पिछले चार सालों से विवादों में घिरा रहा इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय को कई विवादों से तब मुक्ति मिली जब यौन शोषण, अश्लील चैट, नियुक्तियों में धाँधली से लेकर वित्तीय अनियमितता जैसे कई आरोपों से घिरे कुलपति प्रोफेसर रतन लाल हांगलू ने अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले ही इस्तीफ़ा दे दिया। वामपंथी विचारधारा के पोषक प्रोफेसर रतन लाल हांगलू ने 30 दिसंबर 2015 को इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय का कार्यभार ग्रहण किया था और सबसे ज्यादा विवादित वीसी के रूप विख्यात हो चुके हांगलू ने 30 दिसंबर 2019 को अपना इस्तीफ़ा भेज दिया। उनके साथ ही चार अन्य विश्विद्यालय के अधिकारियों ने अपना इस्तीफ़ा भी सौंप दिया। और आज इस पूरे प्रकरण से कहीं न कहीं ताल्लुक रखने वाले और कुलपति द्वारा नियुक्त हॉस्टल के वार्डनों ने भी अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया। कुलपति के इस्तीफे को रमेश पोखरियाल निशंक ने मंजूर करते हुए राष्ट्रपति के पास फाइल भेज दी है।
Allahabad University Vice Chancellor Ratan Lal Hangloo, who was under the scanner over alleged financial and administrative irregularities, resigns: Sources
— Press Trust of India (@PTI_News) January 1, 2020
कुलपति के अलावा इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के जिन चार अन्य अधिकारियों ने इस्तीफ़ा सौंपा उनमें रजिस्ट्रार प्रोफेसर एनके शुक्ला, चीफ प्रॉक्टर प्रोफेसर रामसेवक दुबे, जनसंपर्क अधिकारी डॉक्टर चितरंजन कुमार और वित्त अधिकारी डॉ सुनील कांत मिश्रा शामिल हैं। इन चारों अधिकारियों ने अपना इस्तीफा कुलपति प्रोफेसर रतन लाल हांगलू को भेजा था। इसके आलावा हॉस्टल के वार्डनों ने भी अपना इस्तीफ़ा कुलपति को भेज दिया है।
बता दें कि कथित रूप से घोर वामपंथी प्रोफ़ेसर रतन लाल हांगलू का कुलपति के रूप में पूरा कार्यकाल विवादित और शिक्षण का माहौल ख़राब करने वाला रहा था। इस पूरे प्रकरण पर ऑपइंडिया ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों से बातचीत की। छात्रों ने अपनी पहली प्रतिक्रिया में कहा, “इलाहाबाद विश्वविद्यालय के लिए आज ख़ुशी का दिन है l क्योंकि पिछले चार वर्षों से इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र कुलपति प्रोफ़ेसर रतन लाल हांगलू के अदूरदर्शी कार्यशैली से प्रताड़ित थेl इनके कार्यकाल में भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने का मतलब निष्कासन और निलंबन होता थाl नियमों के विरुद्ध जा कर कार्य करना इनकी आदत थी l इनके खिलाफ राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं मानव संसाधन विकास मंत्रालय में सैकड़ों शिकायत की गई थीl और पिछले कार्यकाल में मानव संसाधन विकास मंत्री रहे प्रकाश जावडेकर जी ने इसपर कार्यवाही करने का तीन बार आश्वाशन भी दिया थाl पिछली शिकायतों को ध्यान में रखते हुए नए शिक्षा मंत्री श्री रमेश पोखरियाल निशंक जी ने पदभार ग्रहण करते ही इलाहाबाद विश्वविद्यालय में जाँच होने तक शिक्षक भर्ती पर रोक लगा दिया थाl”
चार साल के कार्यकाल में कई आरोपों से घिरे रहे कुलपति हांगलू
