Monday, December 2, 2024
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महाराष्ट्र में 100186 बूथ, 12000 बूथ पर जोर लगाकर हासिल की सबसे बड़ी जीत: BJP की 12% वाली वह रणनीति जिसने 3 महीने में बदला गेम, सिर्फ 17 सीटों पर ही हार… पढ़िए कैसे पूरा हुआ मिशन

A कैटेगरी में उन बूथों को रखा गया, जहाँ पार्टी जीतती है। B कैटेगरी में ऐसे बूथों को रखा गया, जहाँ मतदाताओं के मन बदलने के कारण वह जीतती या हारी है। वहीं, C कैटेगरी में उन बूथों को रखा गया जहाँ भाजपा कभी नहीं जीतती। डेटा विश्लेषण के बाद 12,000 बूथों की पहचान B कैटेगरी के लिए की गई, जो भाजपा की जीत या हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। भाजपा ने इन्हीं पर फोकस का निर्णय लिया।

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा या BJP) की अगुवाई वाली महायुति गठबंधन ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। इस जीत को सुनिश्चित करने के लिए भाजपा ने चुनाव प्रचार के अंतिम समय में अपनी रणनीति बदल दी। ‘लड़की बहिन योजना’ की सफलता के बावजूद भाजपा ने परखी हुई अपनी रणनीति ‘बूथ मैनेजमेंट’ अपनाकर स्विंग वोटिंग वाले बूथों कर फोकस किया।

पन्ना प्रमुखों के माध्यम से केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बूथ मैनेजमेंट की रणनीति को साल 2014 के लोकसभा चुनावों में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया था। इसका परिणाम आज पूरा देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया भी देख रही है। इसी रणनीति को महाराष्ट्र के प्रभारी और अमित शाह के खासमखास भूपेंद्र यादव ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में अजमाया। उनकी टीम में अश्विनी वैष्णव भी थे।

इन दोनों ने इससे पहले मध्य प्रदेश में अपनी कौशल का परिचय देते हुए एंटी इनकंबैसी को मात देते हुए जीत दिलाने में शिवराज सिंह चौहान की सहायता की थी। इसके अलावा, भाजपा के पास दो इन-हाउस एजेंसियाँ ​भी हैं, जो पार्टी की रणनीतिक निर्णय के लिए डेटा सँभालती हैं। ये एजेंसियाँ हैं- वराही एनालिटिक्स और जार्विस कंसल्टिंग। इन दोनों एजेंसियों के डेटा ने भी महाराष्ट्र चुनाव में मदद की।

भाजपा ने डेटा के आधार पर महाराष्ट्र के करीब 1,00,186 बूथों में से 12,000 बूथों की पहचान की थी, जिस पर उसे फोकस करना था। इन बूथों पर स्विंग पोलिंग होती थी। यानी मतदाता मूड या अपना हित देखकर वोट बदलते रहते थे। इसका परिणाम ये हुआ कि भाजपा ने इस चुनाव में 149 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ा किए थे, जिनमें से 132 पर जीत हुई। यह 89 प्रतिशत की जीत है।

इस साल सितंबर में गृहमंत्री अमित शाह ने महाराष्ट्र में भाजपा नेताओं से मुलाकात की थी। इस दौरान उन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों के मतदान केंद्रों पर ध्यान केंद्रित करने का निर्देश दिया था। उस समय जार्विस कंसल्टिंग को यह पता लगाने के लिए कहा गया था कि पिछले कुछ चुनावों में किन सीटों पर मतदान पैटर्न में बदलाव हुआ, जिसके कारण भाजपा को जीत या हार का सामना करना पड़ा।

सूत्रों के हवाले से ET ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि पार्टी के आंतरिक सर्वेक्षण में ऐसी 69 विधानसभा सीटों की पहचान की गई, जिन पर थोड़ा प्रयास करके पार्टी जीत सकती थी। जीत के आँकड़े को बढ़ाने के लिए अन्य 70 सीटों पर भी फोकस किया गया। इन सभी सीटों के डेटा का विश्लेषण किया गया और इनमें से 80 सीटों की पहचान की गई, जहाँ 3-4% स्विंग वोट भाजपा चुनाव जीती या हारी थी।

