पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने घुसपैठियों से एक लुभावना वादा किया है। ममता ने साफ़ कर दिया है कि वह एनआरसी से उलट घुसपैठियों को भगाने के पक्ष में नहीं हैं। कैबिनेट मीटिंग से निकलकर उन्होंने कहा कि राज्य में उनकी सरकार सभी शरणार्थियों को रहने का अधिकार देगी।
एक रिपोर्ट के मुताबिक एनआरसी के जवाब में ममता ने यह कदम उठाने का फैसला किया है। दरअसल, ममता एनआरसी योजना की सबसे कठोर आलोचकों में से एक हैं। बता दें कि बंगाल में घुसपैठियों और शरणार्थियों की अधिकांश बस्तियाँ उन जगहों पर बसी हुई हैं जोकि राज्य सरकार की हैं। मगर यहाँ बसने वाले लोग दरअसल मूल रूप से भारतीय नहीं हैं इसीलिए उन्हें अक्सर विरोध का सामना करना पड़ता है।
ममता ने ऐलान किया है कि इन लोगों को उसी ज़मीन का अधिकार दिया जाएगा जिस पर यह रह रहे हैं। गौरतलब है कि ममता सरकार पहले ही बंगाल में ऐसी 94 कालोनियों को रेगुलर कर चुकी है जहाँ घुसपैठिये और रिफ्यूजी रहते हैं। दरअसल 1971 से ही भारत के बंगाल से सटी बांग्लादेश सीमा को पार कर घुसपैठिए इन इलाकों में बसने लगे थे। उस वक़्त आज का बांग्लादेश पूर्वी पाकिस्तान हुआ करता था। उस समय बांग्लाभाषी लोगों पर पश्चिमी पाकिस्तान के इशारे पर हुए ज़ुल्म के चलते कई परिवारों ने पलायन कर भारत में शरण ले ली थी। इनमें से अधिकतर रिफ्यूजी असम और पश्चिम बंगाल में जाकर बस गए।
रिफ्यूजियों के सन्दर्भ में भी भारत सरकार ने यह स्पष्ट किया था कि भारतीय सीमा के अन्दर किसी भी रिफ्यूजी को हमेशा के लिए शरण नहीं मिलेगी। यही वजह है कि 1971 युद्ध के बाद जब बांग्लादेश बना, तो रिफ्यूजियों को भारत से उनके अपने देश रवाना कर दिया गया। बावजूद इसके इनमें कई ऐसे थे जो वापस नहीं गए। यहीं परिवार बसा लेने के बाद आज उन रिफ्यूजियों की एक अच्छी खासी तादाद बांग्लादेश की सीमा से जुड़े राज्य बंगाल में रहती है।