कुलपति पिछले चार वर्षों के दौरान अलग-अलग वजहों से लगातार विवादों में बने रहे। जिसके कारण विश्वविद्यालय में लगातार कई आन्दोलन भी हुए।
हांगलू पर ये हैं मुख्य आरोप:
- गैर-कानूनी नियुक्तियाँ करना जैसे ओएसडी और स्पोर्ट्स ट्रेनर, जबकि ये पद विश्वविद्यालय में है ही नहीं।
- वित्तीय अनियमितताएँ जिनमें अपनी सुरक्षा पर 10 लाख का मासिक खर्च और वीसी के घर की मरम्मत के लिए 70 लाख खर्च करना।
- शैक्षिक अनियमितताएँ जैसे यूनिवर्सिटी के अंडरग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट और रिसर्च प्रोगाम्स के लिए प्रवेश परीक्षा में अनियमितता।
- कैंपस में खराब माहौल जैसे असुरक्षा की भावना। साथ ही छात्राओं का उत्पीड़न जैसे कई गंभीर मामले हैं।
इसके अलावा हांगलू पर महिलाओं के यौन उत्पीडऩ का आरोप भी लगा था। उनके कई विवादित और अश्लील चैट भी ऑपइंडिया के पास हैं जिसमें वो उनके निजी अंगों पर कमेंट करते और उन्हें नौकरी का प्रलोभन देकर अनुचित लाभ उठाने की बात कह रहे हैं। इसके अलावा उन पर एक महिला मित्र के साथ उनके कथित अंतरंग बातचीत का ऑडियो वायरल होने के बाद भी उन पर कई अन्य आरोप लगे थे। जिससे उनकी मानसिकता और छात्राओं के उत्पीड़न की बात को और मजबूती मिलती है। इसके आलावा भी वहाँ के छात्र-छात्राओं ने उनपर कई अन्य आरोप भी लगाए। छात्रों ने बताया कि रतन लाल हांगलू के कार्यकाल में विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ लगभग 300 के आसपास मुक़दमे हो गए, और माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों की अवहेलना के कारण कुलपति को इलाहबाद हाई कोर्ट ने फटकार भी लगाई थी l कश्मीर के सन्दर्भ में इनके विवादित बोल और सेना पर असभ्य टिप्पणी के कारण इनका छात्रों के एक धड़े ने पोस्टर जारी कर इनका विरोध तो जताया ही था, साथ ही साथ जिला न्यायालय प्रयागराज में एक मुकदमा भी दाखिल किया थाl
यौन उत्पीड़न पर महिला आयोग में भी हुई थी शिकायत
कुलपति और एक महिला के बीच अन्तरंग बातचीत का ऑडियों व्हाट्सअप पर वायरल होने के बाद एवं महिलाओं कथित यौन उत्पीड़न मामले की शिकायत राष्ट्रीय महिला आयोग से की गई थी। आयोग ने कुलपति हांगलू ऐसा न करने पर चेतावनी भी दी थी कि यदि वह नहीं पहुँचते हैं तो पुलिस के जरिए समन भेजकर उन्हें बुलवाया जाएगा। छात्रों ने बताया कि इस दौरान वह विदेश यात्रा पर होते हुए भी सीधे दिल्ली स्थित महिला आयोग के कार्यालय पहुँचे थे। जहाँ तीन घंटे तक वह आयोग के सवालों से घिरे रहे। इस दौरान विश्वविद्यालय की छात्राएँ भी कुलपति के बर्खास्तगी की माँग को लेकर आंदोलन करती रहीं थी।
कुलपति हांगलू का विवादों से है पुराना नाता
छात्रों ने ऑपइंडिया को बताया कि इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति का कार्यभार 30 दिसंबर 2015 को ग्रहण करने से पहले प्रो. रतन लाल हांगलू पश्चिम बंगाल के कल्याणी विश्वविद्यालय में कुलपति थे। वहाँ भी उन पर ऐसे ही महिला उत्पीड़न समेत कई संगीन आरोप लगे थे। छात्रों ने बताया कि वहाँ की एक महिला ने तो उनका इलाहाबाद तक पीछा किया था और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों के बीच उनकी काली करतूत की पोल खोल डाली थी। महिला ने सार्वजनिक मंच पर आरोप लगाया था कि रतन लाल हांगलू ने कल्याणी विश्वविद्यालय में कुलपति रहते हुए उनकी बेटी का उत्पीड़न किया था।