इन 80 सीटों में सबसे अधिक सीटें विदर्भ क्षेत्र से थीं। यहाँ की 31 विधानसभा सीटें थीं, जहाँ भाजपा के पक्ष या विपक्ष में स्विंग वोटिंग होती थी। अब भाजपा ने क्षेत्रवार इन सीटों की पहचान करके उनकी बूथों की पहचान करने की योजना बनाई, जहाँ स्विंग वोटिंग होती है। इन बूथों को तीन श्रेणियों- A,B और C में बाँटा गया।

A कैटेगरी में उन बूथों को रखा गया, जहाँ पार्टी जीतती है। B कैटेगरी में ऐसे बूथों को रखा गया, जहाँ मतदाताओं के मन बदलने के कारण वह जीतती या हारी है। वहीं, C कैटेगरी में उन बूथों को रखा गया जहाँ भाजपा कभी नहीं जीतती। डेटा विश्लेषण के बाद 12,000 बूथों की पहचान B कैटेगरी के लिए की गई, जो भाजपा की जीत या हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। भाजपा ने इन्हीं पर फोकस का निर्णय लिया।

इसके बाद भाजपा ने इन बूथों के लिए सारे संसाधन जुटाने शुरू कर दिए। भूपेंद्र यादव, अश्विनी वैष्णव और भाजपा के राष्ट्रीय संयुक्त महासचिव शिवप्रकाश टीम को सारे संसाधन उपलब्ध कराए। इस दौरान वराही एनालिटिक्स को इन 80 विधानसभा सीटों के लिए क्षेत्रीय और स्थानीय मुद्दों वाली विशेष सामग्री तैयार करने के लिए कहा गया, ताकि मतदाताओं से सीधा जुड़ा जा सके।

इसके साथ ही नागपुर, नासिक, पुणे, मुंबई में लगभग 200 कॉलर की संख्या वाले पाँच कॉल सेंटर बनाए गए। इसके बाद 1,000 कॉल करने वालों को 10 से 12 बूथ दिए गए और उनसे कहा गया कि वे एक बूथ पर सप्ताह में कम-से-कम दो बार बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं से बातचीत करें। भाजपा नेता सुमंत घैसास को कॉल सेंटर और बूथ प्रबंधन का प्रभारी बनाया गया।

वहीं, पूर्व केंद्रीय मंत्री भागवत कराड को बूथ स्तर पर टीम और समन्वय के मामले में कमियों को दूर करने के लिए कहा गया। इसके बाद काम शुरू कर दिया गया और उसकी रोजाना ट्रैकिंग भी शुरू कर दी गई। इस तरह पूरी टीम इन 80 सीटों पर फोकस करने लगी। राज्य के बाहर से भी महिला नेताओं को बुलाया गया और उन्हें 80 विधानसभा क्षेत्रों में तैनात किया गया।

इसके अलावा, पार्टी ने प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में महिला विस्तारक नियुक्त किए और उन्हें अपने विधानसभा के सभी बूथों को कवर करने के लिए एक-एक स्कूटी दी। इन महिला नेताओं को स्थानीय महिला कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ टिफिन मीटिंग करने के लिए कहा गया। इस दौरान महायुति के अन्य दलों की महिला नेताओं को भी शामिल किया गया।

इन महिला नेताओं ने राज्य सरकार की ‘लड़की बहन योजना’ की कम-से-कम 50 महिला लाभार्थियों से मिलने का लक्ष्य दिया। यह सब कुछ मतदान से लगभग डेढ़ महीने पहले शुरू हो चुका था। जैसे-जैसे मतदान करीब आता गया, बाहर से आई महिला नेताओं ने जमीनी कार्यकर्ताओं के साथ-साथ मतदाताओं के साथ भी तालमेल बैठा लिया और इस योजना को घर-घर तक पहुँचा दिया।

