हेमा कमिटी की रिपोर्ट में सामने आए यौन उत्पीड़न के आरोपों की जाँच कर रही केरल पुलिस की SIT ने 35 मामले दर्ज किए हैं। ये सभी मामले मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में काम करने वाले कई लोगों के खिलाफ दर्ज किए गए हैं। जस्टिस हेमा कमिटी को दी गई गवाही के आधार पर इनमें से अधिकांश मामले यौन उत्पीड़न की घटनाओं से संबंधित हैं।
SIT ने मलयालम फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी कुछ बड़ी हस्तियों के खिलाफ तो 5-5 मामले भी दर्ज किए हैं। इन 35 मामलों के अलावा शिकायतकर्ताओं द्वारा किए गए खुलासे के आधार पर अभिनेता सिद्दीकी के खिलाफ दर्ज मामले सहित 24 अलग मामले भी दर्ज किए गए हैं। 35 मामलों में से प्रत्येक को गोपनीय तरीके से दर्ज किया गया है।
यहाँ तक कि इसकी प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) भी सार्वजनिक नहीं की गई है। इसके बाद कुछ लोग इस कार्रवाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुँचकर इस पर रोक लगाने की माँग की। इसको लेकर SIT को आशंका है कि इन मामलों के दर्ज होने के कारण ही सुप्रीम कोर्ट में इसकी जाँच को चुनौती दी गई हैं।
दरअसल, फिल्म निर्माता साजिमोन परायिल ने सुप्रीम कोर्ट में एक केरल हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ एक याचिका दाखिल की थी। हाई कोर्ट ने हेमा समिति के निष्कर्षों के आधार पर केस दर्ज करने के लिए कहा था। वहीं, अभिनेत्री माला पार्वती ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर SIT की कार्रवाई को रोकने की माँग की है। उनका कहना है कि वो कार्रवाई नहीं चाहती हैं।
केरल सरकार ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि कई महिलाएँ हेमा समिति के सामने गवाही देने के बाद कानूनी कार्रवाई करने के लिए तैयार नहीं है। इसके बावजूद आरोपितों को जवाबदेही से बचने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। हालाँकि कई शिकायतकर्ता शुरू में बयान देने या कानूनी कार्रवाई से हिचकिचा रहे थे, लेकिन SIT ने उन्हें आश्वासन दिया।
SIT के आश्वासन के बाद कई शिकायतकर्ता महिलाएँ नया बयान देने और अदालती कार्रवाई में साथ देने की बात कही है। उधर, हेमा समिति के सामने गवाही देने वालों को धमकी मिल रही है। इस पर हाई कोर्ट ने चिंता जताई है। ‘वीमेन इन सिनेमा कलेक्टिव’ की शिकायत पर हाई कोर्ट ने SIT से नोडल अधिकारी नियुक्त करके इसका समाधान निकालने के लिए कहा है।
क्या है जस्टिस हेमा कमिटी
साल 2017 में 14 फरवरी को मलयालम फिल्मों की मशहूर अभिनेत्री अपनी कार से कोच्चि जा रही थीं, तभी उन्हें रास्ते में अगवा कर लिया गया। इसके बाद उनकी ही कार में उनका यौन उत्पीड़न हुआ। जब खबरें सामने आईं तो हर कोई सन्न रह गया। पुलिस ने उस समय आरोपितों को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया, लेकिन इस घटना ने तमाम हिरोइनों की सुरक्षा पर सवाल उठा दिए। आंदोलन तेज होता गया।
जब सरकार पर दबाव पड़ा तो मजबूरन वारदात के पाँच महीने बाद जुलाई में केरल हाईकोर्ट की रिटायर्ड जस्टिस हेमा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी गठित हुई। इस कमिटी को जो टास्क दिया गया, उसमें पूरी मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में महिला कलाकारों, सहयोगियों और अन्य स्टाफ की सेवा शर्तें, काम के बदले समुचित मेहनताना, शूटिंग स्थल पर सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम आदि को लेकर रिपोर्ट देना था।
कमिटी ने सैकड़ों की संख्या में महिला कलाकारों एवं अन्य महिला कर्मियों से बात की। उनके बयान रिकॉर्ड किए और फिर 2019 के आखिर में अपनी रिपोर्ट ले जाकर सीएम विजयन को दी। कमिटी ने इस रिपोर्ट के साथ इस मामले में विस्तृत जाँच के लिए न्यायाधिकरण के गठन की सिफारिश भी की। हालाँकि, केरल के सीएम ने उस पर सुनवाई तो दूर, रिपोर्ट को ही पब्लिक नहीं होने दिया।
विधानसभा में बताया गया कि अगर ये रिपोर्ट सार्वजनिक हुई तो निजता का उल्लंघन होगा। बाद में पाँच आरटीआई कार्यकर्ताओं और मीडियाकर्मियों ने केरल राज्य सूचना आयोग से संपर्क किया। इसके बाद आयोग ने कमिटी के सामने गवाही देने वाली महिलाओं की निजता को बरकरार रखते हुए कंट्रोल्ड रिपोर्ट को रिलीज करने करने की स्वीकृति दे दी। इसके बाद यह रिपोर्ट सामने आई।
क्या-क्या है हेमा कमेटी की रिपोर्ट में
255 पेज की इस रिपोर्ट में बताया गया कि कैसे मलयालम इंडस्ट्री को पुरुषों का एक समूह नियंत्रित करता है। वहीं महिलाएँ यौन उत्पीड़न का शिकार होती हैं और वो भी उन लोगों के द्वारा, जिनका इंडस्ट्री में अच्छा खासा नाम है। इसके अलावा इसमें ये भी बताया गया है कि इंडस्ट्री में शुरुआत से ही महिलाओं के साथ शोषण शुरू हो जाता है। उन्हें कभी ‘अडजस्ट’ करने को कहा जाता है तो कभी ‘कॉम्प्रोमाइज’।
जब महिलाएँ इसका विरोध करती हैं तो उन्हें टॉर्चर झेलना पड़ता है। कभी बेसिक सुविधाओं से वंचित रखा जाता है तो कभी वेतन देने में भेदभाव किया जाता है। कार्यस्थल पर उनके आगे नशे करना, दुर्व्यवहार करना, घटिया कमेंट करना भी सामान्य बात होती हैं। इसके अलावा, कॉन्ट्रैक्ट में काम की जानकारी दिए बिना ही उन्हें नग्न सीन करने के लिए मजबूर किया जाता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जाँच के दौरान निर्देशकों, निर्माताओं और अभिनेताओं समेत 15 बड़े शॉट्स से जुड़े एक पुरुष समूह का पता चला है। उनके अनुसार इंडस्ट्री में यही पावर ग्रुप तय करता है कि इंडस्ट्री में किसे रहना चाहिए और किसे फिल्मों में काम देना चाहिए। रिपोर्ट में इन शक्तिशाली समूह को माफिया भी बताया गया है जो अपने खिलाफ आवाज उठाने वालों का करियर बर्बाद कर देते हैं।