छात्रों का कहना है, “कुलपति के अदूरदर्शी और अराजक रवैए के खिलाफ ना सिर्फ छात्र आंदोलित थे बल्कि शिक्षक और कर्मचारी समूह भी कई कई बार आंदोलित हुए। और ऐसे आन्दोलनों में मुख्य भूमिका निभाने वाले व्यक्तियों को कुलपति ने अन्य वामपंथी गिरोह की तरह ही अपने व्यक्तिगत अभिमान पर चोट समझ कर कार्यवाही करने से कोई गुरेज नहीं किया था। इनके इन्हीं कारगुजारियों पर संज्ञान लेने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्री और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने अलग-अलग जाँच समिति भेज कर स्थिति का पुनरावलोकन किया और जाँच में कुलपति के कार्य शैली से असंतुष्ट हुआl”
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के द्वारा भेजी गई जाँच कमिटी के चेयरमेन प्रोफ़ेसर देसी राजू थे, जिन्होंने अपनी रिपोर्ट में विश्वविद्यालय के लगातार गिरते हुए हालातों की ओर इशारा करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय में अगर यही परिस्थितियाँ रही तो एक दिन यह बर्बाद हो जाएगाl इसमें इस बात का भी जिक्र था कि विश्वविद्यालय में अभी हाल के दिनों में महिला सुरक्षा की वीभत्स स्थिति की शिकायत के बाद राष्ट्रिय महिला आयोग ने गंभीर टिप्पणियाँ की थी। और कुलपति प्रोफ़ेसर रतन लाल हांगलू से तीन घंटे तक जिरह किया और उनके जबाबों से असंतुष्ट रही।
छात्रों का कहना है कि हांगलू के चार वर्षों के कार्यकाल में विश्वविद्यालय NIRF की रैंकिंग में 200 के बाहर चला गया है। विश्वविद्यालय के इस दुर्गति से विश्वविद्यालय से जुड़े दुनियाँ भर के लोग आहत थे। छात्रों ने इस ओर विशेष रूप से ध्यान दिलाया कि वामपंथ का नेक्सस कितना तगड़ा है कि तमाम आरोपों और सबूतों के बाद भी एक वामपंथी दूसरे वामपंथी को बचाने की पूरी कोशिश करता है। छात्रों का कहना है कि तमाम आरोपों के बाद भी अभी कुछ दिनों पहले ही कुलपति हंगलू क्लीन चिट लेकर दिल्ली से प्रयागराज आए थे। लेकिन पिछले दो दिनों में कुछ ऐसा छात्रों के अथक प्रयास और सबूतों से कुछ ऐसा हुआ कि कुलपति महोदय की पोल पुनः खुल गई और भारी दबाव में उन्हें इस्तीफा देना पड़ गया।
छात्रों ने बताया कि आज की इस इस जीत के सूत्रधार इलाहबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ की एकता है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, समाजवादी छात्रसभा और NSUI ने गंभीर वैचारिक मतभेदों को भुला कर एकजुटता के साथ संघर्ष किया। कुलपति के खिलाफ मामला इतना संगीन था और बहुसंख्यक छात्र एकजुट कि सभी छात्र संगठनों को एक साथ आना पड़ा सिवाय आजादी के फर्जी विमर्शों का नारा लगाने वाले वामपंथी गिरोह और उनके छात्र संगठन ही थे जो इस अभूतपूर्व आन्दोलन के लिए कभी खुल कर सामने नहीं आए।
यहाँ आप एक पैटर्न देख सकते हैं कथित रूप से महिला अधिकारों के झंडाबरदार ही अक्सर महिलाओं के उत्पीड़न में आरोपित पाए जाते हैं और इलाहाबाद मामले में भी आरोपित कथित वामपंथी हांगलू थे तो भला वामपंथी छात्र संगठन कैसे वामपंथ के अतियों और जहर के खिलाफ आवाज उठाए। विश्वविद्यालय के छात्रों ने अपनी ख़ुशी जाहिर करते हुए कहा कि चार साल की इस लड़ाई के बाद मिली जीत ने वामपंथ की जड़ों और उनके झूठे आदर्शों पर कुठाराघात किया है।