अब बारी तक अन्य पिछड़ा वर्ग को साधने की। दिवाली से करीब एक सप्ताह पहले भूपेंद्र यादव ने मुंबई में देवेंद्र फडणवीस के आवास पर ओबीसी नेताओं और विभिन्न जातियों के प्रभावशाली लोगों के साथ एक बैठक की। इस बैठक में विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की गई और उनका समाधान किया गया। इस पूरे अभियान के दौरान भूपेंद्र यादव ओबीसी समुदाय को खुद प्रबंधित कर रहे थे।

पार्टी को पता चला कि मराठवाड़ा में कुछ सीटों पर अगर पंकजा मुंडे प्रचार करें तो भाजपा एक वर्ग को अपने साथ ला सकती है। इसके बाद भूपेंद्र यादव ने पंकजा मुंडे को चार दिनों के लिए एक हेलीकॉप्टर उपलब्ध कराया और उन्हें प्रचार करने के लिए भेजा। हेलीकॉप्टर ने एक दिन में 16 से 17 बार लैंडिंग की। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव और छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री अरुण साव से प्रचार कराया गया।

भाजपा ने अब जनजातीय लोगों पर ध्यान केंद्रित किया। इस बार के लोकसभा चुनावों में उन्होंने भाजपा को समर्थन नहीं दिया था। जनजातीय समाज के लोगों को भाजपा से जोड़ने के लिए पार्टी ने पार्टी ने उनके बीच काम करने वाले संघ के पुराने विचारक निशांत खरे को लगाया। यह अन्य 25 आरक्षित सीटों पर पार्टी का फोकस था। इन सीटों पर जनजातीय लोगों की आबादी 25% या उससे अधिक है।

निशांत खरे ने 500 स्वयंसेवकों की एक टीम बनाई और उन्हें अपने-अपने क्षेत्रों में काम करने के लिए ट्रेनिंग दी गई। चुनाव से चार दिन पहले 40-50 स्वयंसेवकों को सभी जनजातीय क्षेत्रों में जाने और मतदान के दिन मतदाताओं को तैयार करने के लिए बाइक और पेट्रोल दी गई। मतदान के दिन स्वयंसेवकों को अपने बूथ पर अपने परिवार के सदस्यों के अलावा प्रत्येक को पाँच वोट देने का काम सौंपा गया था।

इन स्वयंसेवकों ने जनजातीय समाज के लोगों को उनके इलाकों से बाइक पर बैठाकर मतदान केंद्रों तक पहुँचाया। इससे मतदान प्रतिशत बढ़ा। वहीं, 24 एसटी आरक्षित विधानसभा सीटों में से महायुति ने 21 सीटें जीक लीं। इनमें से भाजपा ने 10, शिवसेना ने 6 और एनसीपी ने 5 सीटें मिलीं। अन्य 25 सीटों, जहाँ जनजातीय आबादी 25 प्रतिशत या उससे अधिक थी, वहाँ महायुति सभी 25 सीटें जीत लीं।

इस तरह , तीन महीने में भाजपा ने इन सीटों पर लगभग 5% वोट बढ़ा दी। A कैटेगरी में शामिल किए गए जिन 69 विधानसभा सीटों पर पार्टी को जीत का भरोसा था, उनमें से 64 सीटें मिलीं। वहीं 12,000 स्विंग बूथों वाली 80 सीटों में से भाजपा ने 68 सीटें जीतीं। इन दोनों को मिलाकर भाजपा की कुल सीटों की संख्या 132 हो गई और वह सबसे बड़ी पार्टी बनकर राज्य में उभरी।

जार्विस कंसल्टिंग के दिग्गज मोगरा ने ET को बताया, “अन्य एजेंसियों के लिए पार्टी उनकी क्लाइंट है और वे इसे एक असाइनमेंट के रूप में मानते हैं। हमारे मामले में हम पार्टी की विस्तारित शाखा हैं। हमें जो काम सौंपा गया है, उसे पूरा करना हमारा प्राथमिक कर्तव्य है।” इस तरह बाहर से आए रणनीतिकार अपने-अपने क्षेत्र में लौट गए। महाराष्ट्र में सरकार बनाने की तैयारी है और भाजपा की नजर अब दिल्ली और बिहार के चुनावों पर है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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