इस मामले में हिंदू और मुस्लिम दोनों परिवारों ने अपनी परेशानी जाहिर की। उनका मानना है कि यह उनके भूमि अधिकारों पर अवैध दखल का प्रयास है।
नोटिस पाने वालों में तुषारा अजीत कुमार नाम की महिला भी हैं। उनका कहना है कि उनके परिवार ने 1949 से यह ज़मीन संभाली हुई है। उनके ससुर, हवलदार कुंजरमन, ने 1940 के दशक में एक ईसाई परिवार से यह ज़मीन खरीदी थी और उन्होंने इस ज़मीन के लिए सभी ज़रूरी दस्तावेज़ जमा किए थे। कुंजरमन ने पूरी प्रक्रिया के दौरान दस्तावेजों को अच्छी तरह से संभाला, जिसमें 1949 से लेकर 1960 के दशक के अंत तक के रिकॉर्ड शामिल हैं।
इस ज़मीन को बाद में उनके छह बच्चों में बाँटा गया, जिसमें तुषारा के पति, अजीत कुमार भी शामिल हैं। तुषारा ने हाल ही में इस ज़मीन का एक हिस्सा बेचने की कोशिश की थी, और उन्हें लगता है कि इसी वजह से यह विवाद खड़ा हुआ। तीन सदस्यों वाली थलापुझा हयातुल इस्लाम जमात मस्जिद समिति ने इस बिक्री पर आपत्ति जताई और दावा किया कि यह ज़मीन वक्फ बोर्ड की है। तुषारा का मानना है कि मस्जिद समिति के इन सदस्यों ने ही मामले को वक्फ बोर्ड तक पहुँचाया।
गृहिणी के तौर पर घर संभालने वाली तुषारा ने कहा कि वो इस दावे के खिलाफ मजबूती से खड़ी रहेंगी। उनका कहना था कि यह ज़मीन तभी ली जा सकती है जब वह जीवित न रहें। उनके बेटे जितुल ने वक्फ अधिनियम और उसके संशोधनों का अध्ययन करना शुरू कर दिया है और परिवार एक वकील के साथ मिलकर कानूनी लड़ाई लड़ रहा है।
हिंदुओं ही नहीं, मुस्लिम परिवारों को भी मिला नोटिस
इस नोटिस ने केवल गैर-मुस्लिम परिवारों को ही नहीं, बल्कि मुस्लिम परिवारों को भी हैरान कर दिया। 70 वर्षीय हम्सा फैज़ी भी उन्हीं में से एक हैं, जिन्हें नोटिस मिला। हम्सा फैज़ी ने बताया कि उन्होंने 1998 में यह ज़मीन 50,000 रुपये प्रति सेंट की दर से खरीदी थी और तब से सभी आवश्यक दस्तावेज़ और टैक्स रिकॉर्ड संभालते आ रहे हैं। यह ज़मीन पहले सुकीमारन और कृष्णनकुट्टी से खरीदी गई थी, जो कुनहुट्टी अलक्कंडी के बच्चे थे।
नोटिस पाने वालों में 70 साल के हमजा फैज़ी कई सालों तक जमात समिति का पद संभाल चुके हैं। उन्होंने कहा, “मेरे पास ज़मीन के सभी वैध दस्तावेज़ हैं, फिर भी मुझे नोटिस भेजा गया।” फैज़ी का घर साल 1987 में किसी अन्य व्यक्ति ने बनवाया था, जिसे उन्होंने खरीद लिया था। वो दशकों से उसी घर में रह रहे हैं। हालाँकि, स्थानीय नेताओं से उन्हें समर्थन की उम्मीद है, लेकिन उन्हें अपनी ज़मीन के भविष्य को लेकर चिंता है।
जमाल का हैरानी भरा अनुभव
जमाल के पास 15 सेंट की ज़मीन है, ने इसे एक “चौंकाने वाला अनुभव” बताया। वे पिछले 14 साल से इस संपत्ति पर रह रहे हैं और उसी जगह पर अपनी दुकान चला रहे हैं। उनके पास भी ज़मीन के सभी वैध रिकॉर्ड और टैक्स रसीदें हैं। उन्होंने बताया कि कुछ परिवारों के पास केवल 9 सेंट की ज़मीन है, जो यह दर्शाता है कि यह संपत्ति छोटे-छोटे हिस्सों में अलग-अलग मालिकों के पास बंटी हुई है।
इस विवादित ज़मीन पर सात घर और दस दुकानें हैं, जो थलापुझा पुलिस स्टेशन के पास सड़क किनारे स्थित हैं। निवासियों को चिंता है कि वक्फ बोर्ड के दावे उनके जीवन और रोज़गार को बुरी तरह से प्रभावित कर सकते हैं।
जमीनों और घरों के दस्तावेज मौजूद
तलापुझा के जमीन मालिक अपने स्वामित्व की वैधता पर जोर देते हैं। उनका कहना है कि उनके पास अपने दावे को साबित करने के लिए दशकों पुरानी दस्तावेज़ी प्रमाण हैं। थविनहाल पंचायत के रिकॉर्ड बताते हैं कि विवादित ज़मीन पर कम से कम एक इमारत का दस्तावेज़ 1948 तक का है। अधिकांश निवासियों के पास 1963 में मस्जिद समिति द्वारा उद्धृत किए गए दस्तावेज़ से पहले के टाइटल डीड हैं। इनमें से कई लोग दूसरे या तीसरे पीढ़ी के मालिक हैं, जिन्होंने नियमित रूप से ज़मीन का टैक्स चुकाया है और संपत्ति रिकॉर्ड में किसी भी वक्फ के दावे का कोई उल्लेख नहीं किया गया था।