ऑपइंडिया से बात करते हुए छात्रों ने बताया कि भाजपा सरकार के इस महत्वपूर्ण कदम के बाद एक बार फिर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के आम छात्रों के साथ-साथ राष्ट्रवादी छात्रों में सरकार के प्रति भरोसा बढ़ेगा। हालाँकि, इस बात से कोई इंकार नहीं है कि समाजवादी छात्र सभा और NSUI के छात्रों ने भी इस आन्दोलन में अपनी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लेकिन इस आन्दोलन को राष्ट्रवादी छात्रों ने ही शुरू किया था। और धीरे-धीरे छात्रों का आंदोलन बन जाने के कारण यह आन्दोलन सब का हो गया और सभी छात्र संगठनों (वामपंथियों को छोड़कर) ने अपनी बराबर की भूमिका निभाई। यह इलाहबाद विश्वविद्यालय के छात्रों की सबसे बड़ी जीत हैl छात्रों ने बताया कि कुलपति हांगलू के इस्तीफे पर मुहर देश के उन महत्वाकांक्षी कुलपतियों को भी एक सीख है जो खुद को बहुत ताकतवर समझते हैं और अपने वामपंथी गिरोह के बल पर हर तरह के गलत काम करने के बावजूद भी साफ़ बच निकलने की उम्मीद पाले रहते हैं।
साथ ही छात्रों का यह भी कहना है आने वाले दिनों में भाजपा की सरकार को यह सोचना चाहिए कि किस तरह से वामपंथी गिरोह विश्विद्यालयों में अपनी जड़ें इतनी गहराई तक जमा चुके हैं कि आज कई विश्वविद्यालय देश विरोधी गतिविधियों के अड्डे बन चुके हैं। जाधवपुर और JNU विशेष रूप से और वहाँ के पढ़े हुए लोग और प्रोफ़ेसर जहाँ भी किसी भी रूप में जाएँ उस परिसर का माहौल ख़राब करने और देश विरोधी एजेंडा चलाने से पीछे नहीं हटते। सरकार को चाहिए कि विश्वविद्यालय को राजनीति या देशविरोधी गतिविधियों का अड्डा न बनने दें।
चलते-चलते आपको BHU में हाल ही में हुए आंदोलन की याद भी दिला दूँ जहाँ वामपंथी गिरोह की वजह से ही संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय का मुद्दा हिन्दू-मुस्लिम और महज संस्कृत भाषा का मुद्दा बन गया था। वहाँ भी इस पूरे विवाद की जड़ में कुलपति राकेश भटनागर थे जो JNU के प्रोफ़ेसर थे। हिन्दू धर्म और मालवीय जी के आदर्शों से उनका नाता इतना छिछला है कि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति मालवीय भवन में जाने से भी कतराते हैं। वहाँ भी वामपंथी छात्र संगठन कथित रूप से वामपंथी कुलपति के समर्थन में और फिरोज खान के ‘धर्म विज्ञान’ पढ़ाने के समर्थन थे और जो लड़ रहे थे वो सनातन धर्म को जीने वाले छात्र थे। अंततः देश ने उनके मुद्दे को समझा और उन्हें जीत मिली। इलाहाबाद में भी मीडिया गिरोह और वामपंथी धड़े ने छात्रों का साथ नहीं दिया। फिर भी छात्र सालों लड़े और आज वामपंथी और देशविरोधी विचारधारा के पोषक कुलपति के इस्तीफे के साथ प्रयागराज के इलाहाबाद विश्वविद्यालय को उनसे मुक्ति मिली। अब आने वाले समय में छात्रों को उम्मीद है कि जो भी विश्वविद्यालय की बागडोर थामने आएगा वह ज़रूर न सिर्फ विश्वविद्यालय को बल्कि छात्रों को विज़न देकर राष्ट्रहित में अपना योगदान देने के लिए आगे ले जाएगा।
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