जमीन पर रहने वाले अन्य लोगों में भी फैला डर
हालाँकि अब तक केवल पाँच परिवारों को नोटिस मिला है, लेकिन लगभग 50 अन्य परिवार जिनके पास इस 4.7 एकड़ विवादित क्षेत्र में छोटे-छोटे ज़मीन के टुकड़े हैं, वो भी आशंकित हैं कि उन्हें भी जल्द ही ऐसे नोटिस मिल सकते हैं। स्थानीय निवासियों का कहना है कि अगर वक्फ बोर्ड का यह दावा मान्य हो जाता है, तो इसका असर पूरे गाँव पर पड़ेगा और लोग अपने घरों और रोज़गार को खो सकते हैं।
एनडीए उम्मीदवार ने स्थानीय लोगों का किया समर्थन
इस विवाद ने स्थानीय नेताओं का भी ध्यान खींचा है। एनडीए उम्मीदवार नव्या हरिदास ने तलापुझा का दौरा कर प्रभावित परिवारों से मुलाकात की और उन्हें समर्थन देने का आश्वासन दिया। उन्होंने वक्फ बोर्ड को चेतावनी दी कि वह निजी संपत्ति को हड़पने नहीं देंगे। भाजपा के सूत्रों ने आरोप लगाया कि वक्फ बोर्ड, वक्फ अधिनियम में प्रस्तावित संशोधनों से पहले जल्दबाजी में जमीन पर दावे कर रहा है।
इस बीच, स्थानीय समुदाय ने एक एक्शन काउंसिल बनाई और मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन तथा मंत्री ओआर केलू को ज्ञापन सौंपा। निवासियों ने सरकार से अपने भूमि अधिकारों की सुरक्षा के लिए हस्तक्षेप की माँग की है।
‘वक्फ का मतलब वक्फ ही रहेगा’
वक्फ शब्द का मतलब है रोकना, सीमित करना और निषेध करना। इस्लामी मान्यताओं के अनुसार, जब एक बार कोई संपत्ति वक्फ के रूप में समर्पित कर दी जाती है, तो वह हमेशा के लिए धार्मिक या परोपकारी उपयोग के लिए ही रह जाती है। शरीयत कानून के अनुसार, एक बार वक्फ संपत्ति घोषित हो जाने के बाद, वह संपत्ति हमेशा वक्फ की ही मानी जाएगी।
वक्फ का तात्पर्य है कि संपत्ति का स्वामित्व व्यक्ति से हटकर अल्लाह को स्थानांतरित हो जाता है। चूँकि संपत्ति का मालिकाना हक वक्फ करने वाले व्यक्ति से अल्लाह को दे दिया जाता है, इस स्थिति में इसे कभी वापस नहीं लिया जा सकता। संपत्ति का देखभाल करने वाला ‘मुतवल्ली’ नियुक्त किया जाता है, जो वक्फ संपत्ति का प्रबंधन करता है। चूँकि ये संपत्तियाँ अल्लाह की हो चुकी है, ऐसे में जो एक बार ‘वक्फ हो गया, वो हमेशा वक्फ ही रहेगा।’
गुजरात में भी आ चुका है ऐसा मामला
कुछ समय पहले गुजरात वक्फ बोर्ड ने सूरत म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन की इमारत पर दावा किया था, क्योंकि दस्तावेज़ अपडेट नहीं किए गए थे। वक्फ के अनुसार, मुगल काल के दौरान यह इमारत एक सराय थी और हज यात्राओं के लिए उपयोग होती थी। ब्रिटिश शासन के दौरान यह संपत्ति ब्रिटिश साम्राज्य की हो गई और आजादी के बाद यह भारत सरकार के अधीन आ गई। दस्तावेज़ों के अद्यतन न होने के कारण, वक्फ बोर्ड ने दावा किया कि यह संपत्ति अब उनकी है, और जैसा कि वक्फ बोर्ड कहता है, “एक बार वक्फ, हमेशा वक्फ।”
एक और रोचक मामला गुजरात के द्वारका का है, जहाँ वक्फ बोर्ड ने देवभूमि द्वारका के बेत द्वारका के दो द्वीपों पर दावा करने के लिए गुजरात उच्च न्यायालय में अर्जी दी थी। अदालत के जज ने यह दावा सुनने से मना कर दिया और वक्फ बोर्ड को अपनी अर्जी में बदलाव के लिए कहा। कोर्ट ने बोर्ड से पूछा कि वक्फ कैसे कृष्ण नगरी की ज़मीन पर दावा कर सकता है।
आपकी सोसायटी में भी बन सकती है मस्जिद
वक्फ संपत्तियों के संदर्भ में एक और दिलचस्प पहलू यह है कि आपकी हाउसिंग सोसाइटी का कोई फ्लैट मालिक अपनी संपत्ति को वक्फ के रूप में दर्ज करा सकता है और वहां मस्जिद बनवा सकता है, बिना अन्य सदस्यों की सहमति के। ऐसा ही मामला सूरत की शिव शक्ति सोसाइटी में हुआ था, जहाँ एक प्लॉट मालिक ने अपने प्लॉट को गुजरात वक्फ बोर्ड में दर्ज करा दिया और वहाँ नमाज़ पढ़नी शुरू कर दी गई। ऐसे में इस तरह का मामला आपकी सोसायटी में भी आ सकता है।